ट्विटर पर तो भांति भांति के ट्रेंड चलते हैं, और इस डिजिटल मीडिया के दौर में ये चलने या चलाये गए ट्रेंड स्वभाविक रूप से जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करवाने में बहुत म्मयानो में सफ़ल् भी हो जाते है । इन्ही में से एक है #AnpadhPM, जिसमें पीएम मोदी की शिक्षा दीक्षा पर प्रश्न उठाया गया है।
परंतु प्रश्न तो यह है कि अचानक यह ट्रेंड क्यों और इसके प्रयोजन क्या हैं?
दरसल यह और कुछ नहीं अपितु अरविंद केजरीवाल की उपद्रवी मस्तिष्क की एक आवृत्ति है। परंतु अरविंद केजरीवाल शायद भूल गए हैं कि उनकी इन बेवजह और बेतुके उपज ने इससे पूर्व उनको कितना नुकसान पहुंचाया है। और फिर उसी भूल को दोहराते हुए दिल्ली के माननीय मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी के शिक्षा पर प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं, जिसके पीछे 2017 आते आते वे कुछ समय के लिए न घर के रहे न घाट के।
इस लेख मे पढिये कि कैसे अरविन्द केजरीवाल पीएम मोदी को हल्के में लेने की बहुत भारी भूल कर रहे हैं, और कैसे उनके बिगड़े बोल पीएम मोदी के लिए 2024 की राह आसान करने वाले हैं।
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#AnpadhPM: केजरीवाल के फिर बिगड़े बोल
असल में कुछ दिनों से ट्विटर पर एक ट्रेंड बहुत चर्चा में है, “#AnpadhPM”। इसके प्रणेता अरविन्द केजरीवाल ही थे, जिन्होंने पीएम मोदी की शिक्षा दीक्षा पर प्रश्न उठाया। उन्हें “अनपढ़” के रूप में संबोधित करते हुए अरविन्द केजरीवाल ने कहा, “देश के प्रधानमंत्री को पढ़ा-लिखा होना बहुत जरूरी है। उन्होंने पूरे देश से थाली-चम्मच बजवा दी, लेकिन क्या कोरोनावायरस भाग गया?”
ये बातें केजरीवाल ने मध्यप्रदेश में एक सभा को संबोधित करते हुए बोली। ज्ञात हो कि इसी वर्ष के अंत में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां पर अब AAP भी अपना भाग्य आजमाना चाहती है। परंतु केजरीवाल केवल उतने पे नहीं रुके। आगे कहते हैं, “कम पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री होंगे तो कोई आकर कहेगा ‘प्रधानमंत्री जी, सब से थाली बजवाओ, इससे जो तरंगे निकलेंगी उससे Corona भाग जाएगा।’ लोग भी कहेंगे कि प्रधानमंत्री कह रहे हैं तो कुछ होगा ही। क्या कोरोना भाग गया? इसीलिए मैं कहता हूं कि देश के प्रधानमंत्री को पढ़ा-लिखा होना बहुत जरूरी है”।
When PM of a country is illiterate then the country plays thali to fight epidemic instead of science. That is why it is very important to have educated Prime Minister- Arvind Kejriwal pic.twitter.com/0f90oKcMIw
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) March 14, 2023
भारत को दिल्ली समझने की भूल न करें
फिर क्या था? केजरीवाल के इतना बोलते ही उनके शागिर्दों ने ट्विटर पर “#AnpadhPM” संबंधित ट्वीट्स की बाढ़ सी ला दी। इतना ही नहीं, बड़े ही सफाई से नरेंद्र मोदी के उस साक्षात्कार के आधे अधूरे क्लिप भी चलाये, जो उन्होंने बतौर भाजपा महासचिव रहते हुए “रूबरू” पे तत्कालीन पत्रकार और BCCI के उच्चाधिकारी राजीव शुक्ला को दिया था।
तो फिर समस्या क्या है? समस्या है केजरीवाल की हठी सोच में, जिनके अनुसार संसार में अगर कोई पढ़ा लिखा है, अगर जनता को कोई उपदेश दे सकता है, तो केवल वही हैं। इनकी कुंठा को देखकर कौन विश्वास करेगा कि ये आईआईटी खड़गपुर के स्नातक है, और कभी भारतीय राजस्व सेवा यानि IRS के अफसर भी रहे थे।
समस्या ये भी है कि अरविन्द केजरीवाल दिल्ली को भारत मानके बैठे हैं। कोई कृपया इस मनुष्य को समझाए कि चुनावी सफलता और जन लोकप्रियता में धरती और अंबर का अंतर है।
चुनाव तो ममता बनर्जी ने भी जीता था, पर बंगाल को छोड़कर भारत के किस राज्य में तृणमूल कांग्रेस का सिक्का चलता है? अभी तो हमने अखिलेश यादव, नीतीश कुमार जैसे महानुभावों का नाम भी नहीं लिया है।
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#AnpadhPM: कोरोना पे केजरीवाल का लाजवाब रिकॉर्ड
रही बात इनके आरोपों की, जिसको रिकॉर्ड प्लेयर की भांति इनके समर्थक ट्विटर समेत कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पे चला रहे हैं, तो उन जड़ बुद्धियों से से मेरा एक साधारण सा सवाल है।
कोविड महामारी के दौरान पीएम मोदी ने क्या गलत किया? क्या उन्होंने यह कहा कि दवाई और अस्पताल त्याग दो, ताली और थाली से काम चल जाएगा? क्या उन्होंने यह कहा कि वैक्सीन का ख्याल छोड़ दो, उससे कोरोना नहीं ठीक होना? जो व्यक्ति देशवासियों के स्वास्थ्य के लिए अमेरिका, यूके जैसे देशों से दो दो हाथ करने की ठान ले, वह किस एंगल से “अनपढ़” हैं, कृपया केजरीवाल बताने का कष्ट करेंगे?
अब जब बात कोरोना पे छिड़ी ही है, तो तनिक केजरीवाल के “बेमिसाल प्रदर्शन” पर भी ध्यान देते हैं। जब दूसरी लहर ने देशभर में तांडव मचा रखा था, तो आपको स्मरण है कि कैसे ऑक्सीजन सिलिन्डर की कमी पड़ने लगी थी? तब ये “पढ़े लिखे” केजरीवाल क्या कर रहे थे? कुछ नहीं, बस दिल्लीवालों को तड़पने के लिए छोड़कर केंद्र सरकार को बलि का बकरा बनाने पे तुले हुए थे। अगर इस घोटाले का अन्वेषण किया जाए, तो केजरीवाल शायद कांग्रेस के भीमकाय घोटालों को भी टक्कर देते हुए दिखाई पड़ेंगे।
इसके अतिरिक्त अगर वैक्सीन पर किसी क्षेत्र ने सबसे अधिक हाय तौबा मचाई है, तो एक ओर केरल का राज्य था, और दूसरे थे अरविन्द केजरीवाल और उनकी दिल्ली सरकार। न केवल भारतीय वैक्सीन की क्षमता पर इन्होंने प्रश्नचिन्ह, परंतु इस विषय पर इन्होंने लगभग हर भारत विरोधी तत्व को बढ़ावा दिया। ऐसे में कृपया “शिक्षा” पर ये तो ज्ञान न ही दें!
जब देश स्वतंत्र हुआ था, तब शिक्षा के नाम पर हमारा देश बहुत अधिक प्रगतिवादी नहीं था। 1951 में जब भारत एक गणतांत्रिक राष्ट्र बना था, तब एक राजनेता के लिए क्या क्वालिफ़िकेशन थी? ऐसे क्या पैमाने थे, जिसको पूरा न कर पाने पर किसी व्यक्ति को जनता का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं?
आज भी इस पर कोई स्पष्ट राय नहीं है। अगर पढ़ा लिखा ही एकमात्र पैमाना है, तो क्या लालू यादव के परिवार का समर्थन कर केजरीवाल अपनी ही बात का उपहास नहीं उड़ा रहे, क्योंकि स्नातक छोड़िए, लालू यादव के पुत्रों ने अपनी 12वीं की पढ़ाई तक पूरी नहीं की है। क्या पीएम मोदी के शिक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगाकर केजरीवाल उसी Elitism को बढ़ावा नहीं दे रहे, जिसका विरोध कर ये महोदय सत्ता में आए थे?
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