“भैया, मेरे मुंह से निकल गई, मेरी ज़बान टूट गई हाय….!” यह मीम कब यथार्थ में परिवर्तित हो गया, पता ही नहीं चला। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कभी जनता को ठेंगा दिखाने वाले और उन्हें बॉयकॉट करने की चुनौती देने वाले अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap), अरविन्द केजरीवाल से दीक्षा ले रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ दिनों से इनके मुख से ‘सॉरी’ कुछ ज्यादा ही प्रस्फुटित हो रहा है। कभी अभय देओल से भिड़ने के लिए सॉरी, कभी बॉलीवुड के दोयम दर्जे के फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए सॉरी और कभी तो सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) को उल्टा सीधा बोलने के लिए सॉरी। परंतु इतनी सॉरी सेहत के लिए ठीक नहीं, कुछ तो गड़बड़ है! इस लेख में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या अनुराग कश्यप की क्षमायाचना में वास्तव में कोई दम है या फिर ये वामपंथियों द्वारा जनता को मूर्ख बनाने की नई टेकनीक है।
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SSR को लेकर ‘ग्लानि’
अनुराग कश्यप पिछले कुछ दिनों से काफी बदले बदले से नज़र आ रहे हैं। जहां भी जाते हैं, क्षमा मांगते दिखाई पड़ते हैं। कुछ साक्षात्कारों से तो यही प्रतीत होता दिखाई दे रहा है। एक साक्षात्कार में जहां उन्होंने अभय देओल वाले प्रकरण पर अपने विचार स्पष्ट किये और कहा कि वो पहले जैसे नहीं रहे, तो वहीं दूसरी ओर वो सुशांत सिंह राजपूत वाले विषय पर ग्लानि जताते हुए दिखाई पड़े और कहा कि उन्हें अफसोस है कि वो सुशांत सिंह राजपूत के साथ फिल्म नहीं कर पाए।
अरी बाप रे, ये तो बड़े सिद्ध पुरुष निकले, ऐसा लग रहा है कि उन्हें अपनी गलतियों का आभास है। परंतु प्रश्न यह उठता है कि अनुराग (Anurag Kashyap) ने ऐसा क्या किया था जिसके पीछे उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा? असल में वर्ष 2020 में जब “दिल बेचारा” OTT पर प्रदर्शित होने वाली थी तो अनुराग कश्यप ने स्पष्ट किया था कि सुशांत अटेन्शन का भूखा था और विश्वासघाती भी।
फिल्मफेयर को दिये उनके साक्षात्कार के अनुसार, “मुकेश छाबड़ा मेरे ऑफिस से काम करता था। हम हंसी तो फंसी बना रहे थे। हमने वो फिल्म सुशांत सिंह राजपूत (SSR) के साथ शुरू की थी परंतु उसे YRF (यश राज फिल्म्स) के साथ फिल्म करने की इच्छा थी। उसने एक बाहरी की फिल्म को ठुकरा कर YRF के साथ शुद्ध देसी रोमांस की। सुशांत YRF और धर्मा जैसे प्रोडक्शन हाउस के अटेन्शन का भूखा था। अब कुछ लोग उसकी मृत्यु का इस्तेमाल कर दूसरों को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं।”
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अभय देओल प्रकरण
ये तो हुई सुशांत सिंह राजपूत की बात, तो अभय देओल (Abhay Deol) के साथ क्या हुआ? असल में अनुराग कश्यप और अभय देओल ने “देव डी” की थी, जो इनका एक साथ प्रथम और अंतिम प्रोजेक्ट था और साथ में अनुराग की प्रथम सक्सेस भी। कुछ समय पूर्व अभय ने अनुराग के उन आरोपों का खंडन किया था, जहां पर महोदय ये फरमा रहे थे कि अभय चूंकि देओल परिवार से संबंधित था, इसलिए वह नखरेबाज़ था और उसने कई बार अनुराग को सताया भी। इसी के जवाब में अभय देओल ने कहा था कि वह बार बार तो स्पष्टीकरण नहीं दे सकते परंतु इतना अवश्य कहेंगे कि अनुराग जैसा दोगला और निकृष्ट व्यक्तित्व कहीं और नहीं देखने को मिलेगा।
परंतु महोदय यहीं पर नहीं रुके। अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) ने अपने साक्षात्कार में यह भी कहा कि कैसे बॉलीवुड की छवि दोयम दर्जे के फिल्मों और अन्य फिल्म उद्योगों, जैसे हॉलीवुड की सस्ती कॉपी करके खराब हुई है। आपको भी अलग रहा होगा कि अनुराग कश्यप के मुंह से ऐसी बातें कैसे निकल सकती है, वो ऐसा कैसे बोल सकते हैं? इसलिए नहीं क्योंकि अनुराग कश्यप को ‘आत्मबोध’ हो रहा है परंतु इसलिए क्योंकि कुछ भी जेन्युइन प्रतीत नहीं होता।
‘ऐसे लोग बदल ही नहीं सकते’
ऐसा क्यों? इन तीन बातों पर प्रकाश डालिए। यह बयान उस समय आए हैं, जब अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) की फिल्म “ऑल्मोस्ट प्यार विद डीजे मोहब्बत” (Almost Pyaar With DJ Mohabbat) 3 फरवरी को प्रदर्शन हेतु तैयार है। इसके अतिरिक्त जब पठान प्रदर्शित हुई तो भाईसाब ने इसके प्रोमोशन में कोई कसर नहीं छोड़ी और यहां तक कह दिया कि शाहरुख खान ही उद्योग में एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं, जिनके रीढ़ सुदृढ़ हैं, अर्थात् वो साहसी हैं। वो और बात है कि सबसे बड़े चाटुकार का पुरस्कार अभी भी संयुक्त रूप से ‘जॉन अब्राहम’ और ‘तरण आदर्श’ के पास है।
परंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) ने एक माह पूर्व यह कहा था कि RRR जैसी फिल्मों की आड़ में लोग एजेंडावाद से फिल्म उद्योग को दूषित करते हैं, वो भी तब जब इसके निर्माता अमेरिका एवं जापान में अपनी फिल्म का प्रचार प्रसार कर रहे थे और ऑस्कर पुरस्कारों के लिए दावेदारी ठोंक रहे थे। ऐसे में अगर अनुराग कश्यप के उपर्युक्त बयानों को देखा जाए तो यह सिर्फ और सिर्फ एक नया टूलकिट प्रतीत होता है, जिसके माध्यम से वो अपनी छवि बदल कर दिखाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन यह सर्वविदित है कि ऐसे लोगों में बदलाव आ ही नहीं सकता।
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