“हाथों से उखाड़ते हैं सिर,चेहरा, दाढ़ी और मूंछों के बाल”, क्या है जैन मुनियों की केशलोचन प्रक्रिया?

आखिर जैन मुनि ऐसा क्यों करते हैं? इसके पीछे उनकी क्या आस्था है?

know about Kesh lochan ritual in Jainism

Source- TFI

जैन समुदाय में मुनि बनने के लिए काफी कष्टों का सामना करना पड़ता है। ये तो आप जानते ही होंगे कि जैन मुनि कड़ाके की ठंड में भी बिना वस्त्रों के ही रहते हैं। कहा जाता है कि वो हमेशा जमीन पर ही सोते हैं। लेकिन आपको ये जानकर आश्यर्च होगा कि जैन मुनि अपने बालों को कैची से नहीं काटते या रेजर से साफ नहीं करते बल्कि वो अपने बालों को हाथ से उखाड़ते हैं। आप समझ सकते हैं कि शरीर से बालों को उखाड़ना कितना कष्टदायक होता होगा। कहा जाता है कि कई बार ऐसा करने से जैन मुनियों का खून भी निकल जाता है। जैनि मुनियों द्वारा बालों को उखाड़ने की क्रिया को केशलोंच कहा जाता है। आखिर जैन मुनि ऐसा क्यों करते हैं इसके पीछे उनकी क्या आस्था है? चलिए जानते हैं।

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कठिन तपस्या है केशलोंच

दरअसल, बताया जाता है कि मुनि शरीर की सुंदरता को नष्ट करने और अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए केशलोंच करते हैं। केशलोंच के समय उनकी ये भावना रहती है कि बाल उखाड़ने के कष्ट के साथ उनके पाल कर्म भी दूर हो रहे हैं।  जैन साधु जब केशलोंच करते हैं तो आत्मा की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है। अपने आत्म सौंदर्य बढ़ाने के लिए कठिन साधना करते हैं। इससे संयम का पालन भी होता है। जब यह केशलोंच करते हैं तो इनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखने को मिलती है क्योंकि कैशलोंच के समय मुनियों को उफ्फ तक करने की अनुमति नहीं होती है।

केशलोंच करते समय जैन मुनि कंडे की राख का उपयोग करते हैं। कहा जाता है ऐसा जैन मुनि इसलिए करते हैं जिससे केशलोंच के दौरान पसीने के कारण हाथ न फिसल जाएं और खून निकलने से कोई रोग न फैले। केशलोंच करना जैन मुनियों की तपस्या का एक अनिवार्य हिस्सा है। इस दौरान वो घास फूस की तरह अपने हाथों से सिर, मूंछ और दाढ़ी के बालों को उखाड़ते हैं।

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जूते-चप्पल भी नहीं पहनते

बता दें कि जैन समुदाय में श्‍वेतांबर और दिगंबर दो वर्ग हैं। श्वेतांबर जैन समुदाय का वो वर्ग है जो सफेद रंग के वस्त्र पहनकर रहते हैं। वहीं दिगंबर पूरे जीवन बिना वस्त्रों के ही व्यतीत करते हैं। दिगबंर वर्ग के मुनियों का ही हाथों से बाल उखाड़ना उनके जीवन का हिस्सा है। आपको बता दें कि जैन मुनि भीषण गर्मी हो या सर्दी, कपड़ों तो वो पहनते ही नहीं। इसके अलावा वो जूते या चप्‍पल भी नहीं पहनते हैं। इसके पीछे मुनियों का तर्क है कि जूते या चप्‍पल बनाने के लिए जीव हिंसा होगी साथ ही इससे उनके अहिंसा व्रत के कठोर पालन में बाधा उत्पन्न होगी। जिसके चलते मुनि भीषण गर्मी में भी नंगे पैर सड़कों पर पैदल चलकर लंबी लंबी यात्राएं करते हैं।

कहा जाता है कि जैन मुनि दो से चार महीने के अंतराल में एक बार केशलोंच करते हैं। जैन मुनियों के केशलोंच को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। जानकारी के मुताबिक जिस दिन जैन मुनि कैशलोंच करते हैं उस दिन वो मौन रहते हैं और उस दिन उपवास भी रखते हैं ताकि केशों के लुंचन से बालों में होने वाले जीवों को जो घात हुआ या जो उन्हें कष्ट हुआ उसका प्रयाश्चित हो सके।

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