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चीन का MENA में रुचि भारत के लिए चिंताजनक

समय रहते भारत को सचेत हो जाना चाहिए

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
12 March 2023
in विश्व
चीन का MENA में रुचि भारत के लिए चिंताजनक
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“लक्ष्य” में एक संवाद है, “पाकिस्तानी……पलट कर फिर आता है”, अर्थात जीतने पर आश्वस्त नहीं होना। ये बात चीन पर भी लागू होती है, जो अपने आप को मोर्चे में बनाये रखने हेतु कुछ भी करने को तैयार है, चाहे उसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े, और मिडिल ईस्ट में यही हो रहा है।

इस लेख मे जानिये  कि कैसे चीन मिडिल ईस्ट में कुछ ज़्यादा ही सक्रिय हो रहा है, और ये भारत के लिए शुभ संकेत नहीं। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

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हाल ही में वो हुआ जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। वर्षों से सऊदी अरब एवं ईरान के बीच जो कूटनीतिक संबंध ठप पड़े थे, वो पुनः स्थापित हुए हैं। दोनों देशों ने अपने अपने दूतावास पुनः चालू करने का निर्णय किया है, और वो भी किसकी देखरेख में? चीन की!

और पढ़ें: रूस-चीन का निरंतर करीब आते जाना क्या भारत के लिए चिंता का विषय है?

चूंकि चीन ने ही दोनों देशों को एक टेबल पर लाने की पहल की थी जिसमें वह कामयाब भी हो गया। उसमें दोनों मुस्लिम देशों ने अगले दो महीने के भीतर एक-दूसरे के देश में अपने दूतावास खोलने पर हामी भर दी है। समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट में ईरान और सऊदी अरब की मीडिया के हवाले से ये बताया गया है कि दोनों देशों ने चीन की राजधानी बीजिंग में बैठकर शांति वार्ता की थी जिसके बाद इस समझौता का ऐलान किया गया है। तो वहीं ईरान की न्यूज एजेंसी IRNA के मुताबिक, इस वार्ता के नतीजे के तहत ईरान और सऊदी अरब अगले दो महीने के अंदर कूटनीतिक रिश्ते शुरू करेंगे। साथ ही दोनों देश दूतावास खोलने पर भी राजी हो गए हैं।

तो इससे चीन को क्या लाभ होगा, और भारत को क्या हानि?

सोचिये, दुनिया में दो बड़े इस्लामिक मुल्कों-सऊदी अरब और ईरान में पिछले सात वर्षो से मतभेद चरम सीमा पर  चल रहा था। परंतु चीन के एक आह्वान पर उन्हें साथ आने पर विवश कर दिया है। इसे साथ ही ये अमेरिका के लिए ही एक बड़ा संदेश नहीं, अपितु ये संदेश भारत के लिए भी थोड़ा चिंता पैदा करने वाला है।

ऐसा इसलिए कि वह खाड़ी का ऐसा मुल्क है जो परमाणु समझौते पर शामिल होने के लिए आज भी तैयार नहीं है।  दुनिया भर के कूटनीतिक विश्लेषक इसलिए हैरान-परेशान हैं कि शिया और सुन्नी बहुल इन दोनों मुल्कों के बीच दोबारा दोस्ती कराने वाला चीन है और यह विषय गंभीरता से सोचने वाला है

बता दें कि ये दोनों ही मुल्क इस्लामिक हैं लेकिन इनके बीच पैदा हुई कड़वाहट की बड़ी वजह धार्मिक मतभेद को ही माना जाता है. एक ही मज़हब के दो अलग-अलग पंथों को मानने की वजह से इनके बीच दूरियां बढ़ती गईं और साल 2016 में हुई एक घटना ने दोनों के सारे रिश्ते ही तोड़ दिए.

ईरान को शिया मुसलमानों का मुल्क माना जाता है जबकि सऊदी अरब में सुन्नी मुस्लिमों का ही दबदबा है इसलिए वह दुनिया के मंच पर ख़ुद को एक सुन्नी मुस्लिम ताकत की तरह ही देखता है. हालांकि इस सच से भी इंकार नहीं कर सकते कि दोनों देश अब तक अपने  क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए ही लड़ रहे हैं। लेकिन बीजिंग में हुए इस समझौते ने अमेरिका को भी चौंका कर रख दिया है।

और पढ़ें: रुपया-रुबल में होगा भारत-रूस का व्यापार, मुहर लग गई है

दोनों देश पारस्परिक सहयोग के अन्य समझौतों पर भी अमल करेंगे. ईरान और सऊदी द्विपक्षीय संबंधों को आने वाले दिनों में मजबूत करने की दिशा में भी काम करेंगे. इस बैठक और इसमें हुए समझौते की जानकारी को पुख्ता करने के लिए ईरान की शीर्ष नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की एजेंसी ने बीजिंग में हुई शांति वार्ता की तस्वीरें और वीडियो जारी किए हैं. इन तस्वीरों में काउंसिल के सेक्रेटरी अली शामखानी को सऊदी अरब के अधिकारी और चीनी अफसर के साथ देखा जा सकता है.

परंतु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है : चीन को इन सबसे क्या लाभ मिलेगा? असल में दोनों मिडिल ईस्ट के दो अलग अलग धुरी हैं। इन्हे साथ लाकर चीन का न केवल कूटनीतिक दबदबा बढ़ेगा, अपितु BRI परियोजना भी पुनः जीवित होगी। परिणाम : मिडिल ईस्ट के हर संसाधन पर चीन का एकाधिकार होगा और नुकसान किसका अधिक? भारत का होग परंतु भारत अकेला नहीं है। मिडिल ईस्ट में रूस भी अपना लाभ देख रहा है, और यदि चीन ने एकाधिकार जमाया, तो रूस के लिए श्रेयस्कर नहीं होगा।

और पढ़ें: “ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी नहीं तो रक्षा समझौता नहीं,” भारत ने शांति से रक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव कर दिए हैं

चीन में हुए इस समझौते का कितना महत्व है इसका अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि दोनों देशों के आधिकारिक मीडिया ने इसे बेहद तवज्जो से प्रसारित किया है. ईरान की समाचार एजेंसी IRNA ने संयुक्त बयान का हवाला देते हुए कहा, “बातचीत के बाद इस्लामिक गणराज्य ईरान और सऊदी अरब के साम्राज्य ने दो महीने के भीतर राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल करने और दूतावासों, मिशनों को फिर से खोलने पर सहमति व्यक्त की है”। तो वहीं आधिकारिक सऊदी प्रेस एजेंसी ने भी इस पर बयान जारी करते हुए कहा कि इस घोषणा से ठीक पांच दिन पहले बीजिंग में बातचीत हुई थी।

ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली शामखानी ने सोमवार को तेहरान और रियाद के बीच की समस्याओं को हल करने के लिए बीजिंग में अपने सऊदी समकक्ष के साथ गहन बातचीत की थी. वैसे हैरानी की बात ये भी है कि ईरान और सऊदी अरब के पड़ोसी इराक ने अप्रैल 2021 से ईरान और सऊदी अरब के बीच कई दौर की वार्ता की मेजबानी की थी लेकिन फिर भी वो उसमें कामयाब नहीं हो पाया, जो चीन ने एक झटके में ही अपना कमाल कर दिखाया। ऐसे में ये खबर भारत के लिए चिंताजनक अवश्य है, परंतु सचेत होने हेतु सही समय पर आया है।

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Tags: IranMENANarendra ModiSaudi Arabxi jinpingचीनपाकिस्तानीभारत
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