पेशवा बालाजी विश्वनाथ: अखंड भारत, कुछ लोगों को यह सिद्धांत हास्यास्पद प्रतीत होता है परंतु एक समय ऐसा भी था जब कश्मीर से कन्याकुमारी ही नहीं, गांधार से लेकर बंगाल तक हमारा था और मौर्यकाल में अखंड भारत की जो कल्पना आचार्य चाणक्य ने की थी वो कई पीढ़ियों तक विद्यमान रही। परंतु निरंतर आक्रमणों के कारण इस अखंड भारत का कद कम हो गया। औरंगज़ेब के उदय से पूर्व ही अखंड भारत का अस्तित्व मिटने लगा था।
मुगलों के विरुद्ध क्रांति
परंतु 1658 से मुगलों के विरुद्ध जो क्रांति का बिगुल फूंका गया, उसका परिणाम एक शताब्दी के बाद सामने आया, जब “कटक से अटक” तक, हिंदवी स्वराज्य का प्रताप भारतवर्ष में फैलने लगा। इसकी नींव भले ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी हो परंतु इसे आगे जिसने बढ़ाया, उस योद्धा और उनके परिवार को आज भी उनका उचित सम्मान नहीं मिल पाया। हम बात कर रहे हैं पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट की जिन्होंने पेशवाई को वास्तव में उसकी पहचान दिलाई और जिन्होंने हिंदवी स्वराज्य स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यूं तो पेशवा एक फारसी शब्द है, और इसका प्रयोग प्रारंभ में दक्खन में स्थित बाह्मनी सल्तनत में भी होता था, परंतु इसका अर्थ था – नेता, जो श्रेष्ठ हो। 1674 में राज्याभिषेक के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस पद का नाम बदलकर “पंतप्रधान” कर दिया, जो उनके मंत्रिमंडल “अष्टप्रधान” का नेतृत्व करता परंतु लोग तब भी अधिकतम पेशवा का ही उपयोग करते। आधिकारिक रूप से मोरोपंत पिंगले मराठा साम्राज्य के प्रथम पेशवा थे परंतु वे भी छत्रपति शिवाजी के अधीन थे।
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पंतप्रधान या पेशवा इतना शक्तिशाली कैसे हुआ
परंतु पंतप्रधान या पेशवा छत्रपति से भी शक्तिशाली कैसे हुए? इसके लिए हमें औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात के भारत पर ध्यान देना होगा। औरंगज़ेब ने मराठा साम्राज्य को अपने अधीन करने का प्रयास किया था, परंतु वे इसमें पूर्णत्या सफल नहीं हो पाए। संभाजी महाराज की जघन्य हत्या ने मराठा समुदाय के आत्मविश्वास को तोड़ने के बजाए और अधिक सशक्त कर दिया और 1710 आते आते उनकी शक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी। इसी बीच 1713 में सतारा में छत्रपति शाहू प्रथम ने एक चितपावन ब्राह्मण को उसकी योग्यता एवं उसके धर्मपरायणता के बल पर अपना पेशवा नियुक्त किया। इनका नाम था पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट, और इन्होंने पेशवाई की महिमा बढ़ाई।
ये पेशवा बालाजी विश्वनाथ ही थे जिन्होंने न केवल छत्रपति शाहू महाराज के शत्रुओं को बिना एक तीर चलाए उनका विनाश निश्चित किया बल्कि जब महारानी ताराबाई के सिर पर सत्ता का लोभ हावी होने लगा तो बालाजी विश्वनाथ ने ही बिना अपनी सीमा लांघे मराठा साम्राज्य को इस अंतरद्वंद्व के दुष्परिणामों से बचाया। इतना ही नहीं उनके प्रमुख शत्रु चंद्रसेन जाघव, ऊदाजी चव्हाण और दामाजी योरट को भी परास्त किया। उनकी स्थिति सुदृढ़ कर महाराष्ट्र को पारस्परिक संघर्ष से ध्वस्त होने से बचा लिया।
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बालाजी की कूटनीति
इतना ही नहीं, पेशवा ने सशक्त सारखेल कान्होजी आंग्रे से समझौता कर (1714) शाहू महाराज की मर्यादा तथा राज्य की अभिवृद्धि की। इसी कूटनीति के बल पर बालाजी विश्वनाथ ने अपना कद ऐसा बना लिया कि मराठा साम्राज्य में सर्वोच्च पद भले ही छत्रपति का हो परंतु शासन मुख्य रूप से पेशवा के हाथ में ही होगा, जिन्होंने पूना [पुणे] को अपना निवास बना लिया था।
इनकी कूटनीति ऐसी थी कि उन्होंने मुगलों को भी अपने अधीन करने की नींव रख दी। अद्भुत कूटनीतिज्ञता उनकी विशेषता मानी जाती है। पेशवा बालाजी विश्वनाथ की पत्नी का नाम राधा बाई था, जिनसे उन्हें दो पुत्र एवं दो कन्याएं हुईं। जब 1720 में उनका निधन हुआ तो लोगों को प्रतीत हुआ कि पेशवाई कहीं खतरे में न पड़ जाए। परंतु उसी समय उद्भव हुआ उनके ज्येष्ठ पुत्र का, जिनका नाम था बाजीराव बल्लाड़ और जिन्हें इतिहास पेशवा बाजीराव के नाम से जानता है। इनके नेतृत्व में पेशवाई ने अपनी शक्ति बधाई और मराठा साम्राज्य में सत्ता का स्थानांतरण अब सतारा से सीधा पूना होने लगा।
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पेशवा बाजीराव
फिल्मों और टीवी सीरियल के माध्यम से भले ही पेशवा बाजीराव को “बाजीराव मस्तानी” के रूप में ही प्रसिद्ध होना दिखाया जाता हो परंतु वास्तव में वे इस प्रसंग से कहीं बढ़कर थे। वे वर्तमान वंशवाद के ठीक विपरीत एक कुशल राजनीतिज्ञ एवं योद्धा थे, जिनके नेतृत्व में मराठा साम्राज्य ने न केवल अपना विस्तार किया अपितु भारतवर्ष में प्रमुख स्थान प्राप्त किया। इनके नेतृत्व में मराठाओं ने मुगलों को उन्हीं के गढ़ दिल्ली में ऐसा कूटा कि फिर उनका आधिपत्य दिल्ली के आसपास तक ही सिमट कर रह गया। अगर वे 1740 में असामयिक मृत्यु को नहीं प्राप्त हुए होते तो किंचित ही यूरोपीय साम्राज्यवादी भारत को अपना दास बना पाते।
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पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने पेशवाई का मान बढ़ाया
लौटते हैं पेशवा बालाजी विश्वनाथ पर तो, पेशवाई उसके गौरव को बढ़ेंने में जो भूमिका बालाजी विश्वनाथ ने निभाई उसे हम नहीं भुला सकते हैं। अनाधिकारिक रूप से गणतांत्रिक भारत की नींव इन्होंने ही रखी, जहां राजा नहीं, प्रधान की भूमिका सर्वोपरि होगी। ये हमारा दुर्भाग्य है कि कुछ निर्लज्ज जातिवादियों ने इनके प्रतिष्ठा पर कीचड़ उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ी, अन्यथा इस देश के नीति निर्माण में इनका भी महत्वपूर्ण योगदान था।
Sources –
History of the Maratha – James Grant Duff
Fall of the Mughal Empire – Sir Jadunath Sarkar
Rise of the Peshwas – H N Sinha
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