अमेरिका तक पहुंचा जाति के नाम पर सनातन विरोधी षड्यंत्र

अब अमेरिका में भी "कौन जात हो"?

Oh! You want to migrate to the USA because caste rivalry doesn't exist there? HAHAHAHAHA.....

Source: Ethnic Media Service

जात पात से आपको कोई वास्ता नहीं? जातिवाद के खेल से बचने हेतु अमेरिका प्रवास कर रहे हैं? तो बड़े भोले हैं आप, क्योंकि सनातन धर्म से घृणा की विषबेल ने अमेरिका में भी अपने पाँव जमा लिए हैं।

इस लेख में पढ़िए कैसे अब अमेरिका में भी जातिवाद का घिनौना खेल खेला जा रहा है।

जातिगत भेदभाव पर प्रस्ताव

हाल ही में अमेरिका में एक ऐसा अधिनियम पारित हुआ है जो सिद्ध करता है कि जिस “जात पात” की आड़ में कथित समाजसेवी उत्पात मचाते हैं, अब वो रीति अमेरिका में भी शीघ्र दोहराई जाएगी। अमेरिका के Seattle City काउन्सिल की सदस्य क्षमा सावंत द्वारा एक प्रस्ताव को हाल ही में स्वीकृत किया गया है, जिसके अंतर्गत जातिगत भेदभाव को गैर-कानूनी घोषित किया जाएगा।

तो इसमें दिक्कत क्या है? ये तो भेदभाव हटाने में सहायक होगा और क्षमा सावंत के अनुसार जातिवाद केवल एक पंथ तक सीमित नहीं है। परंतु कई संगठनों, विशेषकर अमेरिका के सनातनी संगठन इस बात से सहमत नहीं।

इस प्रस्ताव का विश्लेषण करते हुए हिन्दू अमेरिका फाउंडेशन के सह संस्थापक एवं कार्यकारी निदेशक सुहाग शुक्ला ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, “हमारे अस्तित्व के पिछले दो दशकों में HAF ने सदैव इस बात पर जोर दिया है कि जातिगत भेदभाव गलत है, और सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।

अमेरिका के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन

परंतु इस बात को बहाना बनाकर दक्षिण एशियाई समुदाय को सिंगल आउट करना एवं भेदभाव विरोधी नीति में “जाति” का अलग से जोड़ा जाना विरोधाभासी प्रतीत होता है। Seattle के नगर ने ये दक्षिण एशियाई समुदाय को ध्यान में ही रखके क्यों किया है?

ऐसा प्रतीत होता है कि इन्होंने धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव को बढ़ावा देने हेतु ये कदम उठाया है, जो एक शताब्दी पूर्व अमेरिका के मूलनिवासियों के साथ हुए भेदभाव से कहीं भी भिन्न नहीं है”।

इसके अलावा अपने बयान में HAF ने ये भी कहा है कि इस प्रस्ताव को पारित करवाकर Seattle ने अमेरिका के हर नागरिक को दिए जाने वाले समान अधिकारों के मूल सिद्धांतों का ही उल्लंघन किया है। वहाँ के अधिनियमों के अनुसार किसी भी नागरिक के साथ उसके देश, धर्म एवं समुदाय के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

सुहाग शुक्ला का अनुमोदन करते हुए HAF के प्रबंधन निदेशक समीर कालरा ने कहा, “भेदभाव से लड़ने के नाम पर Seattle ने लगभग सभी भारतीय मूल के नागरिकों एवं दक्षिण एशिया के अन्य समुदाय के विरुद्ध संस्थागत भेदभाव को बढ़ावा देने की ओर खतरनाक कदम उठाया है। अमेरिका के सबसे मूलभूत सिद्धांतों का ही ये प्रस्ताव उल्लंघन कर रहा हो।

इसके अतिरिक्त ओहायो प्रांत के प्रथम हिन्दू एवं भारतवंशी सीनेटर, नीरज अंतानी ने इस प्रस्ताव की निंदा करते हुए कहा कि ये अध्यादेश हर दृष्टि से निंदनीय है। आज के समय में जातिगत भेदभाव के बारे में सोचना भी हास्यास्पद है, करना तो दूर की बात।

इसे अपने भेदभाव विरोधी नीति में अलग से जोड़कर इस परिषद ने हिन्दू विरोधी तत्वों को एक नया अस्त्र प्रदान किया है, जो प्रारंभ से ही सनातन धर्म एवं उसके अनुयाइयों के प्रति अमेरिका में दुष्प्रचार कर रहे हैं। Seattle को सनातनियों के विरुद्ध इस नस्लभेदी नीति को बढ़ावा देने के बजाए हिंदुओं की सुरक्षा में कदम उठाने चाहिए”।

परंतु ये जातिगत विद्वेष है क्या, जिसका प्रभाव अब अमेरिकी राजनीति में भी दिखने लगा है? जिस जातिवाद की आड़ में भारतीय राजनीतिज्ञ, विशेषकर वामपंथी अपना उल्लू सीधा करते हैं, उसी राजनीति की कोंपलें अब अमेरिका में भी फूटने लगी हैं।

ब्राह्मवादी गूगल!

इसके संकेत जून 2022 में ही दिखने लगे थे, जब गूगल जैसे बहुचर्चित एमएनसी को “ब्राह्मणवादी विचारधारा” से ग्रसित संस्था बताया गया था। हुआ ये कि उस समय गूगल की एक वरिष्ठ मैनेजर तनुजा गुप्ता ने गूगल के तत्वावधान में एक कार्यक्रम आयोजित किया जो कथित रूप से दलित विमर्श पर होने वाला था।

इस कार्यक्रम में थेनिमोझी सुंदराजन को वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था। सुंदराजन अपनी ब्राह्मण विरोधी मानसिकता के लिए अमेरिका के वामपंथी सर्कल्स में काफी चर्चित है।

इतना ही नहीं, अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने हेतु 2021 में भी सुंदराजन ने गूगल के तत्वाधान में एक कार्यक्रम किया था किंतु इस बार गूगल ने इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया। क्यों किया, किसलिए किया, ये गूगल का शीर्ष प्रबंधन ही जानता है, परंतु बात का बतंगड़ बनाते हुए पहले तनुजा गुप्ता ने इस्तीफा दे दिया और फिर टी सुंदराजन ने इस मामले को तूल देना प्रारंभ किया।

अब गूगल का तर्क यह था की कार्यक्रम कार्यस्थल पर वैमनस्य को बढ़ाने वाली मानसिकता को फैला रहा था, तो संभव है कि गूगल ने यह कार्यवाई सुंदराजन के पूर्ववर्ती बयानों के आधार पर की हो। हालांकि कुछ लोगों ने इस मामले को अपने अस्तित्व से जोड़ लिया और सीधे सुंदर पिचाई तथा अमेरिका की बिग टेक कंपनियों में कार्यरत सवर्ण हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए इस विवाद का प्रयोग किया।

अब सुंदर पिचाई पर लगे आरोपों में तनिक भी सच्चाई या आधार नहीं था, क्योंकि यदि पिचाई ब्राह्मणवादी होते और उनकी तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की जातिवादी सोच के कारण कार्यक्रम स्थगित होता तो सुंदराजन को गूगल के आसपास भी नहीं फटकने दिया जाता, 2021 में कार्यक्रम कराना तो दूर की बात है।

अमेरिका की बड़ी कंपनियों में बड़ी संख्या में भारतीय युवक व युवतियां कार्य कर रहे हैं। ऐसे में उन पर जातिवाद का आरोप लगाकर उनकी छवि खराब करके भारत के क्षमतावान युवाओं को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। भारतीयों के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान बिग टेक कंपनियों में बढ़ती भारतीय डायस्पोरा की शक्ति के विरुद्ध चलाए जा रहे एक योजनाबद्ध कार्यक्रम का हिस्सा है।

परंतु वो क्या है, जब से जो बाइडन ने सत्ता संभाली है, अमेरिका में ऐसे स्वघोषित संस्थानों का उत्पात हद से ज्यादा हो रहा है। उदाहरण के लिए इस विषय पर वाशिंगटन पोस्ट ने जिस प्रकार सुंदराजन का पक्ष लिया, वह भी भारत विरोधी दुष्प्रचार अभियान का एक भाग ही है। पश्चिमी मीडिया यूक्रेन संकट से लेकर कोरोना संक्रमण के फैलाव समेत किसी भी घटना में भारत को निशाना बनाने से नहीं चूकते हैं। इस बार उन्हें भारतीय डायस्पोरा को घेरने का अवसर मिला है जो अमेरिका में भारत की सॉफ्ट पावर की सबसे बड़ी शक्ति है।

ऐसे में हमें समझना होगा कि जो व्यक्ति अपनी मातृभूमि से दूर जाकर दूसरे देश में अलग रंग रूप वाले लोगों के बीच में कार्य कर रहा हो उसमें अपने देश के किसी भी नागरिक के प्रति स्वाभाविक आत्मीयता पैदा होगी।

जो भारतीय अमेरिका में कार्य कर रहे हैं वह किसी भी जाति अथवा धर्म के हो उनमें अन्य भारतीयों के प्रति एक स्वाभाविक आत्मीयता का भाव का होना सामान्य है। परंतु गूगल को “ब्राह्मणवादी” कहना और फिर Seattle में विशेष रूप से जाति को भेदभाव से जोड़ने का उद्देश्य स्पष्ट है: सनातन धर्म के प्रति दुनिया भर के देशों में घृणा फैलाना।

 

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