सत्ता गई, पार्टी गई और चला गया प्रभाव, इसके बाद भी उद्धव ठाकरे की अकड़ नहीं गई। जब चुनाव आयोग ने शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह सीएम एकनाथ शिंदे को देकर उनके गुट को आधिकारिक शिवसेना बना दिया तो उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया।
राज्यपालों पर हमलावर उद्धव
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के फैसले को बरकरार रखा था, तो उद्धव गुट को करारा झटका लगा। प्रत्येक संवैधानिक संस्था पर हमला बोलने के बाद अब उद्धव ठाकरे राज्यपालों पर हमलावर हैं।
दरअसल, अब उद्धव ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके खेमे के शिवसेना विधायकों के विरुद्ध लंबित अयोग्यता की कार्यवाही पर निर्णय किया जाए। उद्धव गुट का कहना है कि संविधान की लोकतांत्रिक भावना को कायम रखने का यही एकमात्र तरीका होगा। उद्धव ठाकरे को अभी भी न जाने किस बात की उम्मीद है कि वह अभी भी अपनी पार्टी बचा लेंगे।
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उद्धव गुट ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पिछले साल शिंदे को ऐसे समय में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाने के फैसले पर सवाल उठाया जबकि उनके तथा अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता कार्यवाही विधानसभा उपाध्यक्ष के समक्ष लंबित थी। उद्धव ठाकरे समूह ने आरोप लगाया है कि संवैधानिक पदों पर बैठे राज्यपाल जैसे लोग देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में उद्धव गुट का केस लड़ रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष कहा कि सभी जानते हैं कि जब राज्यपाल ने सुबह-सुबह एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई थी और कुछ ही समय बाद उस व्यक्ति को इस्तीफा देना पड़ा था तो क्या हुआ था। कपिल सिब्बल बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के 2019 में शपथ लेने के 80 घंटे के भीतर इस्तीफा देने के घटनाक्रम का उल्लेख कर रहे थे।
कंपनी की तरह चलाई पार्टी
उद्धव गुट की तरफ से बोलते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि तत्कालीन राज्यपाल यह जाने बिना किसी व्यक्ति को मुख्यंमंत्री के रूप में कैसे शपथ दिला सकते हैं कि वह सदन में बहुमत हासिल कर सकता है या नहीं?
उन्होंने आगे कहा कि क्या राज्यपाल ऐसे व्यक्ति को शपथ दिला सकते हैं जिसके खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई लंबित है। राज्यपालों ने हाल ही में अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से परे काम किया है, दुर्भाग्य से उन्होंने देश की राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
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इसके साथ हीं उद्धव ठाकरे गुट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी गई कि वह महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष को सात दिनों के भीतर विद्रोही विधायकों के विरुद्ध लंबित अयोग्यता की कार्यवाही पर फैसला करने का निर्देश दे।
गौरतलब है कि 30 जून 2022 को तत्कालीन गवर्नर भगतसिंह कोश्यारी ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना के विद्रोही विधायकों और बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया था और अब उद्धव गुट का कहना है कि वह शपथ असंवैधानिक थी, क्योंकि वे सभी विधायक अयोग्य हैं।
उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को एक कंपनी की तरह चलाना उच्च चाहा था। साल 2018 में शिवसेना के संविधान बदलकर उद्धव ठाकरे ने एक ऐसा प्रावधान किया कि सारी नियुक्ति उनके हाथ में आ गईं। इसके अलावा पार्टी में चाटुकारिता ही ऊंचाई तक जाने का आधार बन गई।
इन सारे मुद्दों को देखने के बाद ही चुनाव आयोग ने पार्टी शिंदे गुट को दी है लेकिन उद्धव ठाकरे केवल अपने पिता की विरासत होने के नाते ही पार्टी पर दावा ठोक रहे थे, जबकि शिवसेना कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं बल्कि राजनीतिक सामाजिक संगठन है।
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