हम में राम, तुम में राम, सबमें राम समाया…कुछ भी कहिए लेकिन केजरीवाल की ‘रील राजनीति’ इसी के इर्द गिर्द टिकी हुई है और यही बोल बोलकर उन्होंने बहुत कुछ कमाया है! अब यह कमाई वोट बैंक की हो सकती है, सॉफ्ट हिंदुत्व पॉलिटिक्स की हो सकती है, भ्रष्टाचार की हो सकती है या फिर केजरीवाल के दिमाग में बैठे कूड़े की हो सकती है. फ्री की रेवड़ियां बांटकर जनता की आंखों पर पट्टी बांधने वाले आत्ममुग्ध केजरीवाल भले ही कितने भी हिंदू दिखने की कोशिश कर लें, उनका मन और मस्तिष्क दोनों ही हमेशा तुष्टीकरण में उलझा रहता है. मौलवियों को सैलरी देनी हो, तुष्टीकरण करना हो, इफ्तार पार्टी में जाना हो…केजरीवाल ने हर जगह एक नया आयाम सेट किया है, जिसे अब चुनौती मिलने लगी है. इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि कैसे कथित हनुमान भक्त केजरीवाल को अब हिंदू पुजारियों से ही नफरत होने लगी है.
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दिल्ली में धरने पर पुजारी
दरअसल, अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर पुजारी धरने पर बैठे हुए हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर पुजारी धरना क्यों दे रहे हैं? लेकिन इसके पीछे का कारण बहुत बड़ा है. दिल्ली भाजपा के मंदिर प्रकोष्ठ की अगुवाई में हुए इस प्रदर्शन में शामिल पुजारियों की ये मांग है कि अरविंद केजरीवाल सरकार दिल्ली में जिस तरह से मस्जिद के मौलवियों को हर महीने सैलरी देती है उसी तरह से मंदिर के पुजारियों को भी सैलरी दी जाए. मंदिर प्रकोष्ठ के अध्यक्ष करनैल सिंह ने कहा कि जब टैक्स के पैसे से मौलवियों को वेतन मिल सकता है तो हिंदुओं को मानदेय क्यों नहीं मिल सकता.
जी हां, दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार हर महीने मौलानाओं को सैलरी मुहैया कराती है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो दिल्ली वक्फ बोर्ड की ओर से पंजीकृत करीब 185 मस्जिदों के 255 इमाम और मुअज्जिनों को तनख्वाह दी जाती है. इमामों को 18 हजार तो मुअज्जिनों को करीब 14000 रुपये की सैलरी दी जाती है. वहीं, दिल्ली वक्फ बोर्ड में अनरजिस्टर्ड मस्जिदों के इमामों को 14 हजार और मुअज्जिनों को 12 हजार रूपये हर महीने दिए जाते हैं.
लगातार उठता रहा है यह मामला
पहले भी इस मामले को लेकर बवाल मचता रहा है लेकिन वो क्या है न कि केजरीवाल इसमें पूरी तरह से डूबे हुए हैं और एक समुदाय विशेष के वोट को हासिल करने के लिए ही उनकी ओर से इस कदम को विस्तार दिया गया था. पिछले वर्ष नवंबर में भाजपा सांसद परवेश साहिब सिंह ने दिल्ली के सीएम को एक खत लिखा था, जिसमें उन्होंने यह मांग की थी कि मस्जिदों के मौलवियों की तरह ही, मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारा के ग्रंथियों को भी तनख्वाह दी जाए. परवेश साहिब सिंह ने कहा था कि हमारे संविधान की प्रकृति धर्म निरपेक्षता पर आधारित है. टैक्स भुगतान करने वालों से जो पैसे आ रहे हैं, उसे सिर्फ किसी चुने हुए या किसी एक धार्मिक वर्ग पर खर्च नहीं करना चाहिए. जनता के इन पैसों पर सभी धार्मिक वर्ग के लोगों का अधिकार है.
हालांकि, अब दिल्ली में करीब 1 हजार पुजारी केजरीवाल के घर के बाहर धरने पर बैठे हुए हैं और अपने हक की मांग कर रहे हैं. हालांकि, निष्कर्ष क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है. अगर आपने केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा पर गहनता से ध्यान दिया होगा, तो आपको यह भी पता होगा कि केजरीवाल स्वयं को बजरंगबली का ‘भक्त’ बताते हैं. लेकिन बजरंगबली समेत अन्य मंदिरों के पुजारियों से उन्हें कोई लगाव नहीं है. उपर्युक्त प्रकरण को देखकर तो यही प्रतीत होता है कि उन्हें पुजारियों की हालत से कोई फर्क ही नहीं पड़ता, जिनका जीवन सिर्फ औऱ सिर्फ दान-दक्षिणा आदि से ही चलता है.
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शाहीन बाग की बिरयानी और दिल्ली दंगे
अब आप इसे केजरीवाल का दोमुंहापन नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? किसी ने कभी ठीक ही कहा था कि दोमुंहा सांप और दोमुंहे बुद्धि वाले लोग कभी भी पनप नहीं पाते या यूं कहें कि अपने हाथ से अपनी बर्बादी की कथा लिख देते हैं. अब केजरीवाल के मामले में कुछ ऐसा ही प्रतीत होता दिख रहा है.
सोशल मीडिया पर आपने केजरीवाल की कई तस्वीरें देखी होंगी, जिनमें वो माथे पर त्रिपुंड और गले में रूद्राक्ष का माला पहने दिखे होंगे लेकिन उनके मस्तिष्क में क्या चल रहा है, उसे आप सोशल मीडिया पर फोटो देखकर बिल्कुल नहीं समझ सकते. क्योंकि उनके द्वारा किए गए तुष्टीकरण वाले तमाम कृत्य ऐसे हैं कि वो कितना भी ड्रामा कर लें, कितना भी स्वयं को हिंदू दिखाने की कोशिश कर लें, अयोध्या की 108 बार परिक्रमा कर लें, बाबा विश्वनाथ के चरणों में जाकर अपना माथा रगड़ लें, वो रहेंगे केजरीवाल ही.
मौलवियों को पैसा देना तो एक बड़ा खेल है लेकिन शाहीनबाग की बिरयानी से लेकर दिल्ली दंगे तक में केजरीवाल ने अपना क्या रंग दिखाया, यह बताने की आवश्यकता नहीं है. दिल्ली दंगे में कितने हिंदुओं को बलि का बकरा बना दिया गया, आम आदमी पार्टी के तत्कालीन पार्षद ने कैसे हिंदुओं के नरसंहार का खेल रचा, आप बेहतर जानते होंगे. अमानतुल्लाह खान को लेकर केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का क्या स्टैंड रहा है, आप यह भी जानते हैं. वहीं, केजरीवाल की ‘इफ्तार पार्टी’ और समुदाय विशेष प्रति उनकी निष्ठा को आप नकार नहीं सकते.
इन सबके बावजूद भी समय समय पर अपने हिसाब से या यूं कहें कि अपने लाभ को ध्यान में रखते हुए केजरीवाल बजरंगबली का दर्शन करने पहुंच जाते हैं और मीडिया के सामने आकर यह बयान दे देते हैं कि ‘मैं बजरंगबली का भक्त हूं.’ सोशल मीडिया पर उनकी कथित हिंदू छवि को चमकाने में AAP का आईटी सेल जुट जाता है. फेसबुक, ट्विटर से लेकर व्हाट्सएप ग्रुप तक में उनकी फोटो और वीडियो दिखने लगती है. यानी एक तरह से आम आदमी पार्टी को हिंदुओं की हितैषी बताने का प्रयास किया जाता है. उसे ऐसे प्रोजेक्ट किया जाता है कि आम आदमी पार्टी का गठन ही हिंदुओं के लिए हुआ है.
नोट पर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीर
आपको याद होगा कि हाल ही में अरविंद केजरीवाल ने नोट पर लक्ष्मी और गणेश के फोटो होने की वकालत की थी. प्रेस कॉन्फ्रेंस में केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की तस्वीरों को करेंसी नोट पर छपवाने की अपील की थी। उस दौरान उन्होंने तर्क दिया था कि हिंदू देवताओं लक्ष्मी जी और गणेश जी की तस्वीरों वाले करेंसी नोट से भारतीय अर्थव्यवस्था समृद्ध होगी.
केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि “मैं केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करूंगा कि नये नोटों पर गणेश जी और लक्ष्मी जी की तस्वीरें भी लगायी जाये। यदि इंडोनेशिया ऐसा कर सकता है, तो हम क्यों नहीं?” लेकिन गणेश जी और लक्ष्मी जी की मूर्ति लगाकर उनका आर्शीवाद लेना और नोटों पर उनकी तस्वीर छपवाने में कितना अंतर है, शायद यह आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल नहीं जानते. उनके ऐसे परम ज्ञान चुनाव के समय ही अलग अलग राज्यों में मीडिया के सामने गलती से निकल जाते हैं और उसी के पीछे वह सॉफ्ट हिंदुत्व वाला कार्ड खेलने में लग जाते हैं.
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राम मंदिर और केजरीवाल
इसके अलावा राम मंदिर वाला मामला आपको याद ही होगा कि कैसे फैसला आने के बाद केजरीवाल अपने स्टैंड से 360 डिग्री पलट गए थे. केजरीवाल के राइटहैंड मनीष सिसोदिया अक्सर यह कहते दिखते थे कि विवादित जमीन पर स्कूल या हॉस्पिटल बना देना चाहिए लेकिन जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया, आम आदमी पार्टी अपने बयान से ऐसे पलटी जैसे इंसान को काटने के बाद सांप पलट जाता है. उसके बाद केजरीवाल और कंपनी अयोध्या भी पहुंची और राम लला का दर्शन भी किया.
वहीं, फिर से हिंदुओं को लुभाने हेतु उन्होंने बुजुर्गों को तीर्थयात्रा भेजने वाले अपने प्लान में अयोध्या को भी शामिल कर लिया. यानी दिल्ली से केजरीवाल बुजुर्गों को तीर्थयात्रा हेतु अयोध्या भी भेजते हैं. अब आप क्रोनोलॉजी समझिए कि कैसे कुंठित केजरीवाल हिंदुओं की भावनाओं से लंबे समय से खेल रहे हैं.
आपको बताते चलें कि भ्रष्टाचार को खत्म करने का वादा कर राजनीति में आने वाले केजरीवाल ने सीएम बनते ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था. तुष्टीकरण का खेल भी वो तब से ही खेलते आ रहे हैं. इसके अलावा सेना पर सवाल उठाना हो, देश विरोधी तत्वों का समर्थन करना हो, भाजपा के विरोध में नीचले स्तर तक गिरना हो या फिर अपनी महत्वाकांक्षा के लिए अपने आदर्शों से समझौता करना हो, केजरीवाल ने हर मामले में टॉप किया है. ज्ञात हो कि दिल्ली में पहले इमामों की सैलरी 10 हजार के आस पास थी लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले यानी फरवरी 2019 में इसे बढ़ाकर 18 हजार रूपये कर दिया गया था. अब जब पुजारी अपने हक की मांग कर रहे हैं तो यह कुंठित पार्टी और उसके कथित हिंदू नेता अपने मुंह में दही जमाए बैठे हैं.
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