हम ब्रिटिश राज को कई चीज़ों के लिए कोस सकते हैं, परंतु एक चीज पर उनको शायद जाने भी दे। जैसे भी थे, हमारी मूलभूत संरचना को उन्होंने नष्ट नहीं किया, अपितु भले ही अपने लाभ के लिए, परंतु उसे विकसित भी किया। एक समय पर कानपुर, मेरठ, मुंगेर शहर जैसे क्षेत्र अपने औद्योगिक संरचनाओं एवं अपने आर्थिक समृद्धि के लिए जाने जाते थे और मुंगेर पर यदि स्वतंत्रता के पश्चात ध्यान देते, तो वह निर्विरोध रूप से स्वतंत्र भारत का सर्वप्रथम आयुध केंद्र बनता। परंतु ऐसा क्यों नहीं हुआ? इन लेख में हम जानेंगे उन कारणों के बारे में जिनके पीछे कभी एक समृद्ध, सुसज्जित औद्योगिक केंद्र रहा मुंगेर शहर आज केवल अवैध हथियारों के केंद्र के रूप में बदनाम है।
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मुंगेर शहर का इतिहास
मुंगेर शहर एक ऐसा नगर जो ऐतिहासिक ही नहीं, सामरिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। जिस नगर का अवैध उद्योग भी ऐसा हो कि असली और नकली में अंतर करना कठिन हो (जैसा कि Bihar Diaries में IPS अफसर अमित लोढ़ा ने उल्लेख किया), तो सोचिए उसके वैध उद्योग कैसे रहे होंगे? गंगा के निकट बसा यह नगर कई कारणों से चर्चित है। यह गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है, तथा मुंगेर जिले का और मुंगेर विभाग का मुख्यालय भी है। यह जनसंख्या के हिसाब से बिहार का 11वां सबसे बड़ा शहर है। यह जमालपुर से 8 किमी दूर है और मुंगेर-जमालपुर वास्तव में एक ही जुड़वा-नगर क्षेत्र के भाग हैं।
ये नगर प्राचीन काल में मुद्गलपुरी के नाम से जाना जाता था। रामायण एवं महाभारत दोनों में ही इसका उल्लेख है। कहते हैं कि जब रामायण में सीताजी अपने अग्निपरीक्षा में सफल रही, तो उन्होंने इसी नगर में गंगा में स्नान किया, और उस स्थान को आज सीताकुंड के नाम से जाना जाता है।
इसके अतिरिक्त मुंगेर शहर बंगाल के अंतिम नवाब मीर कासिम की राजधानी भी थी। कहते हैं कि यहीं पर मीर कासिम ने गंगा नदी के किनारे एक भव्य किले का निर्माण कराया जो 1934 में आए भीषण भूकंप से क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन इसका अवशेष अभी भी शेष है। वो और बात है कि इस किले के संबंध में कहा जाता है कि यह महाभारत काल का ही है, जिसे मीर कासिम ने बस नया रंग रूप दिया। यहीं पर स्थित कष्टहरिणी घाट हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए पवित्र माना जाता है। प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार गंगा नदी के घाट पर स्नान करने से एक व्यक्ति का सभी कष्ट दूर हो गया था, उसी वक्त से इस घाट को कष्टहरिणी घाट’ के नाम से जाना जाता है। इस पवित्र घाट के समीप ही नदी के बीच में माता सीताचरण का मंदिर स्थित है। यहां जाने के लिए नावों का सहारा लिया जाता है।
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औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ
तो मुंगेर का शस्त्रों से नाता कैसे पड़ा? जब ब्रिटिश राज 1858 में आधिकारिक रूप से स्थापित हुआ था, तो उन्होंने मुंगेर शहर को एक औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित किया। इसका उल्लेख बहुचर्चित उपन्यासकार जूल्स वर्न ने भी अपनी चर्चित पुस्तक, “अराउन्ड द वर्ल्ड इन 80 डेज” में किया था, जहां संक्षेप में ही सही, परंतु मुंगेर को एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र के रूप में माना गया, जहां ITC की तंबाकू फैक्ट्री भी थी और एशिया के सबसे विशाल एवं प्राचीन रेलवे वर्कशॉप भी।
परंतु इन सबके अतिरिक्त मुंगेर शहर एक महत्वपूर्ण शस्त्रागार के रूप में भी चर्चित था, जो प्रमुख तौर पर ब्रिटिश सेना को बंदूकों और कारतूसों की सप्लाई करता था। इसका लाभ कई क्रांतिकारियों ने भी उठाया, क्योंकि मुंगेर से उन्हें अपनी इच्छाअनुसार शस्त्र मिलते थे। परंतु स्वतंत्रता के पश्चात सब कुछ बदल गया। अगर स्वतंत्र भारत की सरकार ने इस क्षेत्र पर ध्यान दिया होता, तो मुंगेर स्वतंत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण आयुध केंद्र बनता।
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अवैध तरीके से बनने लगे हथियार
परंतु वैसा कुछ नहीं हुआ। एक तो वैसे ही भारत के प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू अहिंसा प्रेमी, उस पर से उन्होंने उद्योगों से ऐसी तौबा की, मानो इनका अस्तित्व ही भारत के लिए खतरा हो। उन्होंने अनाधिकारिक रूप से शस्त्रों के निर्माण पर अप्रत्यक्ष रोक लगाई, जिसमें मुंगेर शहर भी शामिल था, क्योंकि उनके लिए भारत के लगभग सभी काम करने के लिए पुलिस पर्याप्त थी। अब सोचिए, यदि ये सम्पूर्ण प्रोग्राम सफल हो गया होता, तो?
खैर, ये अभियान तो पूर्णत्या सफल नहीं हुआ, परंतु मुंगेर शहर के शस्त्र उद्योग पर इसका व्यापक असर पड़ा। रही सही कसर जेपी नारायण और उनके “सम्पूर्ण क्रांति” के समाजवादी अवशेषों ने पूरी कर दी। अब ऐसे में आयुध का निर्माण करने वाले करते तो क्या करते? उन्होंने उन्हीं शस्त्रों को अवैध तरीके से बनाना प्रारंभ किया, चाहे कट्टा हो या पिस्तौल। वे इस कार्य में इतने निपुण और दक्ष थे कि लोग असली और नकली में अंतर करने में चकरा जाते, और तड़के के रूप में वे ये भी उदाहरणत अंकित करते, “Made in Italy”, “Walther PPK” इत्यादि। न इस उद्योग को कोई सब्सिडी चाहिए, न ही कोई विशेष सुविधा।
अब सोचिए, यही काम वैध तरीके से होता और इसे प्रोत्साहित किया जाता, तो? आज जिस प्रकार पीएम मोदी आयुध निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में चुनिंदा केंद्रों को विकसित कर रहे हैं, उससे वर्षों पूर्व ही मुंगेर शहर एक स्वनिर्मित, आत्मनिर्भर आयुध केंद्र के रूप में प्रसिद्ध होता। परंतु समाजवाद की कुरीतियों के कारण जैसे बिहार बर्बाद हुआ, वैसे ही मुंगेर भी अब अपने अवैध हथियारों के लिए जाना जाता है।
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