UAPA का मतलब है Unlawful Activities (Prevention Act, जिसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम कहा जाता है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है, इस कानून के तहत उन लोगों को चिह्नित किया जाता है, जो आतंकी गतिविधियों में सम्मलित होते हैं या जिन पर फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप होता है।
देश के राजनीतिक गलियारों में इस कानून को लेकर अक्सर विवाद सामने आते रहते हैं। इस कानून को लेकर विपक्षी दल और तथाकथिल बुद्धीजीवी देश में बवाल करते रहते हैं। देश की सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम संशोधन अधिनियम, 2008 (यूएपीए) के एक मामले पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि यदि कोई व्यक्ति भारत में प्रतिबंधित किसी संगठन का सदस्य भी होता है तो उसको यूएपीए के तहत आरोपी मानते हुए कार्रवाई की जाएगी।
यूएपीए के विरोधियों को कोर्ट से मिला बड़ा झटका
जस्टिस एमआर शाह, सीटी रविकुमार और संजय करोल की तीन सदस्यीय पीठ ने यह फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने शुक्रवार को अपने 2011 के फैसले को कानून की दृष्टि से खराब करार दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र से कोई व्यक्ति तब तक अपराधी नहीं बनेगा जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता या लोगों को हिंसा के लिए उकसाता नहीं है।
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जस्टिस एमआर शाह, सीटी रविकुमार और संजय करोल की पीठ ने दो जजों की बेंच द्वारा दिए गए एक संदर्भ का फैसला करते हुए कहा कि प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र से एक व्यक्ति आपराधिक हो जाएगा और यूएपीए के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी होगा। कोर्ट का ये निर्णय उस पूरे समूह के लिए किसी थप्पड़ से कम नही है जो यूएपीए के विरोध में रहते हैं।
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