“हे भगवान! लोकतंत्र पुनः खतरे में है!”
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हुई तार तार!”
“भारत अब नहीं रहा धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु!”
परंतु हुआ क्या? कुछ खास नहीं, बस BBC के दफ्तरों पर छापा डालने का हमारे एजेंसियों ने दुस्साहस किया! इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे BBC और उसके प्रपंचों को एक साहसी दांव से भारत ने चारों खाने चित्त किया? साथ ही कैसे पुनः BBC के भारतीय दास अब इस बात पर पुनः हाय तौबा मचा रहे हैं?
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आयकर विभाग का सर्वे
BBC के सितारे इन दिनों ठीक नहीं है। भारत तो भारत, अपने गृह क्षेत्र ब्रिटेन में भी इसे भीषण आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। एक समय अपने दृष्टिकोण से सम्पूर्ण संसार को प्रभावित करने वाले बीबीसी की अब अपने घर में ही कोई पूछ नहीं है। अब कोढ़ में खाज की भांति बीबीसी के भारतीय दफ्तरों पर आयकर विभाग ने अप्रत्यक्ष छापा डाला है।
हाल ही में बीबीसी वर्ल्ड के दिल्ली और मुंबई में स्थित दफ्तरों में आयकर विभाग के ताबड़तोड़ छापे पड़े हैं। अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं हुआ है, परंतु सूत्रों की मानें तो ये कार्रवाई बीबीसी की अवैध फंडिंग को लेकर की जा रही है। पिछले कई वर्षों से बीबीसी भारत विरोधी प्रोपगैंडा को बढ़ावा देता आ रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह कार्रवाई अभी भी जारी है और इस समय वामपंथियों की रुदाली के अतिरिक्त कुछ भी विशेष नहीं सामने आ रहा है।
उक्त सर्वे अर्जित किए गए लाभ को विदेश भेजने और ट्रांसफर प्राइसिंग रूल्स के उल्लंघन के कारण आयकर विभाग ने यह एक्शन लिया है। इसके पहले अधिकारियों ने इससे संबंधित बीबीसी को कई बार नोटिस भेजा था, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया। आयकर विभाग का मानना है कि हस्तांतरण मूल्य निर्धारण नियमों (Transfer Pricing Rules) को जानबूझकर नजरअंदाज करने और विशाल लाभ को विदेश भेजने के मामले में सर्वे किया। अधिकारियों का यह भी कहना है कि यह छापेमारी या तलाशी नहीं है। आयकर नियमों के तहत इस तरह के सर्वे नियमित रूप से किए जाते हैं।
इन नियमों की अनदेखी के कारण आयकर विभाग ने बीबीसी को कई नोटिस भेजे थे, लेकिन बीबीसी ने जानबूझकर उनका जवाब नहीं दिया। बीबीसी कार्यालय में सर्वे का मुख्य कारण टैक्स का फायदा सहित अनधिकृत लाभों में हेरफेर है। बता दें कि आयकर विभाग ने मंगलवार (14 फरवरी 2023) को बीबीसी के दफ्तर पर यह सर्वे शुरू किया था। कहा जाता है कि उस दौरान अधिकारियों ने कर्मचारियों के मोबाइल और लैपटॉप रखवा लिया था। इसके साथ ही वहां के कर्मचारियों को सहयोग करने के लिए कहा था।
अब बीबीसी भी विरोधाभासी रूख अपना रहा है। एक ओर बुधवार को बीबीसी ने अपने कर्मचारियों को ईमेल कर कहा कि दफ्तर में जारी आयकर सर्वे में सभी कर्मचारी सहयोग करें और उनके सवालों का विस्तृत जवाब दें। वहीं दूसरी ओर बीबीसी ने कर्मचारियों को वेतन से संबंधित जानकारी नहीं देने के लिए कहा है।
बीबीसी कितना वामपंथी एवं भारत विरोधी है, इसके लिए कोई विशेष शोध करने की आवश्यकता नहीं। परंतु इस बार अपनी सीमाएं लांघते हुए बीबीसी ने एक के बाद एक कई ऐसे कारनामे किये, जिसके पीछे भारत की जनता आक्रोशित हुई है। बीबीसी ने गुजरात के दंगों को पुनः केंद्र में लाने का प्रयास करते हुए एक विवादित डॉक्यूमेंट्री भी निकाली, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री [और अब पीएम] नरेंद्र मोदी के कार्यकाल पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।अब ऐसे में लिबरल गिरोह का करुण क्रंदन होना स्वाभाविक था। इनके विलाप की सूची तो अनंत है, जिसमें मोहम्मद ज़ुबैर से लेकर कांग्रेस पार्टी तक सब शामिल है, परंतु सबका एक ही प्रश्न है: हमारे ‘अन्नदाता’ को हाथ कैसे लगाया?
सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने की कोशिश
इस सर्वे को लेकर सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है। सरकार विरोधी तत्वों का कहना है कि बीबीसी ने हाल में एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज की थी, जिसमें गुजरात दंगों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर सवाल उठाया गया था, जिस कारण ही उसके खिलाफ यह कार्रवाई हुई। वो अलग बात है कि इंदिरा गांधी द्वारा इसी प्रकार की कार्रवाई के प्रश्न पर इन्हें सांप सूंघ जाते हैं। इसीलिए जो लोग इस बात को समझ रहे हैं, वे इससे सहमत नहीं है।
इसी बीच अमेरिका ने भी इस सर्वे को लेकर बयान जारी किया है। अमेरिका का कहना है कि वह आयकर विभाग के इस सर्वे से वाकिफ है, लेकिन फिलहाल निर्णय देने की स्थिति में नहीं है। वहीं ब्रिटेन की तरफ कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जबकि पाकिस्तान किसी को भी इस विषय पर आकर्षित करने में अपने फंड रेज़िंग की भांति असफल रहा है।
पर ये बीबीसी के अवैध फंडिंग पर इतने प्रश्न क्यों? कहने को बीबीसी ब्रिटिश सरकार द्वारा पल्लवित पोषित समाचार प्रसारण कॉर्पोरेशन है, परंतु कोविड के पश्चात शनै शनै इसका चीन प्रेम भी सामने आ रहा है। सच्ची खबरों से बीबीसी का उतना ही वास्ता है, जितना रवीश कुमार का नैतिकता से। परंतु बीबीसी पर अब आरोप लग रहे हैं कि वह चीनी संस्थानों से भी अवैध तरीके से फंड्स जुटाने का प्रयास कर रहा है। वहीं BJP से राज्यसभा सांसद और सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने तो आरोप यह तक आरोप लगाए है कि BBC ने चीनी कंपनी से पैसा लेकर भारत विरोधी डॉक्यूमेंट्री बनाई। उनके BBC को चीनी कंपनी हुवेई ने मोदी की छवि खराब करने के लिए पैसा दिया है। अब BBC चीनी एजेंडे को ही आगे बढ़ा रहा है।
ब्रिटिश प्रशासन भी BBC से धीरे धीरे दूरी बनाने लगा
परंतु ये तो मात्र प्रारंभ है, बीबीसी पर तो स्वयं ब्रिटिश सरकार को भी भरोसा नहीं रहा। पीएम मोदी की डॉक्यूमेंट्री पर विवाद तो ताज़ा उदाहरण है, 2021 में कुछ ऐसे खुलासे हुए कि स्वयं ब्रिटिश प्रशासन बीबीसी से धीरे धीरे दूरी बनाने लगा। 2021 में बीबीसी की ओर से पत्रकार Martin Bashir ने वर्ष 1995 में राजकुमारी डायना का इंटरव्यू लिया था। 26 सालों बाद यह खुलासा हुआ है कि Bashir ने इस इंटरव्यू के लिए डायना के भाई पर नकली दस्तावेजों के आधार पर अनैतिक दबाव बनाया था। इस विवादित इंटरव्यू की जांच के नतीजे सामने आने के बाद यह खुलासा हुआ है, जिसके बाद कुछ दिनों पहले ही बीबीसी से इस्तीफ़ा देने वाले Martin Bashir ने अपने उस इंटरव्यू के लिए माफी मांगी है।
माना जाता है कि इस इंटरव्यू के बाद राजकुमारी डायना की मानसिक स्थिति पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा था। इन खुलासों के बाद राजकुमार चार्ल्स विलियम (अब राजा चार्ल्स III) ने बीबीसी की कड़ी निंदा की। William के अनुसार “उस इंटरव्यू के कारण राजकुमारी डायना सदमें में चली गयी थी। अपने आखिरी दिनों में अकेलेपन, डर और घबराहट ने उन्हें अपनी गिरफ्त में कर लिया था। Wales के राजकुमार के साथ उनके रिश्तों पर भी इस इंटरव्यू का काफी बुरा प्रभाव पड़ा था।” William का यह बयान दिखाता है कि स्वयं रॉयल फ़ैमिली भी BBC के इस कांड के सामने आने के बाद इस मीडिया संगठन से खासा नाराज़ चलने लगी।
इस खुलासे के पश्चात तत्कालीन Boris Johnson सरकार ने बीबीसी को कड़ा सबक सिखाने के मूड में आ गयी थीं। ब्रिटेन की तत्कालीन गृह मंत्री प्रीति पटेल ने अपने बयानों से यह संकेत दिया भी दिए थे कि कार्रवाई के तहत बीबीसी के वित्तपोषण में कमी करने का निर्णय लिया जा सकता है। प्रीति पटेल ने तब यह भी कहा था कि “इन खुलासों के बाद BBC को कड़े सबक सीखने ही होंगे। संगठन में बदलाव, इसके ढांचे में, प्रशासन और जवाबदेही के नियमों में परिवर्तन करना होगा।”
परंतु बीबीसी के कारनामों की सूची यही समाप्त नहीं होती। इसके अतिरिक्त हाल ही में जब बीबीसी ने दुर्दांत ISIS आतंकी शमीमा बेगम के प्रति एक संवेदना से परिपूर्ण डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है, जिसका विरोध लगभग समस्त ब्रिटेन ने किया और स्वयं ब्रिटिश सरकार भी इस डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन से प्रसन्न नहीं है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि बीबीसी अब अलग थलग पड़ रहा है और भारतीय एजेंसियों के कार्रवाई से उसे बचाने हेतु वामपंथियों और कट्टरपंथियों का रुदन भी अब किसी काम का नहीं होगा।
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