ये बताइए कि शल्य चिकित्सा के जनक कौन हैं? कुछ लोग कहेंगे कि ऋषि सुश्रुत ही इस शास्त्र के रचयिता है, तो कुछ ब्रिटिश वैज्ञानिक जोसेफ लिस्टर का नाम स्मरण करेंगे। समझना होगा कि सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा के लिए कितना योगदान दिया, ये समझने में अधिकांश विश्व को कई वर्ष लगे। पर क्या आपको पता है कि भारत में पशु चिकित्सा विज्ञान के जनक कौन हैं? तो इस लेख में हम आपको परिचित करा रहे हैं ऋषि शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) से जिन्होंने भारत में पशु चिकित्सा विज्ञान की स्थापना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
ऋषि शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) कौन थे?
ऋषि शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) जिन्होंने भारत की पशु चिकित्सा में अद्वितीय योगदान दिया। ऋषि शालिहोत्र वैसे तो पशु चिकित्सक थे लेकिन मूल रूप से वो एक अश्व विशेषज्ञ थे। अपनी रचना “शालिहोत्रसंहिता” में उन्होंने अश्वचिकित्सा का बहुत अच्छे रूप में उल्लेख किया है। ज्ञात हो कि पशु चिकित्सा विशेषकर अश्वचिकित्सा भारत के संदर्भ में पुरानी चिकित्सा पद्धति रही है। महाभारत काल में नकुल और सहदेव द्वारा अश्व चिकित्सा एवं गौ चिकित्सा करने का उल्लेख होता।
जिस तरह से महर्षि सुश्रुत ने सम्पूर्ण शल्य चिकित्सा की नींव रखी थी, वैसे ही ऋषि शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) ने पशु चिकित्सा के मूल सिद्धांतों की रचना भी की थी। इनके द्वारा लिखित पुस्तक जैसे अश्व आयुर्वेद सिद्धांत (‘घोड़ों का आयुर्वेदिक उपचार) पशु चिकित्सा पर लिखा विश्व का सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है।
ऋषि शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) के जन्म पर शोध करें तो वैसे तो कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती लेकिन माना जाता है कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश में वर्तमान श्रावस्ती जिले में हुआ था। कई जनश्रुतियों के अनुसार, वे महाभारत काल से भी पूर्व जन्मे थे, जबकि कहा यह भी जाता है कि उनके पूर्वज कुषाण वंश, विशेषकर महाराज कनिष्क की सेवा में उपस्थित थे।
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अश्व चिकित्सा में आयुर्वेद का महत्व
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ऋषि शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) ने अश्व चिकित्सा में विशेष सिद्धि प्राप्त की थी। अश्व चिकित्सा से संबंधित जिन पुस्तकों की उन्होंने रचना की थी, उसमें अश्वों से संबंधित कई बातों को रखा गया है। अश्व चिकित्सा में आयुर्वेद के विशेष महत्व के बारे में उल्लेख है, जैसे- अश्वों के उपचार हेतु विभिन्न औषधीय-पौधों और जड़ी-बूटियों की जानकारियां, अदरक और हरीतकी (आंवला) का कैसे उपयोग करें। “शालिहोत्र संहिता” बताता है कि घोड़ों की देखभाल और प्रबंधन से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ रहा है, जिसका फ़ारसी, अरबी, तिब्बती और अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद हो चुका है।
कहते हैं कि अश्वचिकित्सा पर आधारित प्रथम पुस्तक शालिहोत्रसंहिता को ऋषि शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) ने महाभारत काल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। हालांकि सत्य क्या है ये तो समय ही बता सकता है, परंतु इतना तो स्पष्ट है कि इसके पुस्तक के कारण प्राचीन भारत में पशुचिकित्सा विज्ञान को ‘शालिहोत्रशास्त्र’ नाम दिया गया। यही नहीं, भारत में अनिश्चित काल से देशी अश्वचिकित्सक ‘शालिहोत्री’ भी कहे जाते हैं। यही नहीं, घोड़ों की प्रजाति, उनके रंग की विविधता और घोड़ों की आयु जानने की विधि, उनके क्रय-विक्रय की विधि, कानून, बीमारियों, दवाओं, बीमारियों के लक्षणों आदि का विवरण भी “शालिहोत्र संहिता” में दिया गया है।
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शालिहोत्र शास्त्र की पांडुलिपि
शालिहोत्र (Rishi Shalihotra) शास्त्र की एक पांडुलिपि महाजनी, मोदी और देवनागरी लिपि में वर्तमान राजस्थान में उपलब्ध हैं। इस पांडुलिपि में घोड़ों के चित्र बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त जैसे-जैसे हम इतिहास में आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे पशु चिकित्सा में भारत की विद्वत्ता का उल्लेख हमें देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए अश्व, हाथी एवं गौर जाति के रोगों पर विशिष्ट पुस्तकें लिखी गयी। इस तरह यह स्पष्ट है कि भारत का पशु चिकित्सा अत्यंत समृद्ध रहा है।
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