स्वतंत्रता के बाद की बात करें तो देश के समृद्ध राज्यों में केरल सबसे पहले आता है। एक समय था जब शिक्षा के क्षेत्र में केरल को दूसरे राज्यों के लिए प्रेरणा के रूप में देखा जाता था लेकिन अब परिस्थितियां कुछ और ही हैं। यहां की सरकार की गलत नीतियों के कारण युवा केरल में रहने के लिए तैयार ही नहीं हैं। केरल में युवाओं की संख्या घटती जा रही है और किसी राज्य में ऐसा होना चिंता का विषय है लेकिन पिनराई विजयन सरकार इस पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे केरल का भविष्य अधर में दिखने लगा है, वहीं राज्य को उबारा जा सके इसके लिए विजयन सरकार को अब जाग जाना चाहिए।
बेरोजगारी और युवाओं का पलायन
रोजगार के अवसर नहीं होने के कारण शिक्षित युवा बड़े पैमाने पर केरल से पलायन कर रहे हैं और आगे और भी तेजी से यहां से युवाओं के पलायन करने का अनुमान है। केरल राज्य की जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु के युवाओं का 23% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 50.1% है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक केरल से युवाओं के पलायन करने की संख्या 32 लाख से बढ़कर 60 लाख होने का अनुमान है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि केरल बहुत तेजी से बूढ़ा हो रहा है और इसके लिए जिम्मेदार वहां की कम्युनिस्ट पार्टी की गलत नीतियां हैं।
केरल से युवा प्रतिभा के पलायन करने का प्रमुख कारण रोजगार की कमी है। केरल की अर्थव्यवस्था के आंकड़े बेहद डरावने हैं। बता दें कि वित्त वर्ष 2022 में केरल ने दूसरे राज्यों से 1.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया और अन्य राज्यों से सिर्फ 55,000 करोड़ रुपये का निर्यात किया। जिससे केरल को लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का व्यापार घाटा झेलना पड़ा जो सीधे केरल की जनता की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है। ऐसे में युवाओं को केरल में अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा है जिसके चलते वो केरल छोड़कर जा रहे हैं।
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राजनीतिक मॉडल
केरल का राजनीतिक मॉडल राज्य को पीछे धकेलने का काम कर रहा है। राजनीतिक पार्टियों ने राज्य के विकास से जुड़ी आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले सकारात्मक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने के बजाय राज्य को बर्बाद करने वाले दृष्टिकोण को अपनाया हुआ है। राजनीतिक बहसें पूरी तरह से पार्टी-लाइन पर होती हैं न कि विषयों की योग्यता पर।
केरल में वामपंथियों की अनैतिक मानसिकता ने वहां के आमजनमानस को बहुत हानि पहुंचाई है। शिक्षित प्रदेश होने का एकतरफा प्रचार दिखाकर केरल की वामपंथी सरकारों ने केरल को बर्बाद कर दिया है। पूंजीवाद के विरोध में अंधे हो चुके कम्युनिस्ट पार्टियां राज्य को गर्त में ले जाने का काम कर रही हैं। यदि स्थितियां ऐसी ही रहीं तो भविष्य में भी केरल आर्थिक रूप से सुधर नहीं पाएगा और देश के विकास में भागीदार भी नहीं हो पाएगा।
भारत के विकास में भागीदारी
वैश्विक रूप से कई विचारकों और अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि यह शताब्दी एशिया का है और इसका नेतृत्व भारत करेगा। भारत सरकार के द्वारा लिए जा रहे एक के बाद एक निर्णय देश को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत कर रहा है। अब समझने वाली बात ये है कि भारत के विकास में देश के अन्य राज्यों की तो भागीदारी होगी लेकिन अगर केरल की सरकार का रवैया ऐसा ही ठंडा बना रहा तो इसका असर देश के विकास पर भी पड़ेगा, ये भी कह सकते हैं कि विकास की ओर बढ़ रहे भारत के पैरों को केरल पीछे की ओर खींच सकता है। बता दें कि अक्टूबर 2019 से मार्च 2022 तक पिछले 2.5 वर्षों में भारत को बाहरी निवेश में 142 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए और केरल की हिस्सेदारी 0.42 प्रतिशत यानी 0.6 बिलियन डॉलर की रही है। इसी से आंकिए कि केरल की देश के विकास में कितनी भागीदारी है।
कुल मिलाकर इसमें कोई संदेह नहीं है कि केरल बहुत तेजी से बूढ़ा हो रहा है और वजह वहां की कम्युनिस्ट सरकार की गलत नीतियां हैं। राज्य के विकास की सबसे बड़ी बाधा कम्युनिस्टों की राजनीतिक विचारधारा बनी हुई है। ऐसे में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के हस्तक्षेप की भी आवश्यकता है। हालांकि पलायन कर रही देश की प्रतिभा से सीएम पिनाराई विजयन जरा भी चिंतित नहीं दिखते हैं। राज्य को उनके जागने की सख्त आवश्यकता है अगर वो नहीं जागे तो प्रतिभाएं इसी तरह केरल छोड़कर बाहर जाती रहेंगी और राज्य पीछे रह जाएगा।
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