Shitala Mata ki Katha : शीतला माता की कथा एवं आरती
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Shitala Mata ki Katha साथ ही इससे जुड़े महत्व के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आईं और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर नहीं है, और ना ही मेरी पूजा होती है।
माता शीतला गाँव की गलियों में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेंका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में फफोले/छाले पड गये। शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी।
शीतला माता गाँव में इधर-उधर भाग-भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी सहायता करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता की सहायता नही की। वहीं अपने घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पूरे शरीर में तपन है। इसके पूरे शरीर में फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नहीं कर पा रही है।
तब उस कुम्हारन ने कहा हे माँ! तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ! मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।
तब उस कुम्हारन ने कहा – आ माँ बैठजा तेरे सिर के बाल बहुत बिखरे हैं, ला मैं तेरी चोटी गूँथ देती हूँ।और कुम्हारन माई की चोटी गूथने हेतु कंगी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन की नजर उस बूढ़ी माई के सिर के पीछे पड़ी, तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालों के अंदर छुपी है।
यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढ़ी माई ने कहा – रुकजा बेटी तू डर मत। मैं कोई भूत-प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पूजा करता है। इतना कहकर माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब मैं गरीब इन माता को कहाँ बिठाऊ।
तब माता बोली – हे बेटी! तुम किस सोच मे पड गई।
तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आँसू बहते हुए कहा – हे माँ! मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता बिखरी हुई है। मैं आपको कहाँ बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन ही।
तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फैंक दिया।
और उस कुम्हारन से कहा – हे बेटी! मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूँ, अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग लो।
तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा – हे माता मेरी इच्छा है अब आप इसी डुंगरी गाँव मे स्थापित होकर यहीं निवास करें और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया। ऐसे ही आपको जो भी भक्त होली के बाद की सप्तमी को भक्ति-भाव से पूजा कर, अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर की दरिद्रता को दूर करना एवं आपकी पूजा करने वाली महिला का अखंड सुहाग रखना, उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला अष्टमी को नाई के यहाँ बाल ना कटवाये धोबी को कपड़े धुलने ना दें और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार मे कभी दरिद्रता ना आये।
तब माता बोलीं तथास्तु! हे बेटी! जो तूने वरदान मांगे हैं मैं सब तुझे देती हूँ। हे बेटी! तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील की डुंगरी शील की डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी के दिन यहाँ बहुत विशाल मेला लगता है।
शीतला माता की जय!
शीतला माता की आरती
ॐ जय शीतला माता , मैया जय शीतला माता ,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता ,
ॐ जय शीतला माता ………….|
रतन सिहांसन शोभित , श्र्वेत छत्र भ्राता ,
रिद्धि सिद्धि चंवर डोलावे , जग मग छवि छाता ,
ॐ जय शीतला माता …………….|
विष्णु सेवत ठाढ़े , सेवे शिव धाता ,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता ,
ॐ जय शीतला माता ………………|
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र विणा हाथा ,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता ,
ॐ जय शीतला माता ………….|
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता ,
करे भक्त जन आरती लखि लखी हरहाता ,
ॐ जय शीतला माता ………………..|
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता ,
भक्तन को सुख़ देती मातु पिता भ्राता ,
ॐ जय शीतला माता ……………………|
जों भी ध्यान लगावै प्रेम भक्ति लाता ,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता ,
ॐ जय शीतला माता ………………|
रोगन से जों पीड़ित कोई शरण तेरी आता ,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अंध नेत्र पाता ,
ॐ जय शीतला माता ………………|
बाँझ पुत्र को पावे दरिद्र कट जाता ,
ताको भजै जों नाही सिर धुनि पछिताता ,
ॐ जय शीतला माता …………|
शीतल करती जननि तुही हैं जग त्राता ,
उत्पति व्याधि विनाशत तू सब की धाता ,
ॐ जय शीतला माता …………..|
दास विचित्र कर जौड़े सुन मेरी माता ,
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता ,
ॐ जय शीतला माता ……………………|
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