Assam church survey order: कुछ लोग सत्ता की भूख में इस कदर पगला जाते हैं कि उनके लिए वास्तविकता को स्वीकार करना बड़ा ही कठिन हो जाता है। वो जनता की भलाई को दरकिनार करके बस अपनी कुर्सी, अपनी सत्ता को बचाने में लगे रहते हैं और इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। यहां हम बात कर रहे हैं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की, जो प्रत्येक क्षण सत्ता को हथियाने के सपने ही देखती रहती हैं। ममता में वोट पाने की लालसा इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि वो देश की छवि को भी खराब करने से पीछे नहीं हट रही। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ममता बनर्जी अब चुनाव जीतने के लिए वेटिकन की शरण में आ गई हैं।
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TMC ने वेटिकन को लिखा पत्र
दरअसल, हाल ही में बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हिमंता बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार पर एक पत्र के माध्यम से निशाना साधा है। टीएमसी के वरिष्ठ नेता ने गुरुवार को वेटिकन के परमधर्मपीठ के दूतावास को एक पत्र लिखा है, जिसमें साकेत गोखले ने आरोप लगाया कि असम चर्च सर्वेक्षण आदेश (Assam church survey order) “ईसाइयों के राज्य प्रायोजित उत्पीड़न” के बराबर है। पूरा मामला कुछ ऐसा है कि सूत्रों के अनुसार कि असम पुलिस की स्पेशल यूनिट ने राज्य में चर्चों की संख्या और धर्म परिवर्तन के पैटर्न को लेकर जानकारी मांगी थी। स्पेशल यूनिट ने पुलिस अधिकारियों से असम में भूमि आवंटन और चर्चों के निर्माण के संबंध में जानकारी हासिल करने को कहा था। खबरों के अनुसार आदेश (Assam church survey order) में पुलिस अधिकारियों को धर्मांतरण में शामिल लोगों को गिरफ्तार करने को भी कहा गया था।
इसी मुद्दे को उठाते हुए तृणमूल कांग्रेस ने वेटिकन के परमधर्मपीठ के दूतावास को पत्र लिखा और उसमें असम पुलिस के इस कथित आदेश (Assam church survey order) की जांच करने को कहा। यहां गौर करने वाली बात यह है कि टीएमसी प्रवक्ता साकेत गोखले ने भारत के आंतरिक मामले में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग की और वेटिकन को लिखे गए पत्र में इसकी जांच करने और इस मुद्दे को उचित मंचों पर उठाने को कहा।
असम पुलिस ने ऐसा कोई आदेश (Assam church survey order) दिया या नहीं, वो सही है या गलत, ये एक अलग से चर्चा का विषय है। परंतु वेटिकन या कोई और कौन होता हैं, जो भारत के मामले में दखल देगा और जांच करेगा? क्यों ममता बनर्जी और उनकी पार्टी दूसरे देशों को भारत के मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कह रही है और देश की छवि को इस तरह से धूमिल कर रही हैं। इस पत्र के विषय में सुनकर ऐसा लगने लगा है मानो भारत में चुनाव जीतने और सत्ता हासिल करने के लिए ममता और उनकी पार्टी हर तरह की कूटनीति का सहारा ले सकती है।
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ममता और टीएमसी से कुछ प्रश्न पूछने हैं कि जब बंगाल में हिंदुओं पर खुले आम अत्याचार होते हैं तब वो कहां थी? जब तृणमूल के गुंडे हिंदुओं के साथ बंगाल में लूटपाट, हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम दे रहे थे तब उन्होंने अपनी आंखें क्यों बंद कर ली थी? तब उन्हें स्वयं को पत्र लिखने का विचार नहीं आया था?
वोट बैंक की राजनीति
देखा जाये तो वर्ष 2023 में 10 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। इसके चलते टीएमसी नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाह रही हैं। तृणमूल कांग्रेस असम में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर पहले भी चर्चों को लेकर अपना निशाना साध चुकी है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, असम की कुल आबादी 3.12 करोड़ में हिंदुओं की संख्या 61.47 प्रतिशत है। वहीं मुसलमानों की आबादी 34.22 प्रतिशत और ईसाईयों की संख्या 3.74 प्रतिशत है। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी ईसाईयों के वोट पाने के लिए उनकी हितैशी बनने का ढोंग कर रही है और ये पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने ईसाईयों को लुभाने और उनके वोट पाने के लिए इस तरह की हरकत की हो।
इससे पूर्व बीते साल क्रिसमस पर ममता बनर्जी ने मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी के सभी बैंक अकाउंट फ्रीज होने की अफवाह की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास किया था। तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सरकार पर ये आरोप लगाया था कि मदर टेरेसा के संस्थान पर जानबूझकर हमला किया गया है और जब ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया तो सरकार इससे डर गई है और पूरे मामले को दबाने की कोशिश करने लगी।
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यह बात शायद ही किसी से छुपी हो कि तृणमूल कांग्रेस आज मुस्लिम तुष्टीकरण की बदौलत ही सत्ता में टिकी हुई है। बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देकर ममता बनर्जी ने जिस तरह से लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई है वो भी किसी से छुपा नहीं है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस प्रकार से अपनी सत्ता के लिए मुस्लिम वोट बैंक को अधिक महत्वपूर्ण मानती हैं वैसे अब कुछ सालों से उनकी नजर ईसाईयों के वोट बैंकों पर भी है। मुस्लिमों के साथ-साथ अब ममता दीदी ईसाईयों को भी ये दिखाने का प्रयास कर रही है कि वे उनके हितों के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। परंतु अगर उनको जनता के हितों की इतनी ही परवाह होती तो बंगाल ही स्थिति आज इतनी ज्यादा खराब नहीं होती। दीदी के राज़ में बंगाल की कानून व्यवस्था का बुरा हाल है लेकिन वो इन सभी को नकारते हुए बस अपने वोट बैंकों को साधने में लगी हुई है और ऐसा लग रहा है इसी चाहत में वो मानो वेटिकन की शरण में चली गयी हैं।
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