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जेएनयू कैसे बन गया वामपंथियों का अड्डा?

इस लेख में जानेंगे कि जेएनयू वामपंथ का गढ़ कैसे बना और वो कौन से कारण थे जिसके चलते जेएनयू की नींव में वामपंथी विचार का पत्थर लगा दिया गया।

TFI Desk द्वारा TFI Desk
8 January 2023
in प्रीमियम
How JNU turned into a den of leftists

SOURCE TFI

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देश की राजधानी नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय स्थिति है जो  आए दिन यहां के छात्रों की हरकतों के चलते देशभर में चर्चा का विषय बना रहता है। वामपंथ का गढ़ कहे जाने वाले इस विश्वविद्यालय के छात्र कभी सरकार विरोधी नारे लगाते हैं तो कभी देश विरोधी। आज हम जेएनयू के विवादों में रहने के मूल कारण यानी यहां के वामपंथ के इतिहास की परतों को टटोलते हुए जानेंगे कि जेएनयू वामपंथ का गढ़ कैसे बना और वो कौन से कारण थे जिसके चलते जेएनयू की नींव में वामपंथी विचार का पत्थर लगा दिया गया। आइए इन सभी सवालों के जवाबों को खोजते हुए विस्तार से चर्चा करते हैं।

साल 1966, देश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी। इसी साल संसद में एक अधिनियम लाया गया जिसका उद्देश्य राजधानी दिल्ली में शोध के लिए एक विश्वविद्यालय तैयार करना था। अधिनियम संसद में पास हुआ और 1969 में देश के पहले प्रधानमंत्री और इंदिरा गांधी के पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर बनकर तैयार हुआ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय। जिसे हम जेएनयू के नाम से जानते हैं। खैर ये तो हुई जेएनयू बनने की एक लघुकथा लेकिन जेएनयू का बनना देश में एक बड़ा परिवर्तन था।

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और पढ़ें- अगर वामपंथियों की ओर झुकाव न हुआ होता तो आज टाटा, बिड़ला, अंबानी की रेस में होता ‘मोदी परिवार’

लेकिन प्रश्न यह है कि जेएनयू पर वामपंथी कैसे हावी होते चले गए। इनके कारण कुछ इस तरह हैं।-

इंदिरा गांधी का वामपंथ की ओर झुकाव

जेएनयू में वामपंथियों के हावी होने का सबसे पहला कारण था इंदिरा गांधी का वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव। भारतीय इतिहास में इसके अनेकों उदाहरण देखने के लिए मिलते हैं जिसमें सबसे बड़ा उदाहरण है आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और सेक्युलर जैसे शब्दों को जानबूझकर जोड़ना। इंदिरा गांधी द्वारा लिया गया यह फैसला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वे वामपंथी विचारों से पूर्ण रूप से प्रभावित थीं। इसीलिए जब जेएनयू बनाया गया तो वहां चुन-चुनकर वामपंथी विचारों को रखने वाले शिक्षकों को नियुक्त किया गया और आज हालात ये हैं कि जेएनयू में पूर्ण रूप से वामपंथी हावी हो चुके हैं। यही नहीं आज के जेएनयू में वामपंथी न होने पर छात्रों के साथ भेदभाव भी किया जाता है। जिसकी आए दिन खबरें टीवी और समाचार पत्रों में देखने और सुनने के लिए मिलती रहती हैं।

और पढ़ें- दोस्त दोस्त न रहा – ये गीत नहीं राजेन्द्र कुमार के प्रति राज कपूर की कुंठा थी

जेएनयू में छात्र संघ का प्रारंभ

जेएनयू में छात्र संघ का प्रारंभ दूसरे विश्वविद्यालयों की तरह नहीं हुआ था बल्कि इसकी शुरूआत स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में Foreign Student’s Association (FSA) के रूप में हुई थी। इसका उद्देश्य विदेशी छात्रों और भारतीय छात्रों के बीच संबंध स्थापित करना था। इस संघ में जो भी छात्र थे उनकी विचारधारा मिली जुली थी लेकिन जब प्रकाश करात यूनाइटेड किंगडम से पढ़कर लौटे और जेएनयू आए तो यहां पर छात्र संघ में सक्रिय हो गए। प्रकाश करात, सीपीआई(एम) के पी.सुंदरय्या और ई.एम.एस. नंबूदरीपाद ने मिलकर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की स्थापना की और एसआईएस संघ को एसएफआई के नेतृत्व वाले संघ के साथ मिला दिया गया।

इसके बाद जेएनयू में धीरे-धीरे वामपंथी गढ़ तैयार होता चला गया। जेएनयू में छात्र ही नहीं वामपंथी विचाधारा से प्रभावित शिक्षक भी बढ़ते चले गए और आज भी वहां पर वामपंथी विचाधारा के लोग हैं। वर्तमान समय में जेएनयू में कई अलग-अलग राजनीतिक दलों के छात्र संघ हैं लेकिन अधिकतर छात्र संघ के अध्यक्ष वामपंथी पार्टियों के ही बने हैं।

और पढ़ें- महान विजयनगर साम्राज्य की अद्भुत कहानी, जिसे दरबारी इतिहासकारों ने इतिहास में जगह ही नहीं दी

वामपंथी विचारों का प्रभाव

प्रारंभिक समय में जेएनयू में वामपंथ विचारों की लड़ाई हुआ करती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे वामपंथी जेएनयू को अपनी बपौती समझने लगे और हद तो तब हो गई जब जेएनयू में एक के बाद एक भारत विरोधी गतिविधियां की गईं। इसके कई उदाहरण हैं जिनमें से कुछ की बात करते हैं।

2001 का मुशायरा

दरअसल, जेएनयू में कारगिल युद्ध के बाद एक मुशायरे का आयोजन किया गया जिसमें कई गजलें पढ़ी गईं। इस मुशायरे को लेकर आरोप लगते हैं कि गजलें पाकिस्तान के समर्थन में भी पढ़ी गईं थीं और जेएनयू में उपस्थित दो जवानों ने जब इसे रोकने का प्रयास किया तो जवानों को बुरी तरह पीट दिया। ये मामला उस समय भाजपा सांसद बीसी खंडूरी ने संसद में भी उठाया था।

2005 में हुई नारेबाजी

2005 में जेएनयू कैंपस में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के काफिले को रोक उनके खिलाफ नारेबाजी भी की गई थी। इसका कारण ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिकी प्रस्ताव का भारत द्वारा समर्थन करना था। इस मामले के बाद जेएनयू में कई छोटी बड़ी घटनाएं होती रही हैं।

साल 2016 में लगे देश विरोधी नारे

साल 2016 में हुई घटना तो आप सभी को याद ही होगा किस प्रकार आतंकी अफजल गुरू की फांसी को लेकर भारत विरोधी नारे लगाने के आरोप लगते हैं। जिसमें तत्कालीन जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे नाम सामने आए थे। आरोपी उमर खालिद की बात करें तो उसे अभी 2020 में दिल्ली दंगे के आरोप में तिहाड़े जेल में रखा गया है।

यदि जेएनयू के वामपंथी गढ़ होने के पीछे के कारणों को देखें तो कई अलग-अलग कारण पाएंगे। लेकिन मुख्य कारण कांग्रेस का वामपंथी विचारों की ओर झुकाव और जेएनयू की शुरुआत में ही विदेशों से पढ़कर आए प्रकाश करात जैसे छात्रों द्वारा छात्र संघ की स्थापना करना है।

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Tags: इंदिरा गाँधीजेएनयूभारतीय इतिहासमनमोहन सिंह
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