बद्रीनाथ धाम में शंख क्यों नहीं बजाया जाता है? इसके पीछे की कथा रोचक है

कारण धार्मिक और वैज्ञानिक भी है।

बद्रीनाथ शंख

भारत और भारत की रीतियों को समझना बहुत ही जटिल कार्य है। जिस देश में “कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी” जीवन का एक पर्याय हो, वहां हर स्थान की अपनी संस्कृति, अपनी रीति तो होगी ही और जब अलग-अलग रीतियों की बात आती है तो हमें बद्रीनाथ की ओर ध्यान केंद्रित करना होगा। यह रीति शंख से संबंधित है जो लंबे समय से अनवरत चली आ रही है। यह है- शंख न बजाने की रीति।

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इस लेख में जानेंगे कि क्यों बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता।

बद्रीनाथ हमारे देश के सबसे पवित्र धामों में से एक है, जहां हर वर्ष लाखों करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। परंतु क्या आपको पता है कि इतने पवित्र धाम में शंख वादन वर्जित है? ऐसा क्यों? इसके पीछे दो कारण है, जिनमें से एक सांस्कृतिक है तो दूसरा वैज्ञानिक।

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सांस्कृतिक कारण

पहले जानते हैं सांस्कृतिक कारण- एक किवदंती के अनुसार, एक समय में हिमालय क्षेत्र में दानवों का बड़ा आतंक था। वो इतना उत्पात मचाते थे कि ऋषि मुनि न तो मंदिर में ही भगवान की पूजा अर्चना तक कर पाते थे और न ही अपने आश्रमों में, यहां तक कि वो उन्हें ही अपना निवाला बना लेते थे। राक्षसों के इस उत्पात को देखकर ऋषि अगस्त्य ने मां भगवती को सहायता के लिए पुकारा, जिसके बाद माता कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और कटार से सभी राक्षसों का विनाश कर दिया।

परंतु उनका मनोरथ पूर्णत्या सफल नहीं हुआ क्योंकि इस पूरे प्रकरण के बाद भी दो राक्षस माता के प्रकोप से बचने में सफल रहे। इन राक्षसों के नाम थे आतापी और वातापी, जो मां कुष्मांडा के प्रकोप से बचने के लिए भाग गए। इसमें से आतापी मंदाकिनी नदी में छुप गया जबकि वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर घुसकर छुप गया। इसके बाद से ही बद्रीनाथ धाम में शंख बजाना वर्जित हो गया और यह परंपरा आज भी चलती आ रही है।

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वैज्ञानिक कारण  

दूसरा कारण वैज्ञानिक है- बद्रीनाथ एक बड़े ही संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्र में स्थित है और ऐसा माना जाता है कि ऐसे क्षेत्र में शंखवादन से आपदाएं आ सकती हैं। जिसमें हिमस्खलन से लेकर भूकंप सम्मिलित है। ऐसे में बद्रीनाथ में शंख न बजाना केवल रीति ही नहीं, अपितु वैज्ञानिक कारण से भी जुड़ा है।

इन कारणों और रीतियों के इतर यहां सनातन धर्म में बद्रीनाथ धाम की महत्ता पर भी प्रकाश डालना होगा। माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम जिसे बद्री विशाल भी कहा जाता है इसे आदिगुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की खोई प्रतिष्ठा को पुनः पाने के लिए और राष्ट्र को एक बंधन में जोड़ने के लक्ष्य के साथ फिर से स्थापित किया। यह धाम बहुत प्राचीन है जिसका कई पवित्र ग्रंथों में उल्लेख होता है।

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बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ और बातें 

ऐसी मान्यता है कि भागवान के धान केदारनाथ और बद्रीनाथ के जब कपाट खुल रहे होते हैं तब मंदिर में जलने वाले दीपक का दर्शन विशेष होता है। 6 महीने तक बंद द्वार के भीतर देवता इस दीपक को जलाकर रखते हैं। माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम में पूजा पाठ कराने वाले पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं। बद्रीनाथ धाम का अपना महत्व और मान्यताएं हैं। भगवान का यह धाम सनातन धर्म का गौरव है।

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