जब 1971 के युद्ध में एक तस्वीर ने तय कर दी पाकिस्तान की हार

भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों के साथ खेल करते हुए उनके मनोबल को पूरी तरह से तोड़ दिया था। अंततः भयग्रस्त पाकिस्तान को आत्मसमर्पण की राह लेनी पड़ी थी।

1971 युद्ध

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भारत के विरुद्ध युद्ध करना हमेशा से ही पाकिस्तान के लिए दुःखदायी और अपमानजनक साबित हुआ है लेकिन, 1971 में भारत ने पाकिस्तान को जो चोट दी उससे वह आज भी उभर नहीं पाया है। 1971 की विजय गाथा भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और शौर्य को दर्शाती है जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है। इस युद्ध में भारतीय सेना की बहादुरी और शौर्य के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे। तब भारतीय सेना रणनीतिक मोर्चे पर बहुत अधिक प्रभावी साबित हुई थी।

इस लेख हम जानेगें कि कैसे भारत की एक गजब की कूटनीति के सामने पाकिस्तान नतमस्तक हो गया और उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा। 

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पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर अत्याचार  

ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1971 में हुए युद्ध ने कई ऐतिहासिक उदाहरणों को प्रस्तुत किया था। यह युद्ध 3 दिसंबर, 1971 से लेकर 14 दिसंबर, 1971 तक चला और इस युद्ध से ही एक नये राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ का निर्माण हु्आ। इससे पहले पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा था- पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान। पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचार से पूर्वी पाकिस्तान के लोग बहुत परेशान थे। पश्चिमी पाकिस्तान के तरफ से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की भावनाओं पर प्रहार किए जा रहे थे जिससे वहां के लोगों के मन में बहुत आक्रोश था। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का विद्रोह बढ़ा तो पाकिस्तान ने बड़ी संख्या में सेना को भेजकर वहां के विद्रोह को दबाने का प्रयास किया और वहां के लोगों के साथ बहुत अत्याचार किया गया। पश्चिमी पाकिस्तान के द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर उर्दू भाषा को थोप दिया गया जबकि पूर्वी पाकिस्तान में ज्यादा बोले जाने वाली भाषा बांग्ला थी।

खुलेआम नरसंहार झेल रहे पूर्वी पाकिस्तान ने अंततः भारत से मदद मांगी। जब पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर अत्याचार करने की सारी सीमाएं पार कर दीं तो भारत ने उसके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। जिसके बाद 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध की घोषणा कर दी गयी थी और इसी के तहत 10 दिसंबर को भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में घुस गयी। यहां एक समस्या यह थी कि भारतीय सेना ढाका की ओर आगे बढ़ते हुए मेघना नदी को कैसे पार करे तो इसके लिए भारतीय वायुसेना के एमआई -4 हेलीकॉप्टरों को उपयोग में लाया गया। भारत के विमानों के द्वारा सैनिकों को तांगेल में एयरड्रॉप कराया गया,  यही एयरड्रॉप भारत की एक अद्भुत रणनीति का महत्वपूर्ण भाग था।

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एक मनोवैज्ञानिक युद्ध

वास्तव में भारत ने इस दौरान एक मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ा था जिसके लिए उसने एक तस्वीर का उपयोग किया। इस तस्वीर का उपयोगकर हजारों की संख्या में पर्चे छपवाए गए और भारतीय सेना के द्वारा पाकिस्तानी ठिकानों पर गिरा दिया गया जिससे पाकिस्तानी सेना भय से भर गयी। प्रश्न यह है कि इन पर्चों में ऐसा था क्या जिसने पाकिस्तानी सेना को न केवल भयग्रस्त कर दिया बल्कि उनके मनोबल तोड़कर रख दिया और अंततः उस आत्मसमर्पण करना पड़ा। चलिए इस बारे में जानते हैं।

टांगेल जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है उसमें एयरड्रॉप से एक दिन पूर्व मेजर जनरल इंदर गिल ने जनसंपर्क निदेशालय के अधिकारी राममोहन राव से बातचीत की। उन्होंने जनसंपर्क निदेशालय के अधिकारी से पैराड्रॉप के लिए अच्छा प्राचार करने के लिए कहा। जिसके बाद राव ने पूर्वी कमान के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी कर्नल बीपी रिखे से अनुरोध किया कि वो टांगेल एयरड्रॉप की अधिक से अधिक प्रेस कवरेज कराएं। कर्नल रिखे ऑपरेशन की तस्वीरों की व्यवस्था नहीं कर पा रहे थे क्योंकि पैराड्रॉप जिस जगह हुआ है वो उनकी पहुंच से बाहर था। लेकिन पैराड्रॉप की मीडिया कवरेज के लिए उसकी तस्वीरें दिखाना बहुत महत्वपूर्ण था।

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एक तस्वीर

ऐसे में राममोहन राव आगरा में हुए एक अभ्यास की तस्वीर निकालकर दिल्ली ले आए और इन्हीं तस्वीरों के साथ पर्चे छपवाकर पाकिस्तान के कई ठिकानों पर गिराया गया। इन तस्वीरों के कैप्शन में कहा गया था कि पूरी भारतीय बिग्रेड को टांगेल में उतार दिया है। हालांकि तांगेल में भारतीय सेना ने केवल 1000 सैनिकों को ही उतारा था लेकिन इन तस्वीरों के संबंध में बीबीसी की एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया था कि भारत ने टांगेल में लगभग 5000 सैनिकों को एयरड्रॉप कराया है। बीबीसी में छपी इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद पाकिस्तान बूरी तरह सहम गया।

इस तरह पाकिस्तानी सैनिकों के मस्तिष्क के साथ खेल करते हुए उनके मनोबल को पूरी तरह से भारतीय सेना ने तोड़ दिया था। अतः पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण की राह लेनी पड़ी थी। 16 दिसंबर 1971 को शाम 4.35 बजे पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर भी किए।

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