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“अब धर्म सेंसर बोर्ड भी करेगा फिल्में रिव्यू”, यदि फिल्म सेंसर बोर्ड जल्दी नहीं जागा तो वो दिन दूर नहीं जब हर आदमी सेंसर बोर्ड होगा

हर कोई अपना-अपना 'सेंसर बोर्ड' बनाकर घूमेगा!

Vaishali Shukla द्वारा Vaishali Shukla
21 January 2023
in मत
धर्म सेंसर बोर्ड

Source- TFI

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धर्म सेंसर बोर्ड: आप केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड या भारतीय सेंसर बोर्ड के बारे में तो जानते ही होंगे, जहां फिल्मों, टीवी, धारावाहिकों और विभिन्न तरह की दृश्य सामग्री की समीक्षा की जाती है। ये बोर्ड भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण के आधीन कार्य करता है। लेकिन अभी हाल ही में एक ऐसे सेंसर बोर्ड गठन हुआ है जो बिना सरकार के अधीन हुए ही कार्य करने वाला है।

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धर्म सेंसर बोर्ड करेगा फिल्मों की समीक्षा

जी हां, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में माघ मेले में संतों ने एक ‘धर्म सेंसर बोर्ड’ का गठन किया है। ये बोर्ड फिल्मों, वृत्तचित्रों, वेब सीरीज और मनोरंजन के अन्य दूसरे माध्यमों में हिंदू देवी-देवताओं और संस्कृति के अपमान की जांच करने वाला है। इसके तहत हिंदू परंपराओं की मानहानि को रोकने के लिए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय सेंसर बोर्ड का गठन किया गया है। ये तो बड़ी ही अजीबो-गरीब बात नहीं हो गई। क्या समाज और फिल्मों को इसकी आवश्यकता थी? क्या ‘धर्म सेंसर बोर्ड’ का गठन किया जाना उचित है? अगर समय रहते सेंसर बोर्ड ने अपने नियमों में सुधार किया होता तो क्या ऐसा होता? आइये इस पर चर्चा करते हैं।

धर्म सेंसर बोर्ड गठित करने के निर्णय पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि इस बोर्ड में धर्म और संस्कृति से जुड़े कई लोगों को सम्मिलित किया गया है। हालांकि फिलहाल वे स्वयं ही इस बोर्ड के अध्यक्षता का कार्यभाल संभाल रहे हैं। उनके अनुसार, यह बोर्ड हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने वाले या फिर संस्कृति को भला-बुरा कहने वाले वीडियो या ऑडियो के किसी भी फिल्मांकन या प्रसारण को रोकने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करने वाला है।

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धर्म सेंसर बोर्ड ने अपनी गाइडनलाइन भी जारी की है। किसी फिल्म या सीरियल में सनातन धर्म के विरुद्ध आपत्तिजनक कंटेंट या दश्य दिखाया जाता है तो उसे हटाने के लिए धर्म सेंसर बोर्ड द्वारा दबाव बनाया जाएगा। फिर भी कटेंट या दृश्य को नहीं हटाया जाता तो इस पर वैधानिक कार्रवाई होगी। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के अनुसार यह कार्रवाई कानूनी के साथ-साथ सामाजिक भी होगी, जिसका सीधे असर फिल्म निर्माता निर्देशकों की कमाई पर भी पड़ सकता है।

अब यहां पर एक बात ध्यान देने वाली है कि इस धर्म सेंसर बोर्ड के पास सरकार या सेंसर बोर्ड की ओर से किसी भी तरह का कोई प्राधिकरण नहीं है। ये बोर्ड केवल कुछ हिन्दु गुरुओं या साधुओं के द्वारा गठित है। यहां सबसे बड़ा प्रश्न ये भी उठता है कि आखिर इस तरह से धर्म सेंसर बोर्ड का गठन करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? कल को अन्य धर्म से जुड़े लोग फिर चाहे वो मुस्लिम हो या ईसाई, उन्होंने भी अपने-अपने धर्म के आधार पर ऐसे ही बोर्ड का गठन कर दिया तो? तब क्या होगा?  स्पष्ट शब्दों में कहे तो ऐसा होने पर सभी चीज़ें अराजकता की ओर अग्रसर हो जाएगी अर्थात्  सब कुछ अस्त व्यस्त हो जाएगा। इससे न ही कोई फिल्म रिलीज़ हो पाएगी और न ही सेंसर बोर्ड का कोई महत्व रह जाएगा।

इसकी आवश्यकता ही क्यों पड़ी? 

परंतु यहां सबसे बड़ा प्रश्न तो यही खड़ा होता है कि हिंदू संतों को आखिर इस तरह से धर्म संसद बनाना ही क्यों पड़ा? देखा जाये तो सेंसर बोर्ड पुराने ही थर्रे पर चला आ रहा है। लंबे समय से सेंसर बोर्ड के नियमों में कोई भी सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। सेंसर बोर्ड कुछ निर्धारित मानदंडों के चलते सभी फिल्मों को पास कर देता है। इसके बाद जब किसी फिल्म में किसी धर्म को लेकर आपत्तिजनक दृश्य दिखाये जाते हैं, तो इसका विरोध शुरू हो जाता है।

और पढ़ें: “नेतागिरी करो, फिल्म क्रिटिक्स क्यों बन रहे हो?” भाजपा के इन नेताओं के लिए पीएम का स्पष्ट संदेश

वैसे तो बॉलीवुड लंबे समय से ही हिंदुओं की भावनाओं को ठेंस पहुंचाता आया है। परंतु पिछले कुछ समय से देखने मिल रहा है कि हिंदू इसके विरोध में खुलकर बोलने लगे हैं, जिसके चलते आए दिन ही हम किसी न किसी फिल्म, विज्ञापन, वेब सीरीज को लेकर बवाल मचता हुआ देखते रहते हैं। उदाहरण के लिए आप शाहरुख खान की फिल्म पठान को ही ले लीजिए। पठान और भगवा बिकनी को लेकर किस तरह का हंगामा इस वक्त हो रहा है।

बीते कुछ सालों में इसी तरह कई फिल्मों का विरोध किया गया है। उदाहरण के लिए पद्मावत को ही देख लीजिये। इस फिल्म को जहां सेंसर बोर्ड के द्वारा हरी झंडी मिल गयी थी। वहीं बाद में करणी सेना के द्वारा अलाउद्दीन खिलजी का गुणगान, जौहर का प्रचार और पारंपरिक घूमर गाने में डांस पर विवाद के चलते फिल्म का विरोध किया था। इतना ही नहीं इस फिल्म के रिलीज़ होने पर हिंसा के डर से कई राज्यों के सिनेमाघरों में पुलिस तैनात की गयी थी।  वहीं अगर फिल्म पीके की बात की जाए तो यहां भी फिल्म में लोगों ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाते हुए इसे बैन कर देने और कुछ सीन पर हटाने की बात कही थी। वहीं सेंसर बोर्ड ने ऐसा करने से सिरे से नकार दिया था। सिर्फ यही नहीं और भी बहुत सी फ़िल्में है जिनका विरोध हुआ। इन सभी फिल्मों पर अगर सेंसर बोर्ड पहले ही विचार करती तो शायद ऐसा नहीं होता। कई बार फिल्मों के विरोध के चलते चीज़ें इतनी अधिक खराब हो जाती है कि बात हिंसा तक पहुंच जाती है।

सेंसर बोर्ड में सुधार की जरूरत

ऐसे में यदि सेंसर बोर्ड नहीं चाहता कि हर धर्म और जाति के लोग अपने अनुसार अलग अलग सेंसर बोर्ड बनाए और फिल्मों की समीक्षा करें तो उसके लिए बेहद आवश्यक है कि वो अपने स्तर पर कई बदलाव करें। फिल्मों की इस तरह से समीक्षा की जाए कि ये किसी भी धर्म-जाति से जुड़े लोगों की भावनाओं को आहत न करें। यदि फिल्म सेंसर बोर्ड सही से कार्य करेगा तो ऐसे किसी अलग से धर्म को अपने सेंसर बोर्ड की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। इसलिए अब समय आ गया है कि यदि सेंसर बोर्ड को अपनी प्रांसगिकता बनाये रखनी है तो वो जाग जाए।

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Tags: Central Board of Film CertificationDharm censor boardपठानपद्मावत
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