चीन का अति महत्वाकांक्षी BRI प्रोजेक्ट अपनी अंतिम सांसें ले रहा है, आंकड़ों पर आधारित विस्तृत विश्लेषण

'सुपर पावर' बनने का दांव उल्टा पड़ गया!

BRI प्रोजेक्ट

Source: The Voice of Kathmandu

BRI प्रोजेक्ट: चीन ने जिस बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के द्वारा विश्व में महाशक्ति बनने की उम्मीद पाली थी वो BRI प्रोजेक्ट ख़त्म होने की कगार पर है। चीन अबतक इस प्रोजेक्ट में 1 ट्रिलियन डॉलर झोंक चुका है, लेकिन हमारे सामने जो आंकड़े हैं वो बताते हैं कि BRI प्रोजेक्ट अपनी अंतिम सांसें ले रहा है, और वो दिन दूर नहीं जब आधिकारिक तौर पर स्वयं चीन ही इस प्रोजेक्ट के खत्म होने का ऐलान करने को मजबूर हो जाएगा।

BRI प्रोजेक्ट का ऐलान

वर्ष 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने BRI प्रोजेक्ट् का आधिकारिक तौर पर ऐलान किया। इस प्रोजेक्ट के द्वारा चीन की नियत एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में अपने आधिपत्य को स्थापित करने की थी।

चीन ने इस अति महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में छोटे-बड़े मिलाकर दुनियाभर के 150 देशों को जोड़ लिया। शुरू से ही भारत ने BRI प्रोजेक्ट से बाहर रहना चुना। भारत ने सिर्फ बाहर रहना ही नहीं चुना बल्कि आधिकारिक तौर पर प्रोजेक्ट की आलोचना भी की।

BRI के तहत ही चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर CPEC भी बना रहा है और यह सीपैक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। भारत का इस पर सख्त विरोध है और भारत ने इसे उसकी अखंडता और संप्रभुता पर हमला बताया है।

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ऐसे में अब एक बड़ा प्रश्न यह है कि चीन के BRI प्रोजेक्ट की फंडिंग का क्या सिस्टम है- इसके तहत जो भी सड़कें-पुल-फ्लाईओवर- या दूसरे निर्माण कार्य किए जाते हैं, उसके लिए पैसे कहां से आते हैं?

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के आंकड़ों के अनुसार, 292 बिलियन डॉलर यदि चीन BRI प्रोजेक्ट पर लगाता है, तो इसकी फंडिंग अलग-अलग चीनी बैंकों के द्वारा होती है। अपनी स्क्रीन पर आ रहे है, इस पाई चार्ट को देखिए।

इसके अनुसार 150 बिलियन डॉलर चीन की 4 बड़ी सरकारी कर्मशियल बैंके देती हैं- 110 करोड़ चाइना डेवलेपमेंट बैंक देती है, 24 करोड़ एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ चाइना देती है, 4 करोड़ सिल्क रोड फंड से आता है, 2 करोड़ एशिया इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक से और 2 करोड़ न्यू डेवलपमेंट बैंक से आता है।

BRI प्रोजेक्ट के लिए पैसा कहां से आता है?

निम्न आय वाले देशों को कर्ज

 

2022 के आंकड़ों के अनुसार निम्न आय वाले देशों पर द्वपक्षीय संबंधों के तहत लिया गया दुनिया का कर्ज 24 प्रतिशत है, जबकि इकलौते चीन का कर्ज इन देशों पर 37 प्रतिशत है। भारतीय रणनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार इससे इतर एक सत्य यह भी है कि 42 देशों के ऊपर चीन का कर्जा इससे कहीं ज्यादा है, जोकि कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया। इस कर्ज पर चीन कितनी दर से ब्याज लेता है, इसे भी सार्वजनिक नहीं किया गया।

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चीन के BRI प्रोजेक्ट में शामिल होने वाले देशों को कर्ज देने के लिए चीन उस संबंधित देश में सड़क-रेल-बंदरहगा-भूमि और आधारभूत संरचना में निवेश का रास्ता अपनाता है।

आइए, एडडेटा के आंकड़ों के अनुसार देखते हैं कि इस तरह से चीन से कर्ज लेकर कौन-सा देश आज कहां खड़ा है?

इन देशों की स्थिति को और अच्छे से समझने के लिए हमें भारतीय उपमहाद्वीप के तीन देशों श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश की स्थिति को समझना होगा।

श्रीलंका चीन के ऋण जाल में फंसकर पहले से ही बर्बादी की कगार पर पहुंच चुका है। अभी हाल ही में IMF ने कहा था कि वो श्रीलंका को ऋण चुकाने के लिए 10 वर्ष की मोहलत दे सकता है लेकिन इसके लिए चीन और भारत को मोहलत के कागजातों पर हस्ताक्षर करने होंगे।

भारत ने श्रीलंका को मोहलत देने के लिए हामी भर दी लेकिन चीन ने इन पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। चीन ने इस दौरान कहा कि वो सिर्फ 2 वर्षों की मोहलत श्रीलंका को दे सकता है।

चीन का गुप्त कर्ज जाल

 

पाकिस्तान को भी चीन ने इसी तरह से अपने कर्ज जाल में फंसा रखा गया है। पाकिस्तान ने चीन से कितना कर्ज लिया है? कितनी दर पर कर्ज लिया है? कोई भी जानकारी पाकिस्तान सार्वजनिक नहीं कर सकता क्योंकि चीन कर्ज देने से पहले ही ऐसे शर्तें लागू कर देता है।

चीन का सार्वजनिक और छिपा हुआ कर्ज।

बांग्लादेश की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। बांग्लादेश अभी हाल ही में IMF से कर्ज मांगने पहुंचा है। बांग्लादेश ने IMF से 4.5 बिलियन डॉलर का कर्जा मांगा है।

चीन इसी तरह से BRI प्रोजेक्ट वाले देशों के ऊपर शर्तें लगाकर उन्हें कर्ज देता है। इस बार ग्राफ से समझिए कि कितना कर्ज चीन ने किन देशों को इस तरह दे रखा है जिसकी कोई जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं करवाई गई।

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इस बार ग्राफ में नारंगी रंग जहां तक है, इन देशों पर इतने बिलियन का कर्ज तो सार्वजनिक है, लेकिन जहां से हल्का नीला रंग शुरू होता है- उतना कर्ज इन देशों ने चीन से छिपाकर ले रखा है- अर्थात उसकी जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है।

शी जिनपिंग भले ही इसके लिए प्रसन्न हो सकते हैं कि उन्होंने अपने BRI प्रोजेक्ट में 150 देशों को शामिल कर लिया है, लेकिन जैसी स्थितियां बन रही हैं, इन छोटे-छोटे देशों की जो आर्थिक स्थिति है, जिस तरह से यह दिवालिया होने की स्थिति में खड़े दिखाई देते हैं- उससे चीन की अर्थव्यवस्था को भी बड़ा छटका लगने की पूरी संभावना है। जबकि पिछले वर्ष ही चीन का रियल स्टेट सेक्टर क्रैश होने से वहां का बैंकिस सिस्टम पहले से ही बुरी स्थिति में है।

चीन ने कर दिए हाथ खड़े

 

ऐसे में अब प्रश्न यह है कि क्या अब चीन ने भी BRI प्रोजेक्ट पर हाथ खड़े कर दिए हैं? जिन देशों से चीन का अति महत्वकांक्षी BRI प्रोजेक्ट निकलता है, उन देशों में निवेश में चीन निरंतर कमी कर रहा है।

 

BRI प्रोजेक्ट वाले देशों में चीन का निवेश।

 

इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिवर्ष चीन जिन देशों में उसका BRI प्रोजेक्ट है, उनमें निवेश कम कर रहा है। अर्थात चीन सीधे तौर पर भले ही ना स्वीकारे लेकिन आंकड़े यही कह रहे हैं कि चीन ने गलती कर दी है।

जिन देशों ने चीन से तमाम कर्ज ले रखा था, कोरोना वायरस महामारी के बाद उन देशों की आंखें खुली और उन्हें समझ आया कि वो तो चीन के कर्ज जाल में बुरी तरह से फंस चुके हैं। इसके बाद ही इन देशों ने कर्ज में छूट की, उसकी शर्तें दोबारा तय करने की कोशिशें शुरू की।

ऐसा नहीं है कि चीन ने सिर्फ BRI प्रोजेक्ट वाले देशों में निवेश कम किया है, बल्कि चीन ने BRI प्रोजेक्ट्स को लेकर डील साइज़ में भी कमी कर दी है। 2015 की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में डील साइज़ 21 प्रतिशत छोटा है।

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निवेश के कम होने और डील साइज़ के छोटे होने से निर्माण कार्यों पर सीधा प्रभाव पड़ा है। ऐसे में चीन के लिए शी जिनपिंग के इस अतिमहात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को और आगे ले जाना मुश्किल जान पड़ता है।

BRI प्रोजेक्ट वाले देश जहां चीन के ऋण जाल की कूटनीति को एक तरफ समझ चुके हैं वहीं दूसरी तरफ इन देशों की जनता भी इस प्रोजेक्ट के विरोध में खड़ी हो गई है। पाकिस्तान, अफ्रीका, मालद्वीप और श्रीलंका में पिछले वर्षों से हो रहे प्रदर्शन बताते हैं कि लोग चीन के इस जाल से कितनी अच्छी तरह परिचित हैं।

चीन की बुरी स्थिति

 

एक तरफ जहां चीन एक्सपोज़ हो चुका है वहीं दूसरी तरफ चीन की स्थिति घरेलू मोर्चे पर और भी ज्यादा बदतर हो गई है। कोरोना की मार से चीन की अर्थव्यवस्था अभी भी पूरी तरह उबर नहीं पाई है। स्थिति यह है कि चीन में लोग बैंक से अपने पैसे निकालने के लिए भी प्रदर्शन कर रहे हैं।

दूसरी तरफ रुस-यूक्रेन युद्ध के बाद सप्लाई चेन में भी बड़ा बदलाव हुआ है। कई बड़ी कंपनियां चीन से पलायन कर रही हैं। ऐसे में चीन की जीडीपी पर प्रभाव पड़ना निश्चित है।

चीन के रियल-स्टेट सेक्टर के विनाश के बारे में हम पहले बात कर चुके हैं- ऐसे में जिन बैंकों ने इन रियल-स्टेट में पैसा लगाया था, उनका वो पैसा वापस मिलना भी मुश्किल दिखाई देता है।

अंगोला, ईयूथोपिया, केन्या और श्रीलंका की स्थिति हम आपको बता चुके हैं- ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह देश दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं- ऐसे में चीन यह उम्मीद भी नहीं कर सकता कि इन देशों से उसे अपना कर्ज वापस मिले। जो दिवालिया हो गया वो क्या ही पैसे वापस लौटाएगा।

ऐसे में चीन के BRI प्रोजेक्ट का डूबना ही नियति है। जिस तरह की परिस्थियां बन रही हैं, उनमें और कुछ भी उम्मीद करना बेवकूफी होगी।

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