Ganga Vilas Cruise: पर्यटन और विकास एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं। अगर किसी देश में विकास होगा तो निश्चित ही पर्यटन बढ़ेगा और पर्यटन बढ़ेगा तो विकास की रफ्तार में स्वाभाविक तौर पर वृद्धि होगी। पर्यटन पर दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था टिकी हुई हैं। श्रीलंका इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है। भारत भी यह जानता है। यही कारण है कि वो अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजकर पर्यटन को विस्तार देने की कोशिश कर रहा है। फिर चाहें वो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर हो या महाकाल कॉरिडोर… सभी का उद्देश्य संस्कृति का विस्तार देने के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देना भी है। अब समस्या यह है कि भारत जब इसमें आधुनिकता का तड़का लगा देता है तो कथित वैश्विक ताकतों को इससे सबसे अधिक परेशानी होती है और वे यह दिखाने की कोशिश करने लगते हैं कि भारत किस तरीके से पर्यावरण और जल संसाधनों की बर्बाद कर रहा है।
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Ganga Vilas Cruise प्रोजेक्ट है बेहद खास
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धर्मनगरी काशी में जहां आधुनिकता और इतिहास का संगम करा रहे हैं तो वहीं दुनिया को भारत की संस्कृति से अवगत कराने के लिए नए नए प्रोजेक्ट को शुरू कर रहे हैं। एक ऐसा ही प्रोजेक्ट ‘गंगा विलास प्रोजेक्ट’ (Ganga Vilas Cruise) है। कुछ दिनों पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। इसके तहत फाइव स्टार होटल की सुविधाओं से लैस क्रूज से लोग 3200 किलोमीटर का सफर तय कर सकेंगे।
Ganga Vilas Cruise वाराणसी के घाट से होकर असम के डिब्रूगढ़ तक जाएगा। अपने सफर के दौरान यह अनेकों बेहतरीन जगहों और धार्मिक स्थलों पर रूकेगा, जहां लोग भारतीय धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर से रूबरू हो सकेंगे। बता दें कि इस क्रूज में यात्रियों को सभी तरह की लग्जरी सुविधाओं का लाभ मिलेगा। खाने पीने से लेकर सोने और रेस्टोरेंट्स तक की सुविधाओं से लैस Ganga Vilas Cruise पर्यटन के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है। माना जा रहा है कि ऐसे ही अलग-अलग रूटों पर भी क्रूज का संचालन किया जाएगा। अहम बात तो यह है कि अभी से क्रूज की यात्रा के लिए टिकट मार्च 2024 तक बुक हो चुके हैं।
पर्यायवरण का देने लगे ज्ञान
विशेष बात यह है कि Ganga Vilas Cruise प्रोजेक्ट को लेकर तो अलग तरह के विरोध राष्ट्रीय स्तर पर हो ही रहे थे। वामपंथी मीडिया वर्ग के लोगों से लेकर संस्थानों तक ने आर्टिकल्स और ट्वीट के माध्यम से गंगा विलास प्रोजेक्ट को भारत की संस्कृति और मां गंगा के लिए खतरा बताया है। परंतु अब इस मामले में विदेशी मीडिया भी कूद गया है। लंदन के अखबार द गार्डियन ने भी दावा किया है कि कैसे यह गंगा विलास प्रोजेक्ट मां गंगा की शुद्धता का नाश कर देगा और कैसे आने वाले समय में गंगा का जल और अधिक दूषित हो जाएगा। ‘द गार्जियन’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा में Ganga Vilas Cruise और भारी स्टीमर चलने के कारण ऐसी परंपरा शुरू हो सकती है, जिससे न केवल गंगा नजदी में ट्रैफिक बढ़ेगा बल्कि तमाम किस्म का प्रदूषण भी बढे़गा। जिसका सीधा प्रभाव गंगा नदी में मिलने वाली डॉल्फिन पर पडे़गा। पहले ही ये प्राणी दुर्लभ जीवों की श्रेणी में आता है।
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भारतीय वामपंथियों के विरोध का तो पता है लेकिन जब विदेशी मीडिया भारत को ज्ञान देता है तो एक ही कहावत याद आती है- सूप बोले तो बोले, चलनी भी बोले जिसमें 7,200 छेद। द गार्डियन और न्यूयॉर्क टाइम्स के जिन पत्रकारों ने यह लेख लिखा है क्या पता वे भी अमेरिका या लंदन के किसी क्रूज पर बैठकर लिख रहे हों। छोटी से छोटी नहरों तक में बिजनेस और पर्यटन के लिहाज से जलमार्गों का उपयोग करने वाले पश्चिमी देश अब भारत को जलमार्ग के संचालन के नुकसान गिना रहे हैं।
लेखक अनीश गोखले ने इस संबंध में ट्वीट किया और पश्चिमी देशों दोगलेपन को उजागर किया। उन्होंने लिखा- “पश्चिमी देशों को पर्यावरण का सबसे पहले स्वयं ध्यान देने की आवश्यकता है। वे भारत को जलमार्गों को लेकर ज्ञान न दें।” इस दौरान उन्होंने पूरा भेद खोल दिया कि आखिर कब से जलमार्गों पर क्रूज से लेकर अलग-अलग तरह के जहाजों का संचालन शुरू हुआ। साथ ही अनीश ने यह भी बता दिया कि जलमार्गों के माध्यम से पर्यटन में बड़ी क्रांति ला चुके देशों के सीने पर भारत के प्रोजेक्ट को लेकर सांप लोट रहे हैं।
While environmental concerns should be addressed, buddhi jeevis should not be allowed to hijack India's Inland Water Transport and destroy it.
We are already behind the whole world. pic.twitter.com/hmMoyREC3V
— Aneesh Gokhale (@authorAneesh) January 15, 2023
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पश्चिम का दोगलापन
अटलांटिक महासागर और लेक सुपीरियर के बीच 600 किलोमीटर का जलमार्ग है। इसे सेंट लॉरेंस समुद्री मार्ग कहा जाता है। इस रूट का उपयोग करीब 170 मीटर से अधिक ऊंचे क्रूज और जहाज संचालित करने के लिए किया जाता है। इस रूट पर चलने वाले 200 मीटर जहाज अमेरिका के मिड वेस्ट तक सामानों को पहुंचाते हैं। इसके अलावा 1895 में जर्मनी ने कील नहर विश्व की सबसे व्यस्ततम नहर है। कील नहर उत्तरी सागर को बाल्टिक सागर से जोड़ती है। खासकर यूरोप के व्यापार के क्षेत्र से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
वहीं चीन की बात करें तो यहां की यांग्त्जी नदी पर शंघाई से चोंगकिंग शहर तक करीब 1000 टन के जहाज गुजरते हैं। यह जलमार्ग कुल 1700 किलोमीटर लंबा है। 1869 में भारत और यूरोप की दूरी को आधा करने वाली स्वेज नहर को बनाया गया था। ये नहर खोली गई और कुछ ही दशकों में व्यापारिक क्रांति देखने को मिली लेकिन उस दौरान भारत गुलाम था और सारा काम पश्चिमी देशों ने किया था तो सब सही माना गया। हाल ही में भारत की सबसे बड़ी नदी ब्रह्म पुत्र पर 90 मीटर लंबा एक जहाज ट्रांसपोर्ट के लिए उतारा गया था।
बता दें कि समुद्री पर्यावरण की रक्षा के लिए दुनियाभर में कड़े कानून हैं। किसी भी नदी में आप भोजन को पानी में नहीं फेंक सकते है। इसके अलावा समुद्री जीवन को संरक्षित करने के लिए उत्सर्जन, गति प्रतिबंध को नियंत्रित करने के लिए कानून हैं परंतु इन कानूनों को पश्चिम ने कितना सम्मान किया है यह अपने आप में सबसे बड़ा सवाल है। ऐसे में पश्चिम का भारत में क्रूज के संचालन पर टिप्पणी करना यह दर्शाता है कि भारत का तेजी से हो रहा विकास पश्चिमी देशों से अब देखा नहीं जा रहा है, इसलिए वे तरह तरह के अड़ंगे डालने के लिए नौटंकी करते रहते हैं।
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