रूस-चीन का निरंतर करीब आते जाना क्या भारत के लिए चिंता का विषय है?

विदेशी मामलों के जानकार हां कह रहे हैं, लेकिन वास्तविक स्थिति क्या है?

Russia China relations

Source: Nikkei Asia

Russia China relations: चीन, भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव से डरकर वक्त-वक्त पर भारत के लिए समस्याएं खड़ी करता रहता है- जबकि दूसरी तरफ भारत-रूस के संबंध एक लंबे से अच्छे हैं। दोनों ही देशों ने मुसीबत के वक्त एक-दूसरे की मदद करके इसे सिद्ध भी किया है लेकिन यदि रूस की मित्रता चीन (Russia China relations) के साथ भारत से भी ज्यादा घनिष्ठ हो जाए तो?

इस लेख में पढ़िए कि  रूस-चीन के अच्छे संबंधों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

क्या नैरेटिव बनाया जा रहा है?

पिछले कुछ वक्त से विदेश मामलों के जानकार यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत और रूस के बीच नज़दीकियां (Russia China relations) बढ़ रही हैं। और इन दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ होते संबंध भारत के लिए अच्छे नहीं हैं।

केवल इतना ही नहीं बल्कि दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि चीन से दोस्ती को और ऊपर ले जाने के लिए रूस, भारत का भी साथ छोड़ सकता है। कहा जा रहा है कि यदि भारत-चीन के बीच टकराव की स्थिति बनती है तो रूस, चीन के समर्थन में खड़ा हो सकता है।

ऐसी संभावनाएं इसलिए और लगाई जा रही हैं क्योंकि अमेरिकी विदेशी मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बीते रविवार को दावा किया है कि चीन, यूक्रेन के साथ जारी युद्ध में रूस को हथियार और गोला-बारूद देने पर विचार कर रहा है।

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अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मीडिया समूह सीबीएस न्यूज़ को बताया कि चीनी कंपनियां पहले से ही रूस को “गैर-घातक समर्थन” प्रदान कर रही थीं और नई जानकारी के अनुसार बीजिंग “घातक समर्थन” प्रदान कर सकता है।

वहीं चीन ने उन ख़बरों का खंडन किया है जिनमें ये दावा किया गया है कि रूस ने चीन से सैन्य साजो-सामान मांगा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनविन ने कहा है कि अमेरिका को दूसरों पर आरोप मढ़ने और झूठी सूचनाएं फैलाने जैसे कार्यकलापों पर मंथन करना चाहिए। अमेरिका स्वयं लगातार हथियारों की सप्लाई कर रहा है।

रूस-चीन का व्यापार बढ़ गया

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले कुछ समय में रूस और चीन काफी करीब (Russia China relations) आए हैं। हर किसी ने देखा कि रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध में चीन किस तरह से रूस के साथ खड़ा रहा। यूक्रेन संकट ने रूस को चीन के और करीब ला दिया है।

दोनों देशों के बीच व्यापार भी पिछले कुछ समय में काफी बढ़ रहा है। चीन रूसी तेल, गैस और कोयले के लिए एक बड़ा बाज़ार है। वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग तीसरी बार सत्ता में काबिज हुए तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उन्हें शुभकामनाएं दीं।

दोनों देशों के बीच व्यापार के डेटा देखकर भी पता चलता है कि दोनों के बीच संबंध किस तरह से नए मुकाम पर पहुंच रहे हैं। चाइना ज़नरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ कस्टमर्स के डेटा के अनुसार, पिछले वर्ष यानी 2022 के 11 महीनों में रूस और चीन का द्विपक्षीय व्यापार 172.4 अरब डॉलर पहुंच गया और इसमें 32 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है।

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इन 11 महीनों की अवधि के दौरान रूस का चीन में निर्यात 105.07 अरब डॉलर का रहा। इसमें 47.5 फ़ीसदी का उछाल आया है। वहीं चीन का रूस में निर्यात इस दौरान 67.33 अरब डॉलर का रहा और इसमें भी 13.4 फ़ीसदी का उछाल आया। 2021 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 146.89 अरब डॉलर था और जोकि अपने आप में रिकॉर्ड था। 2014 में चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार केवल 95.3 अरब डॉलर का था।

चीन स्वयं को रुस के साथ खड़ा हुआ दिखाने का भरपूर प्रयास कर रहा है। शी जिनपिंग रूस और चीन के रिश्तों को दो महाशक्तियों के मिलन की तरह पेश कर रहे हैं। रूस की आर्थिक से लेकर वैश्विक स्तर पर सहायता करने का दिखावा चीन के लिए परम लक्ष्य बन गया है, परंतु इन सबसे भारत-रूस के रिश्ते कहीं भी प्रभावित नहीं होते दिख रहे हैं।

भारत-रूस की दोस्ती

चीन कुछ भी कर ले, भारत के मामले में रूस चीन के पक्ष में खड़ा प्रतीत नहीं हो रहा है, क्योंकि Russia और China के relations नए-नए हैं। परंतु बात यदि भारत और रूस की करें तो यह दोस्ती नई नहीं है।

इसकी नींव तो 75 वर्ष पहले ही पड़ गई थी। तब से लेकर अब तक दुनिया में कई बड़े बदलाव हुए, कई बड़ी समस्याएं आईं और गईं लेकिन भारत और रूस के रिश्ते वैसे के वैसे ही बन रहे और दोनों देश सभी परिस्थितियों में एक दूसरे के साथ खड़े दिखाई दिए।

भारत-पाकिस्तान का 1971 का युद्ध भी आपको याद होगा। निश्चित तौर पर आप पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के लिए इस युद्ध को याद करते होंगे, परंतु इससे इतर यही वो युद्ध था जिस दौरान रूस ने भारत की सहायता कर अपनी सच्ची दोस्ती का प्रमाण दिया था। 1971 के युद्ध के दौरान अमेरिका से लेकर चीन तक तमाम देश खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में खड़े हो गए थे और इस दौरान केवल रूस ही ऐसा एकमात्र देश था, जो अपने मित्र भारत के साथ खड़ा रहा।

इस दौरान रूस ने समुद्री रास्ता रोककर अमेरिका के पोत को भारत पर हमला करने से रोक दिया था। इसके साथ इस दौरान अमेरिका कई बार UNSC में भारत के विरुद्ध प्रस्ताव लेकर आया, लेकिन रुस ने हर बार अमेरिका के प्रस्ताव पर वीटो किया, चूंकि UNSC का सदस्य भारत नहीं है ऐसे में रुस ही था जो भारत के पक्ष में UNSC में खड़ा हो गया था।

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ऐसा नहीं है कि केवल रूस ने ही भारत की सहायता की। भारत ने भी प्रत्येक मौकों पर रूस को समर्थन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। ये हमें अभी रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान देखने को मिल ही रहा है। आज रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, तो ऐसे में लगभग पूरी दुनिया ने रूस से मुंह मोड़ लिया है, वो पुतिन को खलनायक की तरह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे समय में भारत, रूस के साथ दोस्ती निभाता नजर आ रहा है। भारत कभी हिंसा या युद्ध का पक्षधर नहीं रहा है, ऐसे में भारत ने युद्ध का समर्थन तो नहीं किया, परंतु रूस के खिलाफ भी नहीं गया और केवल बातचीत के जरिए ही इसका समाधान निकालने की बात करता रहा।

अनेकों वैश्विक दबावों के बावजूद भारत ने रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान एक बार भी रूस या रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोला है। भारत ने रूस दबाव के बाद भी कच्चा तेल खरीदना जारी रखा।

भारत आज रूस का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीददार बन गया है।​​ भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब तक के अपने उच्चतम स्तर 1,822 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया। वित्त वर्ष 2020-21 में दोनों देशों के बीच मात्र 814 करोड़ डॉलर का व्यापार हुआ था, जो वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 1,312 करोड़ पर पहुंचा।

रुस और चीन का व्यापार भी दूसरी तरफ तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में भारत को रुस के साथ अपने व्यापार को और तेजी से आगे बढ़ाना होगा, जिससे कि रुस जैसा भरोसेमंद साथी भारत के साथ वैसे ही जुड़ा रहे, क्योंकि यदि चीन का वर्चस्व बढ़ता है तो यह सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक के लिए परेशानी की बात होगी।

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