यूं ही नहीं बने शक्तिकान्त दास “गवर्नर ऑफ द ईयर”

मोदी सरकार का तुरुप का इक्का

पता है संसार का सबसे बड़ा भ्रम क्या है? फर्स्ट इंप्रेशन इज द लास्ट इंप्रेशन। पूर्वाग्रह कितना हानिकारक हो सकता है, ये इसी बात से स्पष्ट होता है कि जब एक आईएएस अफसर को आरबीआई का अध्यक्ष यानि गवर्नर बनाया गया, तो सर्वप्रथम प्रश्न यही पूछा गया : “एक हिस्ट्री ग्रैजुएट भला देश का फाइनेंस कैसे संभालेगा?” परंतु शक्तिकान्त दास अलग ही मिट्टी के बने हैं।

और पढ़ें: अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पूरी दुनिया देखेगी भारत की शक्ति

इस लेख मे पढिये कि कैसे जहां कोविड और रूस यूक्रेन तनाव से बड़े बड़े महाशक्तियों की अर्थव्यवस्था डावांडोल हो चुकी है, वहीं शक्तिकान्त दास के नेतृत्व में भारत आर्थिक प्रगति के नए पैमाने लिख रहा है। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

शक्तिकान्त दास बने गवर्नर ऑफ द ईयर

अक्सर हमें समझाया जाता है, “देखो, वेस्ट कितना आगे बढ़ चुका है!” धार्मिक स्वतंत्रता से लेकर आर्थिक मोर्चे पर पच्छिम जगत के अनेकों उदाहरण दिए जाते हैं, और हमें बताया जाता है कि सीखना है, तो इनसे सीखो।

परंतु शक्तिकान्त दास इस फिलोसॉफी के ठीक विपरीत काम कर सकते हैं। जहां सम्पूर्ण जगत में आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत आर्थिक प्रगति की अपनी अनोखी राह अपनाए हुए हैं।

शायद इसीलिए अब सम्पूर्ण जगत भारत को आशा की एक नई किरण के रूप में देख रहा है। यही कारण है कि हाल ही में बहुचर्चित बैंकिंग संस्थान Central Banking पब्लिकेशन ने शक्तिकान्त दास के प्रभुत्व को मानते हुए उन्हे “गवर्नर ऑफ द ईयर” के पुरस्कार से सम्मानित किया है।

और पढ़ें: 2029 तक कैसे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा भारत?

इतना ही नहीं, इस संस्थान ने ये भी बताया कि कैसे शक्तिकान्त दास ने कोविड 19 और रूस यूक्रेन तनाव की दोहरी चुनौती से सफलतापूर्वक पार पाते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की नैया पार लगाई।

इनके अनुसार, “जब एक ओर जबरदस्त राजनीतिक दबाव हो, और दूसरी ओर आर्थिक त्रासदी का खतरा मंडरा रहा हो, तो आपके लिए विकल्प बहुत कम होते हैं। ऐसे समय में संयम से काम लेते हुए शक्तिकान्त दास ने सराहनीय प्रयास किया है”।

भारत का सॉलिड ग्रोथ vs अमेरिका की जगहँसाई

परंतु ये सब संभव कैसे हुआ? एक ओर अमेरिका के अधिकांश वित्तीय संस्थान या तो डूब चुके हैं, या फिर बुरी तरह से विपदाओं से ग्रस्त हैं।

कुछ सूत्रों की माने तो अमेरिका को लगभग 620 बिलियन डॉलर का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा है। Silicon Valley Bank एवं Credit Suisse जैसे संस्थानों का ठप पड़ना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

 

इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका की वित्तीय नीति के दोहरे मापदंड स्पष्ट है, और इसी के कारण दुनिया भर में तरह तरह की झड़प भी हुई हैं। परंतु अधिक धन प्रिन्ट करने की अमेरिका की ज़िद ही उसके अस्थिर अर्थव्यवस्था को अब ले डूबी है।

आर्थिक विश्लेषक रॉबर्ट कियोसाकी का मानना है कि यदि स्थिति ऐसी ही रही, तो जल्द ही अमेरिका में वो आर्थिक त्राहिमाम मचेगा, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी।

बताते चले कि इसी व्यक्ति ने एक समय लेहमैन ब्रदर्स द्वारा उत्पन्न वित्तीय संकट का सफलतापूर्वक अनुमान लगाया था।

तो इसका आरबीआई से क्या नाता? पहले कोविड 19, और फिर रूस यूक्रेन प्रकरण ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की नींव ही हिला दी। क्या अमेरिका, क्या यूके, बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ ताश के पत्तों की भांति बिखरने लगी।

 

परंतु भारत के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उलटे जहां एक ओर वैश्विक मार्केट में अफरा तफरी मची हुई है, वहीं दूसरी ओर भारत अपने सकारात्मक प्रगति के विजय रथ को आगे बढ़ाने की दिशा में अनवरत प्रयास कर रहा है।

हाल ही में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी, जिसमें भारतीय बैंकों के विलय और उससे भारतीय अर्थव्यवस्था को मिले अद्वितीय लाभ पर भी प्रकाश डाला गया।

शक्तिकान्त दास का वर्चस्व

अब बात करें शक्तिकान्त दास की, तो इनकी राह प्रारंभ से ही सरल नहीं थी। जब 2018 में इन्हें आरबीआई की कमान सौंपी गई थी, तो कथित आर्थिक विश्लेषक इनका उपहास उड़ाने में लगे हुए थे। ऐसा इसलिए क्योंकि ये इतिहास से परास्नातक थे, और वित्तीय मामलों से इनका कोई विशेष नाता नहीं था।

परंतु तथ्य भी कोई वस्तु होते हैं। ज्यादा समय की बात नहीं है, जब विमुद्रीकरण भारत में लागू हुआ, तो शक्तिकान्त दास ने ही इसकी रूपरेखा रची थी। इसके अतिरिक्त 2021 में 50 बिलियन से भी अधिक UPI के रियल टाइम ट्रांसजैक्शन हुए।

2016 में UPI लॉन्च हुआ, और शक्तिकान्त दास के नेतृत्व में इस प्रणाली की वार्षिक ग्रोथ कभी भी 150% से नीचे नहीं रही। अगर शक्तिकान्त दास न होते, तो जीएसटी को इतने सुचारु रूप से लागू नहीं किया जाता, जैसा वो आज है।

आज स्थिति यह है कि अधिकांश देश न केवल UPI की सफलता से अभिभूत हैं, अपितु इसका अनुसरण भी करना चाहते हैं।

परंतु शक्तिकान्त दास इतने पे नहीं रुके। जब 2020 में भारत को लगभग 24 प्रतिशत का आर्थिक ग्रोथ में नुकसान हुआ, तो इन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की योजनाओं को आगे बढ़ाते हुए उत्पादन, कृषि एवं सेवाओं यानि सर्विस सेक्टर में जबरदस्त सामंजस्य बिठाया।

इसके अतिरिक्त शक्तिकान्त दास ने ये सुनिश्चित किया कि आर्थिक मोर्चे पर भारत कहीं से भी सुस्त न दिखाई पड़े।

चाहे डिजिटल रुपये का अनावरण हो, या फिर डॉलर के प्रभुत्व से भारत को शनै शनै मुक्त कराना हो, शक्तिकान्त दास ने हर मोर्चे पर एक धाकड़ बल्लेबाज़ की भांति शानदार पारी खेली है।

इन्होंने क्रिप्टोकरेंसी के दुष्प्रभावों के प्रति भारत को सचेत भी कराया। आज अगर भारत वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में अपनी धाक जमाया हुए है, तो उसका थोड़ा श्रेय शक्तिकान्त दास को भी जाता है, जो किसी भी दबाव के आगे डगमगाए नहीं। इन्हें “अर्थव्यवस्था का संकटमोचक” कहने में कोई अतिशयोक्ति न होंगी।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version