karnataka Assembly election 2023: क्या कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस बोम्मई भाजपा की राज्य में लुटिया डूबोने का काम कर रहे हैं? इस प्रश्न का उत्तर इस समय हां है। बोम्मई जिस तरह से राज्य में काम कर रहे हैं, जिस तरह की नीतियां बना रहे हैं, उनका एक गहन विश्लेषण किया जाए तो आप समझ पाएंगे कि इन नीतियों से आने वाले चुनावों में भाजपा को अच्छे-खासे नुकसान की संभावना है। हाल ही में EWS आरक्षण को लेकर जो चर्चाएं सरकार कर रही है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि राज्य के मुख्यमंत्री पर सवर्ण विरोधी होने का ठप्पा लगने की पूरी संभावना है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे सीएम बोम्मई कर्नाटक में भाजपा को डुबोने का काम कर रहे हैं।
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EWS कोटे को लेकर विचार (karnataka Assembly election 2023)
हाल ही में कर्नाटक सरकार ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसके तहत आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण वर्ग के लिए आवंटित 10 प्रतिशत EWS कोटे का एक हिस्सा दूसरे समुदाय को देने का विचार है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार विचार कर रही है कि 10 प्रतिशत EWS कोटे में से 6 प्रतिशत आरक्षण वोक्कालिगा एवं लिगायत समुदाय को दे दिया जाए। इन दोनों समुदायों को 3-3 प्रतिशत और आरक्षण दिया जाए।
अब आप समझिए, कर्नाटक में वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय ओबीसी सूची में आते हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि इन दोनों समुदायों को पहले से ही आरक्षण मिलता है लेकिन यह समुदाय और ज्यादा आरक्षण की मांग निरंतर कर रहे हैं। इन मांगों को पूरा करने के लिए ही सरकार EWS आरक्षण में से कटौती करके इनके आरक्षण को बढ़ाने पर विचार कर रही है।
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ऐसा करने के पीछे का कारण
अब प्रश्न यह है कि राज्य की भाजपा सरकार आखिरकार ऐसा कर क्यों रही है। इसका बहुत सीधा सा उत्तर है, कर्नाटक में वोक्कालिगा और लिंगायत दोनों ही समुदाय चुनावों (karnataka Assembly election 2023) को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं। कहा जा रहा है कि बीएस येदियुरप्पा के जाने के बाद एक तरफ जहां लिंगायत भाजपा से दूर होते जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वोक्कालिगा भी आरक्षण की मांग पर अड़े हैं। ऐसे में चुनावों से पहले दोनों समुदायों को खुश करने के लिए सरकार इस तरह के प्रस्ताव पर विचार कर रही है।
अब आप कहेंगे कि सरकार चुनावों को देखते हुए रणनीति बना रही है तो इसमें गलत क्या है। ऐसे में आपको समझना होगा कि 10 प्रतिशत EWS आरक्षण का प्रावधान केंद्र सरकार ने 2019 में गरीब सवर्णों के लिए किया था क्योंकि गरीब सवर्णों को किसी भी तरह का आरक्षण नहीं मिल रहा था। 2019 के बाद अभी 2023 चल रहा है लेकिन कर्नाटक की बोम्मई सरकार ने EWS आरक्षण को राज्य में लागू नहीं किया है। अब जब लागू करने की बात आई तो उसका एक बड़ा हिस्सा दूसरे समुदायों को देने की बात कर रहे हैं।
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सवर्णों के साथ यह अन्याय क्यों?
ऐसे में सवाल बिल्कुल स्पष्ट है कि आखिरकार कर्नाटक के सवर्णों के साथ यह अन्याय क्यों? क्या कर्नाटक के सवर्णों का यह अपराध है कि वो किसी पार्टी के लिए वोट बैंक नहीं हैं? क्या कर्नाटक के सवर्णों का यह दोष है कि उनकी जनसंख्या कम है या फिर कर्नाटक के सवर्णों का यह अपराध है कि उन्होंने भाजपा को वोट दिए हैं?
भले ही बोम्मई वोक्कालिगा और लिंगायत को आरक्षण देकर चुनावी रणनीति (karnataka Assembly election 2023) बना रहे हों लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि सवर्णों की नाराजगी भी राज्य सरकार पर भारी पड़ सकती है। यदि सरकार इसी तरफ आगे बढ़ती है तो वोक्कालिगा और लिंगायत का वोट उन्हें मिले या न मिले लेकिन सवर्णों का वोट उन्हें निश्चित तौर पर नहीं मिलेगा। ऐसे में हो यह भी सकता है कि भाजपा को तीनों समुदायों के वोटों से हाथ धोना पड़े और विपक्ष में बैठने के सिवाय उनके पास कोई विकल्प ही न बचे।
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अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा ने कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के कोटा में से लिंगायतों और वोक्कालिगा समुदायों को समायोजित करने का भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार का फैसला ‘ब्राह्मण विरोधी’ है। इसके साथ ही संगठन के अध्यक्ष अशोक हरनहल्ली ने व्यापक विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इसका अर्थ यह है कि राज्य की भाजपा सरकार के विरोध में कर्नाटक के सवर्ण एकजुट हो रहे हैं और यदि ऐसा होता है तो भाजपा के लिए बोम्मई एक दुःस्वप्न ही साबित होंगे।
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