रामचरितमानस पर विवाद: वर्ष 1947 में भारत ने अंग्रेजी शासन से तो स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी किंतु अंग्रेजों ने भारत में हिंदू मुस्लिम धर्म के बीच ऐसी एक खाई बना ली थी जिससे दो अलग-अलग देश बन गये। अब राजनेताओं ने ब्रिटिशों को इस फूट डालो राज करो की नीति का समय-समय पर खूब पालन किया। इस ब्रिटिश सोच के चलते पहले हिंदू-मुस्लिम में समाज बंटा और अब जब आज की तारीख में बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे को मुखरता से उठाती है तो यह विपक्षी दलों को रास नहीं आता है और इसलिए हिंदुओं को जाति के नाम पर विभक्त किया जाता रहा है।
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रामचरितमानस पर विवाद
बिहार के शिक्षा मंत्री ने पहले रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया तो यह एक साधारण बात लगी, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसको लेकर कोई एक्शन न लेते हुए आरजेडी कोटे के मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर को मौन समर्थन दिया। लगातार रामचरितमानस को लेकर प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं और यह दिखाया जा रहा है कि रामचरितमानस दलित विरोधी है।
बिहार की यही कपटी सोच को उत्तर प्रदेश में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए भी प्रसारित किया गया, जिन्होंने अपने बयान से रामचरितमानस का अपमान किया। स्वामी प्रसाद मौर्य वही नेता हैं जो कि 2022 से पहले भाजपा में थे। परंतु सपा का रंग उन पर ऐसा चढ़ा कि वो अब रामचरितमानस को बैन करने तक की मांग करने लगे हैं।
अब सबसे अहम बात यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के बाद ही रामचरितमानस की प्रतियां कई जगहों पर जलाने और इन्हें फाड़ने तक की खबर सामने आयी, जो सीधे तौर पर हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाला हैं। जरा सोचिए, क्या किसी अन्य धर्म की धार्मिक भावनाओं के साथ इस तरह से खिलवाड़ किया जा सकता है? अगर ऐसा होगा तो यकीनन देश में बवाल मच जाएगा, अराजकता की स्थिति पैदा होगी। चाहे बिहार हो या यूपी, न तो नीतीश ने अपने मंत्री को सबक दिया, न ही उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने। इसके विपरीत स्वामी प्रसाद मौर्य का पद पार्टी में बढ़ा दिया गया, जो इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि स्वामी को हिंदुओं की भावना आहत करने का इनाम दिया गया है।
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सामाजिक सद्भाव को खतरे में डाल सकता है
रामचरितमानस को राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के चलते निशाना बनाया जा रहा है, जिससे समाज में ध्रुवीकरण कर एक जाति विशेष के एकमुश्त वोट बैंक उनकी झोली में चले जाए। परंतु इस राजनीतिक हित को साधने के चक्कर में समाज को बांटने के प्रयास किए जा रहे हैं। ये नेता दावा सभी के लिए समानता का भाव रखने का दावा करते हैं लेकिन वे ही अब लोगों को बांट रहे हैं। भले ही ये रामचरितमानस पर प्रश्न उठा रहे हों, लेकिन इसकी पूरी संभावनाएं हैं कि इनके घर के मंदिर में रामचरितमानस पूरे सम्मान से रखी होगीं।
इस पूरे विवाद का सबसे बुरा असर समाजिक तौर पर पड़ने वाला है क्योंकि रामचरितमानस के विरोध में खड़ा हुआ एक छोटा सा तबका विशेष वर्ग का है। रामचरितमानस को लेकर सभी वर्गों में आस्था हैं, लेकिन उस खास वर्ग के एक छोटे से तबके के कारण पूरा वर्ग ही निशाने पर आ गया है। ऐसे में होगा ये कि गेहूं के साथ वे घुन भी पिस जाएंगें, जो असल में रामचरितमानस को पूजते हैं। रामचरितमानस का यह विवाद जातिगत खाई को विस्तार दे रहा है। छोटे से गुट के कारण पूरा वर्ग बदनाम हो रहा है। ऐसे में रामचरितमानस से आस्था रखने वालों से उनका विवाद बढ़ सकता है।
संभावनाएं तो यह है कि वह दौर भी वापस आ सकता है जब कहा जाता था कि उस मोहल्ले में खास वर्ग का व्यक्ति रहता है इसलिए वहां मत जाओ। एक खास वर्ग और जाति के दुकानदार से सामान मत खरीदो, उस जाति के व्यक्ति से न सब्जी खरीदों, न फल। खास जाति के डॉक्टर का विरोध केवल इस बात पर पहले की तरह ही होने लगेगा कि वह उस रामचरितमानस विरोधी मानसिकता का ध्वजवाहक है यद्यपि वो पूरी तरह से रामचरितमानस के प्रति पूरी तरह से आस्थावान क्यों न हो।
राजनेताओं ने धर्म के नाम पर बांटने के बाद जाति के नाम पर बांटने के लिए रामचरितमानस को हथियार बनाया है क्योंकि यदि खास वर्ग समझदार हो गया है। ऐसे में यह आवश्यकत हो जाता है कि राजनेताओं के इस वोट बैंक के लालच वाले जाल से बचकर एकजुट होकर रहा जाये। इनके षड्यंत्रों को ध्वज किया जाएगा। क्योंकि यदि लोग इनके जाले में फंस गये तो लोग जाति के नाम पर आपस में लड़ने लग जायेंगे, जोकि भविष्य के लिए काफी घातक साबित हो सकता है।
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