वीर सावरकर एक ऐसा नाम जिसके जितने प्रशंसक हैं, उतने ही विरोधी भी। इनके और इनके परिवार के बलिदानों पर कम बात की जाती है और एक ऐसे पत्र के लिए इन्हें घेरे में लिया जाता है, जो इनके मस्तिष्क की उपज थी भी नहीं। ऐसे में या तो वीर सावरकर को कभी फिल्मी पर्दे पर दिखाया ही नहीं गया या फिर अगर चर्चा भी हुई, तो केवल और केवल उनके कथित “क्षमा पत्र” के लिए। परंतु क्या आपको ज्ञात है कि एक ऐसी भी फिल्म बनी थी, जहां वीर सावरकर को उनके मूल स्वरूप में दिखाया गया और सेल्युलर जेल में उनके साथ साथ अन्य क्रांतिकारियों को जिस प्रकार की यातनाएं मिली, उसका भी निष्पक्ष चित्रण किया गया?
प्रियदर्शन की अद्भुत फिल्मों में से एक है कालापानी
आजकल भारतीय सिनेमा और उसके प्रशंसकों के सोच विचार में काफी बदलाव आया है। परंतु एक समय ऐसा भी था, जब उत्कृष्ट फिल्मों को केवल इसलिए अस्वीकार किया जाता था, क्योंकि वह कमर्शियल नहीं होती थी। जो प्रियदर्शन आज अपनी “स्लैपस्टिक कॉमेडी” के लिए चर्चा में रहते हैं, वह कभी कभी गंभीर फिल्में भी बनाया करते थे और उनमें “कालापानी”, जिसे उसका सम्मान बहुत देर से मिला।
जब बहुभाषीय सिनेमा या “Pan Indian Cinema” का कॉन्सेप्ट भी लोगों के मस्तिष्क में नहीं आया था, उस समय मलयालम सिनेमा में बहुचर्चित कलाकार मोहनलाल ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया था। उस समय की अत्याधुनिक तकनीक को लेकर उन्होंने रची “कालापानी”, जिसे निर्देशित किया था प्रियदर्शन ने। यह फिल्म मूल रूप से मलयालम में बनी एवं हिन्दी समेत अनेक भाषाओं में डब किया गया था। संगीत दिया था इलैयाराजा ने और फिल्म में प्रमुख कलाकारों के रूप में उपस्थित थे मोहनलाल, प्रभु गणेशन, तब्बू, अमरीश पुरी, विनीत राधाकृष्णन, टीनू आनंद, अन्नू कपूर इत्यादि।
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फिल्म की कहानी
ये कथा प्रारंभ होती है 1965 में, जहां भारतीय सेना का एक अफसर जी एस सेतु अपने एक रिश्तेदार डॉक्टर गोवर्धन मेनन के बारे में पता लगाने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जाता है, क्योंकि कई वर्ष पूर्व 1916 में डॉक्टर मेनन को एक झूठे आरोप में फंसाकर उन्हें कालापानी यानी सेल्युलर जेल भेज दिया गया था। वहां किस प्रकार से क्रांतिकारियों पर अमानवीय अत्याचार होते थे, कैसे उस भीषण अत्याचार का सामना करने के बाद भी कुछ देशभक्त टस से मस नहीं हुए और क्या सेतु को गोवर्धन की वास्तविकता पता चलती है या नहीं, “कालापानी” इसी के आसपास घूमती है।
यह फिल्म अगर आज प्रदर्शित हुई होती, तो विश्वास मानिए “कान्तारा”, “द कश्मीर फाइल्स” और “RRR” की भांति लोग इस पर जमकर धनवर्षा और अपना प्रेम बरसाते। यह केवल आश्चर्य नहीं, अपितु हमारे लिए शर्म का विषय है कि सेल्युलर जेल की दिनचर्या एवं हमारे क्रांतिकारियों पर ढहाए गए अत्याचारों पर आज तक कोई फिल्म क्यों नहीं बनी। हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को केवल गांधी और नेहरू तक सीमित कर दिया गया। ले देकर भगत सिंह को कुछ फिल्में मिली, तो सरदार पटेल और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बलिदानों को सिल्वर स्क्रीन पर लाने में दशकों लग गए। ठीक इसी भांति “कालापानी” को भी रिलीज होने में स्वतंत्रता के पश्चात लगभग 49 वर्ष लग गए, क्योंकि ये फिल्म 1996 में प्रदर्शित हुई थी।
यह फिल्म अपने समय के अनुसार मलयालम उद्योग के लिए सबसे महंगी फिल्म थी, परंतु इसे अपने बजट बचाने तक के लाले पड़ गए। परंतु इसके बाद भी कुछ सिनेमाप्रेमियों ने इस फिल्म को सहेजकर रखा, क्योंकि अच्छी फिल्मों को देर सवेर ही सही एक न एक दिन उसके असली प्रशंसक ढूंढ ही निकालते हैं। मोहनलाल ने इस फिल्म में उत्कृष्ट अभिनय किया और उनका साथ देने में अमरीश पुरी जैसे कलाकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जेलर डेविड बैरी के सहायक, मिर्ज़ा खान के रूप में जो कुटिलता, जो अमानवीयता आवश्यक थी, वो इन्होंने कई अवसरों पर केवल अपने नेत्रों से ही व्यक्त कर दी, जिसमें आज भी कई कलाकार चूक जाते हैं।
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अन्न कपूर ने निभाया था वीर सावरकर का किरदार
परंतु जिस व्यक्ति के रोल के बारे में कम लोग बात करते हैं, वे हैं अन्नू कपूर। अपने चरित्र अभिनय एवं “अंताक्षरी” शो का संचालन के लिए अधिक चर्चा में रहे अन्नू कपूर के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने “कालापानी” में वीर सावरकर का रोल भी निभाया था और उनकी विरासत के साथ सम्पूर्ण न्याय किया। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे भीषण यातना के बाद भी सावरकर हिम्मत नहीं हारते हैं और ऐसे विकट परिस्थितियों में भी अपने बंधुओं की निस्स्वार्थ भाव से सहायता करते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। अन्य किस फिल्म में किसी क्रांतिकारी का ऐसा निष्पक्ष चित्रण आपको देखने को मिला है?
“कालापानी” को अपनी कला के प्रदर्शन हेतु चार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले, जिनमें सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन, सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी, सर्वश्रेष्ठ ऑडियो, एवं सर्वश्रेष्ठ स्पेशल इफ़ेक्ट्स के पुरस्कार शामिल हैं। परंतु कम ही लोगों ने ध्यान दिया कि इस फिल्म में “वीर सावरकर” की भूमिका के साथ सम्पूर्ण न्याय किया गया, जो प्रियदर्शन के अलावा अन्य स्वतंत्रता सेनानियों पर बनी फिल्म में शायद केवल केतन मेहता की सरदार और राजकुमार संतोषी की द लीजेंड ऑफ भगत सिंह ही कर पाए हैं। सुनने में आ रहा है कि रणदीप हुड्डा शीघ्र ही अपने निर्देशन में इसी क्रांतिकारी के जीवन को सिल्वर स्क्रीन पर ला रहे हैं, जिसमें वे स्वयं स्वातंत्र्यवीर वीर सावरकर की भूमिका को आत्मसात करेंगे। आशा करते हैं कि वे “कालापानी” से प्रेरणा लेकर उनके वास्तविक व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने में सफल हों।
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