भारत की दक्षिण चीन सागर की रणनीति के केंद्र में फिलीपींस क्यों है?

समझिए, कैसे भारत इंडो-पेसिफिक और दक्षिण चीन सागर दोनों को एक साथ साध रहा है!

दक्षिण चीन सागर भारत

Source: TFI MEDIA

भारत दक्षिण चीन सागर नीति: वैश्विक कूटनीति-रणनीति और राजनीति को यदि आप समझते हैं तो आप यह अवश्य समझते होंगे कि इंडो पैसिफिक क्षेत्र की क्या महत्वता है। इसके साथ ही आप यह भी जानते होंगे कि दुनिया के अधिकतर देश भिन्न-भिन्न समझौतों के तहत इंडो-पैसिफिक केंद्रित नीतियां बना रहे हैं या फिर समझौते कर रहे हैं।

इन नीतियों और समझौतें के पीछे वास्तविक उद्देश्य इंडो-पैसिफिक में और दक्षिण चीन सागर में चीन को दबोचने का है। यह पूरा क्षेत्र हिंद महासागर के आस-पास का है।इसलिए भारत के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में भारत फिलीपींस को केंद्र में रखकर आगे बढ़ रहा है।

इस लेख में आप जानेंगे कि कैसे भारत की दक्षिण चीन सागर की रणनीति के केंद्र में फिलीपींस आ गया है।

विस्तारवादी चीन ने उन सभी देशों के साथ एक प्रकार से युद्ध छेड़ रखा है, जो उसके झांसे में नहीं आ रहे हैं। दक्षिण चीन सागर भी इससे अछूता नहीं है। दक्षिण चीन सागर पर स्वयं का अधिकार जताने के लिए वह कई बार वहां स्थित दूसरे देशों को परेशान करता रहता है। इसके अलावा, दक्षिण चीन सागर और इंडो पेसिफिक क्षेत्र में चीन ऋण-जाल की रणनीति भी अपनाता है, जिससे कि उन देशों को ऋण के जाल में फंसाकर उन्हें अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर सके।

ऐसे में ASEAN देशों के प्रति भारत के दृष्टिकोण की महत्वता बहुत बढ़ जाता है। भारत ने BIMSTEC का निर्माण करके और Act East Policy को अपनाकर यह दिखाया भी है कि यह देश भारत के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। भारत एक तरफ जहां ASEAN देशों के साथ वार्षिक तौर सम्मेलन आयोजित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर इन देशों के साथ द्वपक्षीय संबंधों को भी मजबूती दे रहा है।

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इसी क्रम में, भारत फिलीपींस के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है। इसकी प्रासंगिकता तब और बढ़ जाती है तब इसे हम द्वपक्षीय स्तर पर नहीं बल्कि इंडो-पैसिफिक के परिप्रेक्ष्य में देखें।

फिलीपींस को अनुदान सहायता

पिछले महीने ही भारत और फिलीपींस ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत भारत ने Quick Implementation Project (QIP) के तहत आने वाली योजनाओं को लागू करने के लिए अनुदान सहायता देने के लिए समझौता किया है।

QIP में शैक्षिक कार्यक्रम, सामुदायिक विकास, सड़कों का निर्माण और स्थानीय केंद्र शामिल हैं। इस समझौते के तहत 50,000 डॉलर तक की परियोजनाओं को वित्त पोषण के लिए स्वीकार किया गया है।

ये परियोजनाएं फिलीपींस सरकार की प्राथमिकताओं पर आधारित होंगी। इस दौरान फिलीपींस में भारत के राजदूत शंभु एस. कुमार ने कहा कि ये समझौता इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में व्यक्ति केंद्रित सहयोग को बढ़ावा देगा।

भारत-फिलीपींस के संबंध

भारत-फिलीपींस दोनों ही देश एशिया-पेसिफिक इकोनॉमिक कॉपरेशन (APEC) के सदस्य हैं, व्यापार और सुरक्षा समेत दोनों ही देश कई मोर्चों पर एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं। हाल के वर्षों में, दोनों देशों के बीच संबंधों में मजबूती आई है और दोनों ही देश संबंधों की मजबूत करने की रणनीति को समझने लगे हैं।

आर्थिक विकास और स्थिरता के लिए दोनों ही देश इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में कानूनों का और समुद्री स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। भारत और फिलीपींस दोनों ही देशों ने सुरक्षा संबंधी कई समझौते किए हैं। 2019 में दोनों देशों का व्यापार 2.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है- जबकि फिलीपींस में भारत बड़े निवेशकों में से एक है। दवा, आईटी और बीपीओ समेत कई क्षेत्रों में भारतीय कंपनियां निवेश कर रही हैं।

जब बात इंडो-पेसिफिक की आती है तो भारत का यह मत एकदम स्पष्ट है कि व्यापार को निर्विरोध अनुमति होनी चाहिए और इसके साथ ही क्षेत्र पर किसी भी एक देश का एकाधिकार नहीं होना चाहिए। यहां भारत का संकेत चीन की ओर होता है। दरअसल, इंडो-पेसिफिक क्षेत्र की शांति हिंद महासागर की शांति के लिए आवश्यक है।

ऐसे में भारत इस क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाना चाहता है जिससे कि वो चीन की चालों को भी तोड़ सके और दूसरी तरफ इस क्षेत्र में भारत के व्यापार को भी बढ़ा सके। हालांकि भारत के लिए चिंता की बात यह है कि मार्कोस जूनियर के नेतृत्व में फिलीपींस की सरकार चल रही है।

मार्कोस जूनियर को चीन का समर्थक माना जाता है। अपने चुनावी अभियान के दौरान जूनियर ने घोषणा की थी कि वो सेना को घरेलू कलह की तरफ केंद्रित करेंगे, लेकिन जिस तरह से व्यापार बढ़ रहा है और समझौते हो रहे हैं- उससे ऐसा प्रतीत होता है कि फिलीपींस के राष्ट्रपति के विचार बदल गए हैं।

चीन और इंडो-पैसिफिक

इंडो-पेसिफिक मार्ग से विश्व व्यापार का 50 प्रतिशत व्यापार होता है जबकि वैश्विक जीडीपी का 60 प्रतिशत। इसके अलावा यह न केवल प्रशांत महासागर को हिंद महासागर से जोड़ता है बल्कि खाड़ी देशों को भी जोड़ता है, जोकि कच्चे तेल के भंडार हैं।

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दिलचस्प बात यह है कि चीन अपना 80 प्रतिशत तेल इंडो-पैसिफिक के मल्लाका जलडमरूमध्य से आयात करता है। ऐसे में यदि क्षेत्र में चीन का दबदबा होता है तो इससे चीन को बढ़त मिलेगी और अंतत: वह 50 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का भाग्य निर्धारित करेगा।

आसियान देश जो कुल मिलाकर एकजुट हैं, लेकिन आंतरिक संघर्षों का सामना भी कर रहे हैं। लाओस और कंबोडिया भारी ऋण के कारण चीन के शिकंजे में हैं। जब क्षेत्र में चीन की अलोकतांत्रिक नीतियों के बारे में बोलने की बात आती है तो यह देश ऐसे वक्त में गूंगे हो जाते हैं। अब फिलीपींस ही एकमात्र ऐसा देश है जो इस क्षेत्र में चीनी गुंडागर्दी का खुले तौर पर मुकाबला कर रहा है। ऐसे में चीन की चाल किसी तरह से फिलीपींस को भी अपने शिंकजे में लेने की है।

भारत-फिलीपींस के बढ़ते संबंध

भारत-फिलीपींस के बीच हालिया समझौता दोनों देशों के बीच बढ़ते द्वपक्षीय संबंधों का केवल एक हिस्सा मात्र है। जनवरी में, फिलीपींस के राष्ट्रपति ने भारतीयों के लिए ई-वीज़ा व्यवस्था लागू की थी। इसके साथ ही भारत और फिलीपींस के बीच रक्षा समझौते भी आक्रामक तरीके से हो रहे हैं। फिलीपींस ने हाल ही में भारत की ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल को क्रय करने का समझौता भी किया है।

भारत-फिलीपींस के बीच यह एक बड़ा समझौता है क्योंकि यह पहली बार है जब फिलीपींस की सेना के पास इस तरह का हथियार होगा। यह ऐसे वक्त में हो रहा है जब चीन और आसियान देशों के संबंध बिगड़ रहे हैं। कई दूसरे देशों के साथ फिलीपींस ने भी भारत के LAC तेजस को क्रय करने में दिलचस्पी दिखाई है।

चीन और फिलीपींस का विवाद

चीन फिलीपींस के द्वीपों को दक्षिण चीन सागर के स्प्रैटली द्वीप समूह के व्हिटसन रीफ का हिस्सा मानता है। इन्ही द्वीपों के नजदीक स्थित जुलिना फेलिप रीफ पर कब्जे के लिए फिलीपींस की नौसेना ने कई बार प्रयास भी किया है, लेकिन हर बार उन्हें चीनी नौकाओं ने खदेड़ दिया।

चीन, फिलीपींस वाले समुद्री इलाके में अपने युद्धपोतों को भेजकर उकसावे की कार्रवाई से बाज नहीं आता। इसलिए दोनों देशों के बीच तनाव व्याप्त रहता है। इसी तरह चीन नेपाल और भूटान के भी कुछ हिस्सों को अपना बताता है और अवैध रूप से कब्जा भी किए है। वह दक्षिण कोरिया, लाओस, मलेशिया और वियतनाम के भी कई क्षेत्रों में अवैध घुसपैठ और कब्जा करने को प्रयासरत है।

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हाल के वर्षों में चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम रूप से बनाए गए टापुओं पर सैन्य अड्डे स्थापित कर लिए हैं। चीन दलील देता है कि इन इलाक़ों पर उसका सदियों पुराना अधिकार है। फिलीपींस के अलावा ब्रुनेई, मलेशिया, ताइवान और वियतनाम जैसे देश चीन के इन दावों पर आपत्ति जताते हैं।

इन देशों में इस इलाक़े को लेकर विवाद कई दशकों से जारी है, लेकिन हाल के वर्षों में यह तनाव बढ़ गया है। ऐसे में भारत और फिलीपींस की बढ़ती नज़दीकी को चीन स्वयं के लिए ख़तरा मानता है।

इंडो-पेसिफिक की नीति वैश्विक वर्चस्व की धुरी है। जहां चीन जैसे देश इसका दोहन करना चाहते हैं, वहीं भारत इसे वैश्विक व्यापार और सहयोग का शांतिपूर्ण क्षेत्र बनाना चाहता है।

BIMSTEC के तहत, भारत म्यांमार और थाईलैंड तक पहुंच गया है और अब वह फिलीपींस के साथ अपने संबंधों को द्विपक्षीय रूप से मजबूत कर रहा है। ऐसे में निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि फिलीपींस भारत की दक्षिण चीन सागर रणनीति के केंद्र में है।

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