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कॉमेडी में फूहड़ता आई तो उसने अपना ‘करियर त्याग दिया’ लेकिन सिद्धांतों से समझौता नहीं किया

देवेन वर्मा एक ऐसे हास्य कलाकार थे जिन्होंने लोगों को हंसाने के लिए कभी भी फूहड़ता या अपशब्दों का सहारा नहीं लिया। जानिए, उनकी पूरी कहानी।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
4 January 2023
in चलचित्र
Deven Verma: A Veteran comedian who never compromised with his principles

Source- TFI

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‘ज़बान संभालके’ आपने देखा है? नहीं, तो आपने काफी कुछ मिस किया है। एक हिन्दी अध्यापक और उसके दिनचर्या पर बना यह शो 1990 के दशक में काफी लोकप्रिय था। इसके दो सीज़न बने थे। इन्हीं में से एक किरदार आया, प्रफुल्ल पोपटलाल दलाल, जिनका पत्रकार पोपट लाल से कोई लेना देना नहीं। आए तो ये केवल एक एपिसोड के लिए, लेकिन उस एपिसोड में भी इन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी, जबकि शो की कमान मोहन भारती यानि अपने पंकज कपूर के हाथ में थी। ऐसे थे अपने (Deven Verma)
देवेन वर्मा।

और पढ़ें: अजय देवगन की ‘रेनकोट’ भारत की सबसे अंडररेटेड फिल्मों में से एक क्यों है?

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आज के समय में जिस प्रकार से कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता एवं फूहड़ता को अनवरत बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे कभी कभी स्वत: ही ये ख्याल आता है कि पूर्व के समय में हास्य कलाकार किस प्रकार बिना अपशब्द, बिना किसी नौटंकी के कैसे लोगों को पेट पकड़ पकड़कर हंसने पर विवश करते थे। परंतु देवेन्दु वर्मा यानि अपने देवेन वर्मा (Deven Verma) ऐसे ही एक कलाकार थे।

स्टेज शो से की करियर की शुरुआत

1937 में कच्छ जिले में जन्मे देवेन वर्मा (Deven Verma) प्रारंभ में कॉलेज में नाटकों में अभिनय करने में रुचि रखते थे। उनका उद्देश्य एक उत्कृष्ट अभिनेता बनना था, जो किसी सीमा में न बंधे। उन्होंने अपने अभिनय से एक प्रभावशाली निर्माता को आकृष्ट किया, जो कोई और नहीं सुप्रसिद्ध चोपड़ा परिवार के सर्वेसर्वा एवं बीआर फिल्म्स के स्वामी, बलदेव राज चोपड़ा थे। इन्होंने देवेन को एक नार्थ इंडिया पंजाबी एसोसिएशन के सम्मेलन में फिल्म कलाकारों की मिमिक्री करते देखा और उनकी कला से प्रभावित होकर उन्होंने तुरंत इन्हें अपनी आगामी फिल्म “धर्मपुत्र” के लिए चुना और सुदेश राय की भूमिका में इनका फिल्म उद्योग में 1961 में पदार्पण हुआ, जिसे चर्चित निर्देशक यश चोपड़ा ने डायरेक्ट किया। उन्हें इस फिल्म के लिए एक माह काम करने के लिए 600 रुपये मिले थे।

परंतु ये फिल्म बहुत अधिक सफल नहीं हुई। एक तो ये फिल्म विभाजन जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बनी थी और दूसरा इस फिल्म में सत्य के ठीक विपरीत हिंदुओं को विभाजन के लिए दोषी ठहराया और जो हिन्दू किरदार इसमें अपने संस्कृति एवं अपने राष्ट्र का गुणगान करता, उसे नकारात्मक बना दिया जाता। तद्पश्चात देवेन के साथ चर्चित फिल्म कंपनी एवीएम स्टूडियोज ने तीन वर्ष का अनुबंध किया, जहां वे अन्य लोगों को अभिनय का प्रशिक्षण देते और बदले में उन्हें 1500 रुपये का मासिक वेतन मिलता।

कुछ समय बाद इनकी एक और फिल्म आई गुमराह, जिसे स्वयं बी आर चोपड़ा ने निर्देशित किया। इसमें देवेन ने प्रथमत्या कॉमेडी की और सभी ने इसे सराहा। फिर देवेन वर्मा (Deven Verma) मद्रास छोड़कर बॉम्बे आ गए।

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कई सफल फिल्मों में योगदान दिया

प्रारंभ में देवेन केवल किरदारों पर ध्यान देते थे और आवश्यकता पड़ने पर नकारात्मक रोल भी कर लेते थे। परंतु जब ‘मेरे अपने’ में उनके किरदार का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तब देवेन वर्मा (Deven Verma) ने कॉमेडी (Comedy) पर एक और दांव लगाया। इसी बीच में वे कुछ फिल्मों को निर्मित और निर्देशित भी कर रहे थे, जिसमें नादान, बेशरम, दाना पानी इत्यादि सम्मिलित थे। रोचक बात तो यह है कि अभिनेता नवीन निश्चल ने जिस वर्ष में सफलता की सीढ़ियां चढ़ना प्रारंभ किया यानि 1971, उसी वर्ष में नादान भी प्रदर्शित हुई थी।

अब देवेन वर्मा (Deven Verma) को उसी वर्ष सफलता का स्वाद भी मिला, जब बुड्ढा मिल गया में वे नवीन निश्चल के साथ ही लोगों को हंसाते हुए नज़र आए। यहां से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उन्होंने कई सफल फिल्मों में अपना योगदान दिया, जिसमें ‘चोरी मेरा काम’, ‘चोर के घर चोर’ एवं ‘अंगूर’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इसमें से किसी भी फिल्म में न उन्होंने कोई फूहड़ता दिखाई और न ही कहीं कोई सीमा लांघी और यही उनका USP भी था।

90 का दशक भी आया, परंतु देवेन वर्मा (Deven Verma) का प्रभाव कम नहीं हुआ। उन्होंने कई हिट फिल्मों में अपना योगदान दिया। परंतु 2002 में ‘मेरे यार की शादी है’ और 2005 में ‘कलकत्ता मेल’ के पश्चात उन्होंने फिल्मों में काम करना ही बंद कर दिया। इसके पीछे देवेन ने स्वयं कारण बताया कि पहले जो हंसमुख स्वभाव और जो स्वच्छ माहौल फिल्म उद्योग में था, वह अब देखने को नहीं मिलता और अब के अभिनेताओं में घमंड अधिक है। आज जिस प्रकार से बॉलीवुड रसातल में जा रहा है, उसे देख तो लगता है कि वे गलत नहीं बोल रहे थे।

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देवेन वर्मा ने करीब 149 फिल्मों में काम किया। अशोक कुमार की बेटी रूपा गांगुली से इन्होंने विवाह रचाया। 2 दिसंबर 2014 को दिल का दौरा पड़ने और किडनी फेल होने के कारण देवेन का निधन हो गया और इस तरह सबको हंसाने वाला एक कलाकार इस दुनिया को छोड़कर चला गया।

https://www.youtube.com/watch?v=AxlI9EchEkc

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