आज भी BCCI और गांगुली के लिए दुस्वप्न समान है ग्रेग चैपल की नियुक्ति

भारतीय क्रिकेट को कलंकित करने वाले कोच की अनकही कथा

Ganguly Chappel controversy: क्रिकेट में कुछ अध्याय ऐसे रहते हैं, जिसके बारे में जितनी कम चर्चा हो, उतना ही अच्छा। परंतु दो ऐसे भी अध्याय है, जो आज भी छुपाये नहीं छुप सकते। एक था 1981 का वो मैच, जहां मैच जीतने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध अंडरआर्म गेंदबाज़ी की, जो क्रिकेट के शिष्टाचार के ठीक विरुद्ध था। दूसरा था 2007 का क्रिकेट विश्व कप, जिसमें 15 वर्ष बाद भारत लीग स्टेज से भी आगे नहीं बढ़ पाए। दोनों में समान बात पता है क्या है? ग्रेग चैपल।

इस लेख में पढिये कि कैसे ग्रेग चैपल की नियुक्ति ने भारतीय क्रिकेट को एक नाटकीय मोड़ दिया, और कैसे ये बीसीसीआई एवं गांगुली के लिए आज भी किसी दुस्वप्न (Ganguly Chappel controversy) से कम नहीं।

Ganguly Chappel controversy: कभी भारत के धुर विरोधी भारत के कोच कैसे बने

अगर आप क्रिकेट के प्रशंसक हैं, तो आप चैपल बंधुओं के बारे में कहीं न कहीं परिचित होंगे। 80 के दशक में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट का अधिकतम दायित्व तीन भाइयों : ग्रेग, इयान और ट्रेवर चैपल के कंधों पर था। ग्रेग तीनों भाइयों में मझले थे, और अपने स्ट्रोक प्ले के लिए अधिक जाने जाते थे। 1979 से लेकर 1984 में कई बार उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम का नेतृत्व किया।

ग्रेग चैपल प्रारंभ से ही भारतीय क्रिकेट के प्रति सकारात्मक भाव नहीं रखते थे। परंतु 2005 ने अलग ही करवट ली। भारतीय क्रिकेट टीम को आक्रामक बनाने वाले न्यूज़ीलैंड के पूर्व बल्लेबाज़ जॉन राइट कोच के पद से त्यागपत्र दे चुके थे, और अब तलाश थी नए कोच की।

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गांगुली की प्राथमिकता उन्ही पर पड़ी भारी

इस बीच कई नाम सामने आए, परंतु अंत में मुकाबला दो ऑस्ट्रेलियाई दिग्गजों में हुआ। एक थे टॉम मूडी, जो 1999 में ऑस्ट्रेलिया को विश्व कप जिता चुके थे, और दूसरी ओर थे ग्रेग चैपल। परंतु सौरव गांगुली ने ग्रेग को चुना, और ग्रेग चैपल भारतीय टीम के कोच के रूप में नियुक्त हुए।

सौरव ने ग्रेग को क्यों चुना? उनके अनुसार, ग्रेग की आक्रामकता भारतीय टीम को धार देगी, और उन्हें वैश्विक स्तर पर खेलने योग्य एक दमदार टीम के रूप में विकसित भी करेंगे। परंतु हुआ ठीक उल्टा। जैसा पहले कहा था, ग्रेग वो व्यक्ति थे, जिनका शिष्टाचार से दूर दूर तक कोई आचरण नहीं था। इन्होंने ही ट्रेवर चैपल को अंडरआर्म गेंद डालने का ऑर्डर दिया, और विकेटकीपर रॉड मार्श के विरोध के बाद भी वे नहीं डिगे।

अब ऐसे व्यक्ति भला सौरव गांगुली जैसे धाकड़ व्यक्ति के समक्ष कैसे झुकते? इन्होंने टीम में अंग्रेज़ों की “डिवाइड एंड रूल” वाली नीति अपनाई, और जो सौरव ग्रेग को भारतीय टीम का चेहरा बदलने के लिए टीम में लिए, कुछ ही माह बाद उन्ही के विरुद्ध ग्रेग ने पूरी टीम को खड़ा कर दिया।

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जब तेंदुलकर को क्रोध आए, तो सब ठीक नहीं

परंतु Ganguly Chappel controversy का दुष्परिणाम पूरे टीम ही नहीं, भारतीय क्रिकेट ने भी भुगता। धीरे धीरे कई खिलाड़ी ग्रेग से रुष्ट रहने लगे, जिनमें वीरेंद्र सहवाग भी शामिल थे, और चूंकि ग्रेग चैपल ने राहुल द्रविड़ को कप्तान बनाया था, इसलिए उनकी प्रत्यक्ष भूमिका न होते हुए भी उन्हें जनता के कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा।

परिणामस्वरूप जिस भारत ने बड़े बड़े टीमों को चुनौती देना प्रारंभ किया था, वह अपने ही घर में चैंपियंस ट्रॉफी नहीं जीत पाई। पर 2007 के विश्व कप ने सबकुछ बदलकर रख दिया। जब भारत लीग स्टेज में ही बाहर हो गई, तो दे

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देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए और ग्रेग चैपल को बाहर करने की मांग तेज हुई। ग्रेग ने सारा ठीकरा खिलाड़ियों पर ही फोड़ते हुए कहा कि उनकी कोई बात नहीं सुनता।

परंतु इस बात पर एक ऐसे व्यक्ति भड़के, जिन्हे कम ही क्रोधित होते हुए किसी ने देखा या सुना। ये थे भारत की शान, “क्रिकेट के भगवान” कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर, जिन्होंने ग्रेग की पोल खोलते हुए कहा कि इन्होंने जिस प्रकार से उन्हे और अन्य खिलाड़ियों को हतोत्साहित किया, उनकी क्षमताओं पर संदेह किया, ऐसा कोई अन्य सपने में भी नहीं सोच सकता। आशीष नेहरा ने तो अपने अनोखी शैली में तंज कसते हुए कहा, “भला हो कि मुझे अधिक खेलने को नहीं मिला इनके साथ। ग्रेग वो व्यक्ति है जो बिरयानी को भी खिचड़ी बना दे”। अंत में बीसीसीआई के पास भी कोई चारा नहीं बचा, और ग्रेग चैपल को पद छोड़ने पर विवश करना पड़ा।

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