कांग्रेस एक डूबता हुआ जहाज है। यह बात आए दिन सुनने को मिलती है और पार्टी की हालत इस बात का स्पष्ट संकेत भी दे रही है। पार्टी के सांसद से लेकर विधायक तक पार्टी के साथ खड़े नहीं दिखते हैं।
मध्य प्रदेश तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां कांग्रेस की सरकार विधायकों के बीजेपी की ओर खिसकने के साथ औंधे मुंह गिर गई थीं। अब अगले कुछ महीनों में राज्य में चुनावों का बिगुल बज जाएगा लेकिन कांग्रेस की स्थिति कैसे ही इसे समझने के लिए बस इतना जान लीजिए कि वहां कांग्रेस के नेता आपस में ही लड़ने-भिड़ने में लगे हैं।
कांग्रेस ने जब पिछले साल भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी तो लोगों ने यही मजाक उड़ाया था कि भारत जुड़ा है और कांग्रेस खुद को जोड़े तो बेहतर होगा। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के अहम सूत्रधार मध्य प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का भी लोग इसके चलते ही मजाक उड़ाते थे।
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दिग्विजय का मजाक एक तरफ लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस की स्थिति तो वास्तविकता में दयनीय ही हो गई है। जब दिग्विजय सिंह पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच एकता का मंच लेकर पहुंचे तो वहां कार्यकर्ता और नेता आपस में ही भिड़ गए।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दिग्विजय ने कहा कि भाजपा ने झूठे मतदाता जोड़े हैं। सभी लोग निरंतर बैठक लेकर समन्वय स्थापित करें। यह गुटबाजी हमारे लिए उचित नहीं है। जिसको टिकट मिलेगा उन्हें हमें सहयोग करना चाहिए।
उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि हमें जनता के बीच बीजेपी की कमियों को बताना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ऐसे लोगों को अपना प्रत्याशी बनाएगी, जो बिकाऊ नहीं, बल्कि टिकाऊ होंगे।
दिग्विजय सिंह एमपी के हरदा में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की बैठक लेने गए थे लेकिन बैठक लेने के बाद उनके सामने ही पार्टी की आंतरिक कलह सामने आ गई। वहीं उनके सामने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में चली आ रही गुटबाजी सामने आ गई।
उनके सामने ही टिमरनी के कांग्रेस नेता प्रताप सिंह राजपूत और अनिल वर्मा आपस में उलझ गए और गुत्थम-गुत्था हो गए। इस दौरान वहां मौजूद अन्य नेताओं ने दोनों को अलग कराया लेकिन इस घटना ने चुनाव से पहले कांग्रेस की कलई खोल दी है।
दिग्विजय सिंह का कहना है कि वे बिकाऊ लोगों को टिकट नहीं देंगे लेकिन सवाल तो यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले चुनाव में कांग्रेस को एकता के दम पर चुनाव जिताया लेकिन सिंधिया को पार्टी ने पद प्रतिष्ठा तो दूर की बात, सम्मान तक नहीं दिया।
दिग्विजय सिंह राज्यसभा पहुंच गए और कमलनाथ सीएम बन गए, लेकिन जिन सिंधिया ने पार्टी को एकजुट किया था, उन्हें किनारे कर दिया गया। ऐसे में सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन पकड़ लिया, इसके बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस बिखरती चली गई। आज मध्य प्रदेश में इस हद तक बिखरी हुई है कि इसे संगठन स्तर से खड़ा कितने ही विधानसभा चुनाव निकल जाएं- कहा नहीं जा सकता।
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