Ekadashi vrat katha : एकादशी व्रत कथा : पूजन सामग्री एवं सूची
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Ekadashi vrat katha साथ ही इससे पूजन सामग्री एवं सूची के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
एकादशी व्रत कथा –
अर्जुन ने कहा- “हे भगवन्! अब कृपा कर आप मुझे माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के सम्बंध में भी विस्तारपूर्वक बताएं। शुक्ल पक्ष की एकादशी में किस देवता का पूजन करना
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- “हे अर्जुन! माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस एकादशी के उपवास से मनुष्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है, अतः इस एकादशी के उपवास को विधि अनुसार करना चाहिए। अब मैं तुमसे जया एकादशी के व्रत की कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो- एक बार देवताओं के राजा इन्द्र नंदन वन में भ्रमण कर रहे थे। चारों तरफ किसी उत्सव का-सा माहौल था। गांधर्व गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। वहीं पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या ने माल्यवान नामक गंधर्व को देखा और उस पर आसक्त होकर अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। माल्यवान भी उस गंधर्व कन्या पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर-ताल भूल गया। इससे संगीत की लय टूट गई और संगीत का सारा आनंद बिगड़ गया। सभा में उपस्थित देवगणों को यह बहुत बुरा लगा। यह देखकर देवेंद्र भी रूष्ट हो गए। संगीत एक पवित्र साधना है। इस साधना को भ्रष्ट करना पाप है, अतः क्रोधवश इन्द्र ने पुष्पवती तथा माल्यवान को शाप दे दिया – ‘संगीत की साधना को अपवित्र करने वाले माल्यवान और पुष्पवती! तुमने देवी सरस्वती का घोर अपमान किया है, अतः तुम्हें मृत्युलोक में जाना होगा। गुरुजनों की सभा में असंयम और लज्जाजनक प्रदर्शन करके तुमने गुरुजनों का भी अपमान किया है, इसलिए इन्द्रलोक में तुम्हारा रहना अब वर्जित है, अब तुम अधम पिशाच असंयमी का-सा जीवन बिताओगे।’
देवेंद्र का शाप सुनकर वे अत्यंत दुखी हुए और हिमालय पर्वत पर पिशाच योनि में दुःखपूर्वक जीवनयापन करने लगे। उन्हें गंध, रस, स्पर्श आदि का तनिक भी बोध नहीं था। वहीं उन्हें असहनीय दुःख सहने पड़ रहे थे। रात-दिन में उन्हें एक क्षण के लिए भी नींद नहीं आती थी। उस स्थान का वातावरण अत्यंत शीतल था, जिसके कारण उनके रोएं खड़े हो जाते थे, हाथ-पैर सुन्न पड़ जाते थे, दांत बजने लगते थे।एक दिन उस पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा – ‘न मालूम हमने पिछले जन्म में कौन-से पाप किए हैं, जिसके कारण हमें इतनी दुःखदायी यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है? पिशाच योनि से नरक के दुःख सहना कहीं ज्यादा उत्तम है।’ इसी प्रकार के अनेक विचारों को कहते हुए अपने दिन व्यतीत करने लगे।भगवान की कृपा से एक बार माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन इन दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और न ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन मात्र फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और महान दुःख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। उस दिन सूर्य भगवान अस्ताचल को जा रहे थे। वह रात इन दोनों ने एक-दूसरे से सटकर बड़ी कठिनता से काटी।दूसरे दिन प्रातः काल होते ही प्रभु की कृपा से इनकी पिशाच योनि से मुक्ति हो गई और पुनः अपनी अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गए। उस समय आकाश में देवगण तथा गंधर्व इनकी स्तुति करने लगे। नागलोक में जाकर इन दोनों ने देवेंद्र को दण्डवत् किया। देवेंद्र को भी उन्हें उनके रूप में देखकर महान विस्मय हुआ और उन्होंने पूछा – ‘तुम्हें पिशाच योनि से किस प्रकार मुक्ति मिली, उसका पूरा वृत्तांत मुझे बताओ।’देवेंद्र की बात सुन माल्यवान ने कहा – ‘हे देवताओं के राजा इन्द्र! श्रीहरि की कृपा तथा जया एकादशी के व्रत के पुण्य से हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।’
इन्द्र ने कहा – ‘हे माल्यवान! एकादशी व्रत करने से तथा भगवान श्रीहरि की कृपा से तुम लोग पिशाच योनि को छोड़कर पवित्र हो गए हो, इसलिए हम लोगों के लिए भी वंदनीय हो गए हो, क्योंकि शिव तथा विष्णु-भक्त हम देवताओं के वंदना करने योग्य हैं, अतः आप दोनों धन्य हैं। अब आप प्रसन्नतापूर्वक देवलोक में निवास कर सकते हैं।’ हे अर्जुन! इस जया एकादशी के उपवास से कुयोनि से सहज ही मुक्ति मिल जाती है। जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत कर लेता है, उसने मानो सभी तप, यज्ञ, दान कर लिए हैं। जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक जया एकादशी का व्रत करते हैं, वे अवश्य ही सहस्र वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं।”
एकादशी की पूजन सामग्री सूची –
- सुपारी
- अनार
- आंवला
- लौंग
- बेर
- धूप
- दीप
- घी
- पंचामृत (दूध (कच्चा दूध), दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण)
- तुलसी दल
- चंदन- लाल
- मिष्ठान (तिल से बने हुए)
इन चीजों का त्याग करें –
- इस व्रत में नमक, तेल, चावल अथवा अन्न वर्जित है।
- मांस खाना।
- मसूर की दाल का त्याग।
- चने का शाक।
- कोदों का शाक।
- मधु (शहद) ।
- दूसरे का अन्न।
- दूसरी बार भोजन करना।
- स्त्री प्रसंग।
- व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए।
- इस दिन पान खाना, दातुन करना, दूसरे की निंदा करना तथा चुगली करना एवं पापी मनुष्यों के साथ बातचीत सब त्याग देना चाहिए।
- इस दिन क्रोध, मिथ्या भाषण का त्याग करना चाहिए।
- कांसे के बर्तन में भोजन करना।
आशा करते है कि Ekadashi vrat katha के बारे में सम्बंधित यह लेख आपको पसंद आएगा एवं ऐसे लेख पढ़ने के लिए हमसे फेसबुक के माध्यम से जुड़े।