अकबर-बीरबल की जोड़ी और बीरबल के चतुराई भरे कारनामों के किस्से-कहानियां बच्चों से लेकर बूढ़ों तक और महिलाओं से लेकर पुरुषों तक सभी लोग सुनते आ रहे हैं। आज भी अकबर-बीरबल के नाम से कई कहानियां लोगों के बीच प्रचलित हैं। परंतु तब क्या जब इतने सालों से मनोरंजित करने वाले किस्से-कहानियों के बारे में आकर कोई कहे कि जिन कहानियों को आप इतिहास समझकर बड़ा आनंद लेकर सुन व पढ़ रहे हैं वह तो झूठ है क्योंकि बीरबल नाम का तो कोई व्यक्ति ही नहीं हुआ था। तब कहानी सुनने वाले व्यक्ति को एक बार झटका अवश्य लगेगा और सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि मैं तो जिसे इतिहास समझकर पढ़ व सुन रहा था वह तो झूठ निकला।
अकबर-बीरबल से इतर भारत के इतिहास की समीक्षा की जाए तो बहुत हद तक हमें यह देखने के लिए मिलता है कि इतिहासकारों ने अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए गलत नज़रिए से इतिहास लिखा है। अकबर-बीरबल की कहानियां भी कुछ इसी प्रकार की प्रतीत होती हैं। इसीलिए आज हम विभिन्न तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास करेंगे कि बीरबल नाम का कोई व्यक्ति नहीं था और न हीं कोई इतिहास में अकबर-बीरबल की जोड़ी हुआ करती थी। यह महज मनगढ़ंत कहानियां हैं, जो इतने सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग एक दूसरे को सुनाते आ रहे हैं।
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काल्पनिक चरित्र का निर्माण किया गया?
दरअसल, मध्यकालीन भारत के इतिहास में मुगल सल्तनत के नवरत्नों की बात होती है तो बीरबल का नाम अवश्य लिया जाता है। उनके बारे में बताया जाता है कि वे एक बुद्धमान व्यक्ति थे और उनकी चतुराई की ख्याति उस समय के सभी दरबारों में हुआ करती थी। उनका असली नाम महेश दास बताया जाता है। लेकिन इतिहास का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि मुगल दरबार में तो बीरबल नाम का कोई व्यक्ति हुआ ही नहीं बल्कि 1509 ई. से 1529 ई. के बीच हुए राजा कृष्णदेव राय के दरबार में तेनाली रमन या तेनाली राम नाम के सलाहकार के कारनामों और बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर बीरबल नाम के एक काल्पनिक चरित्र का निर्माण किया गया है।
असल में बीरबल के नाम पर जो कहानियां सुनाई जाती हैं वो तेनाली रमन की हैं। तेनाली रमन कर्नाटक के राजा कृष्णदेव राय के एक अच्छे मित्र और सलाहकार थे। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, तेनाली रमन ने कई बार साम्राज्य की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कृष्णदेव को कई बार दरबारी षड्यन्त्रों से भी बचाया। राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरान यह जोड़ी पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्ध हुई थी जिस पर बाद में कई प्रकार की कहानियां बनाई गईं।
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अकबरनामा में भी बीरबल का जिक्र नहीं
मुगल सल्तन के सबसे प्रभावशाली शासक अकबर ने 1556 ई. से 1605 ई. तक शासन किया था। साथ ही अकबर के इतिहास को अकबरनामा और आईन-ए-अकबरी के रूप में लिपबद्ध किया गया है। लेकिन बीरबल के अस्तित्व को लेकर इन दोनों किताबों का अध्ययन किया जाता है तो इस नाम के किसी भी व्यक्ति का उल्लेख नहीं मिलता है। न हीं अकबर-बीरबल की जोड़ी के बारे में कोई कहानी मिलती है। इसके अलावा आश्चर्यचकित करने वाली बात तो यह है कि अकबर के शासन करने के 200 वर्ष बाद माथिर अल-उमरा नाम के एक ग्रंथ में बीरबल नाम का जिक्र किया गया जबकि अकबर के काल में रचित अकबरनामा और आईन-ए-अकबरी में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। यही नहीं अकबर एक अनपढ़ राजा और शासन को चलाने के लिए अपने मंत्रियों पर निर्भर था। लेकिन 18वीं शताब्दी में आई माथिर अल-उमरा में अकबर को राजा कृष्णदेव राय की भांति साहित्य प्रेमी, कवियों और साहित्यकारों को प्रोत्साहन देने वाला बताया गया है। आजादी के बाद इतिहासकारों ने इसी प्रकार की किताबों को आधार बनाकर इतिहास की रचना की और अकबर को एक महान राजा बनाकर प्रस्तुत कर दिया।
यदि बीरबल के अस्तित्व के बारे में संक्षेप में कहा जाए तो इस प्रकार का कोई भी व्यक्ति मुगल दरबार में नहीं हुआ था। बल्कि अकबर को महान और दयालु दिखाने के लिए राजा कृष्णदेव राय की जीवन गाथाओं को अकबर के नाम से बताकर लोगों के नाम से प्रस्तुत किया गया है।
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