Tripura assembly elections 2023: 2014 के बाद की स्थितियों पर ध्यान दें तो पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी केवल उत्तर के हिन्दी-क्षेत्र की ही पार्टी नहीं रह गयी है बल्कि यह पार्टी सभी के लिए है और विशेष रूप से उत्तर-पूर्व की ओर तो इस पार्टी ने अधिक दिया है। ज्ञात हो कि थोड़े समय पहले तक उत्तर-पूर्वी भाग को उग्रवाद और खराब परिवहन नेटवर्क ने इस भूमि को भारत से अलग-थलग किया हुआ था। कांग्रेस की उदासीनता और इन राज्यों के साथ सौतेले व्यवहार ने उत्तर-पूर्वी भाग को पिछड़ा बना दिया था लेकिन अब मोदी सरकार में इस क्षेत्र का तीव्र गति से विकास किया जा रहा है।
अमित शाह की घोषणा
हाल की बात करें तो त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव (Tripura assembly elections 2023) इसी साल होने हैं जिसके चलते बीजेपी समेत सभी राजनैतिक पार्टिया तैयारियों में जुट गई हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने त्रिपुरा पहुंचकर वहां कहा कि 1 जनवरी 2024 तक अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। अमित शाह का त्रिपुरा में जाकर राम मंदिर को लेकर ऐसी घोषणा करना दर्शाता है कि भाजपा यहां अपने विकास के एजेंडे को तो आगे रखने ही वाली है साथ ही पार्टी हिन्दुत्व पर भी मुखर रहेगी।
त्रिपुरा एक ऐसा राज्य है जहां भाजपा ने वामपंथ के किले को ध्वस्त किया है, वहीं कांग्रेस को पूरी तरह खत्म ही कर दिया है। ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा यहां एनडीए के घटक दलों के साथ मिलकर प्रचंड जीत हासिल कर सकती है और यह पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हो सकता है लेकिन आखिर किन कारणों से ऐसा कहा जा रहा है, चलिए इसे भी समझते हैं।
और पढ़ें- “झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो, जो भी बोल सकते हो झूठ बोलो”, बस इतनी-सी है केजरीवाल की राजनीति
विधानसभा चुनाव
सबसे पहले बात विधानसभा चुनावों की करें तो 2018 त्रिपुरा की 60 सीटों में से बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा छूते हुए 35 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने अपनी सहयोगी आईपीएफटी के साथ कुल 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं सीपीएम को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई। बीजेपी ने 43% वोट हासिल किए थे, इसके अलावा आईपीएफटी ने 7.5% वोट हासिल किए। दूसरी ओर 2013 के विधानसभा चुनाव में 60 में से 50 सीट जीतने वाले सीपीएम नीत वाम मोर्चे ने इस बार महज 42.7 प्रतिशत मत हासिल किए थे। सबसे ज्यादा दिक्कत की बात कांग्रेस के लिए रही जो कि मात्र 1.8 प्रतिशत वोट ही पा सकी। विशेष यह है कि बीजेपी ने ऐसी सफलता महज पांच वर्षों में ही प्राप्त की है।
बता दें कि बीजेपी ने 2008 के विधानसभा चुनाव में भी अपनी किस्मत आजमाई थी लेकिन नतीजे उसके लिए बुरे सपने से कम नहीं थे। बीजेपी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। उस चुनाव में सीपीएम को 46 सीट (48% वोट) और कांग्रेस को 10 सीट (36.38% वोट)) पर जीत मिली। 2008 में टीएमसी की स्थिति नहीं सुधरी, उसके सभी 22 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।
और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: बड़ी जीत के साथ मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए तैयार है भाजपा
2018 का प्रदर्शन
2008 में जमानत जब्त होने के बाद भी पार्टी ने 2013 में पुनः प्रयास किया और उस चुनाव में भी 50 में से 49 उम्मीदवार एक बार फिर अपनी जमानत नहीं बचा पाए। सीपीएम इस चुनाव में 48 फीसदी वोट शेयर के साथ 49 सीट लाकर सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही थी। वहीं कांग्रेस 36.53% वोट शेयर के साथ 10 सीटें जीत पाई थी। इसके बाद प्रयासरत भाजपा ने पांच वर्षों में ही वामपंथ के क्रूर शासन को राजनैतिक सूझबूझ के दम पर बर्बाद कर दिया था।
बता दें कि 1998 से लेकर 2018 तक माणिक सरकार के नेतृत्व में माकपा की सरकार थी। 2018 में बिप्लव देव के नेतृत्व में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया। 2018 से पहले त्रिपुरा में पार्टी का एक पार्षद तक नहीं था लेकिन बिप्लव देव ने अपने प्रयासों से पासा पलट दिया। बिप्लव देव ने बूथ स्तर पर काम किया, कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए चुनाव जीतने के लिए जी तोड़ मेहनत की।
साल 2023 (Tripura assembly elections 2023) के लिहाज से त्रिपुरा के जातिगत समीकरणों की बात करें तो भाजपा पर इनका सीधा प्रभाव पड़ता सकता है और ऐसा होना उसके लिए बड़ी चुनौती है। यहां एसटी 32 फीसदी है जो यहां के 40 सीटों पर सीधा प्रभाव रखते हैं। ऐसे में भाजपा इन्हें साधने के लिए पूरा प्रयास करेगी। बीजेपी के सामने इस बार कुछ कड़ी चुनौतियां भी हैं। बीजेपी को सत्ता में वापसी के लिए The Indigenous Progressive Regional Alliance या टिपरा मोथा से मिलने वाली चुनौती से भी निपटना होगा। पूर्व शाही परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा की अगुवाई वाला यह क्षेत्रीय संगठन है। त्रिपुरा के आदिवासियों के बीच पिछले तीन साल के भीतर टिपरा मोथा (Tipra Motha) की पैठ अच्छी खासी बन गयी है। ये त्रिपुरा के आदिवासियों के लिए ग्रेटर टिपरालैंड के नाम से अलग राज्य की मांग कर रहा है।
और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए कठिन है सत्ता की राह
त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्र
अप्रैल 2021 में हुए त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद (TTAAD) के चुनावों में टिपरा मोथा ने BJP-IPFT गठबंधन को चुनौती दी और 28 में से 18 सीटों को जीत लिया। त्रिपुरा में 60 में से 20 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए और 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया हैं। इन सीटों के अलाव सामान्य 40 सीटों में से भी कई पर इनका प्रभाव है। 2018 में इनके वोटबैंक से ही भाजपा ऐतिहासिक जीत पा सकी। त्रिपुरा की आबादी में एसटी समुदाय की भागीदारी 32% है।
त्रिपुरा में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 9 प्रतिशत है। ईसाई जनसंख्या 4.5 प्रतिशत के आस-पास हैं। टीएमसी के साथ ही कांग्रेस और सीपीएम भी इन समुदायों के वोटों को पाना चाहेंगी। इन समुदायों का वोट किसी एक के साथ जाना भाजपा के लिए सही नहीं होगा लेकिन ऐसी चुनौतियों का सामना करना भाजपा जानती है।
भाजपा ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी यहां अच्छा प्रदर्शन किया था। इसके अलाव उपचुनावों से लेकर नगर निकाय चुनावों में बीजेपी गठबंधन का प्रदर्शन बेहतरीन रहा था। हालांकि पार्टी को यहां पर आंतरिक गतिरोधों पर थोड़ा काम अवश्य करना होगा। आंतरिक गतिरोध के कारण ही बिप्लव देब को सीएम पद से भी हटाना पड़ा था और नये सीएम माणिक साहा बने थे। पार्टी के भीतर चलने वाले गतिरोध के कारण भाजपा के 5 विधायक टूट गए, जबकि गठबंधन के 8 विधायक भी विपक्ष के साथ हो लिए। ऐसे में आंतरिक रूप से पार्टी को विशेष ध्यान देना होगा।
और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: कर्नाटक में भाजपा को सत्ता दोबारा मिल जाएगी लेकिन…
वामपंथी शासन से त्रस्त थी जनता
वामपंथी शासन से त्रस्त जनता को बीजेपी ने एक बड़ी राहत दी है। जानकारों का मानना है कि भाजपा ने यहां पिछले 5 वर्षो में अच्छी सरकार चलाई है। केंद्र की मदद से राज्य सरकार ने जनहित की योजनाएं लागू कर कोरोना काल में भी लोगों को राहत पहुंचाने का काम किया है। वामपंथियों ने आर्थिक और सामाजिक आधार पर त्रिपुरा में जो बर्बादी की थी उसे भाजपा ने अच्छे से साफ किया गया है।
इसके अलावा भाजपा Tripura assembly elections 2023 के घोषणापत्र के लिए हर घर यात्रा करने जा रही है जिससे जनता से संपर्क स्थापित किया जा सके। इसके अलावा पार्टी ने ही जन विश्वास यात्रा शुरू की थी।
माना जा रहा है कि त्रिपुरा में IPFT अब उतनी मजबूत नहीं रही है जितनी 2018 में थी। भाजपा को इस गैप को भी भरना होगा लेकिन पार्टी का नेतृत्व इस पर भी अपनी नजर बनाए हुए है। भाजपा के लिए एक चिंता की बात यह भी है कि पार्टी का वोट प्रतिशत लगभग विपक्षी दलों के बराबर का ही है। ऐसे में इस बार पार्टी को अधिक मेहनत करनी होगी।
और पढ़ें: चुनावी विश्लेषण: क्या विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपामय होगा तेलंगाना ?
भाजपा की वापसी तय
वहीं कांग्रेस और सीपीएम से टूट कर नेता टीएमसी में जा रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए टीएमसी से निपटना भी एक चुनौती ही होगी। विशेष ये है कि पार्टी का प्रदर्शन चुनाव के लिहाज से सुधरा ही है। नगर निकाय चुनाव 2021 में भाजपा ही भाजपा रही। उसने 334 सीटों में से 329 सीटें जीत ली थी। लेफ्ट उभरने की कोशिश कर रहा है लेकिन भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसा काम किया है कि अब जनता का मूड उसे जड़ी बूटी देने वाला नहीं लग रहा है, जनता को विकास देखने की आदत हो गयी है। इस तरह स्पष्ट होता है कि इस बार भाजपा अपने चुनौतियों से पार पाते हुए त्रिपुरा में एक बड़ी जाती हासिल कर सकती है।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।