वाडिया समूह: आज भारत में उद्यमिता की स्थिति पहले से बेहतर है। अनेकों कंपनियां एक भीषण प्रतिस्पर्धा में सम्मिलित है, परंतु जिनका प्रभाव सबसे अधिक है भारतीय उद्योग पर, वह है धीरुभाई अंबानी का रिलायंस समूह [जो अब मुकेश अंबानी के हाथ में हैं], और गौतम अडानी का अडानी समूह। आप चाहें इनका समर्थन करे या विरोध, पर इन्हे अनदेखा तो अवश्य नहीं कर सकते।
परंतु एक समय ऐसा भी था, जब भारतीय उद्योग पर दो अलग परिवारों का वर्चस्व व्याप्त था। इन्हे बिड़ला और बजाज परिवार की तरह सरकार का संरक्षण नहीं मिला था, परंतु इन दोनों ने एक समय भारतीय उद्योग में धाक जमा रखी थी। ये कोई और नहीं, वाडिया और टाटा समूह हैं।
इस लेख मे पढिये कैसे ब्रिटिश डकैतों और दहेज के एक किस्से से वाडिया समूह ने भारतीय उद्योग में अपनी पैठ बना ली। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
ब्रिटिश पायरेट्स के एक धावे ने इनके सोये भाग्य जगाए
जब आप गो एयर जैसे हवाई जहाज़ में चढ़ते हो, तो एक अनोखा लोगों आपको प्रवेश द्वार पे मिलता होगा, कुछ ऐसा :
कभी सोचा है कि ऐसा क्यों, और किसलिए? असल में गो एयर इसी समूह का एक हिस्सा है, जो बॉम्बे डाइंग, बॉम्बे रियलटी, ब्रिटानिया बेकरी उत्पाद का स्वामित्व संभालता है, और आईपीएल में एक समय पंजाब किंग्स में भी अच्छी खासी हिस्सेदारी रखता था। इतना ही नहीं, जब बॉलीवुड का उद्भव हुआ था, तो प्रारंभ में वाडिया मूवीटोन नाम से इस परिवार का एक भाग फिल्में बनाती थी।
If you have ever flown Go Air, on their fuselage you will see the logo of a company, with a ship on it.
If you have ever wondered, what is an 18th Century Ship doing on a 21st century airplane, then it's time for a nice little story
A story involving dowry and an act of piracy.
— The Kaipullai (@thekaipullai) March 12, 2023
कैसे वाडिया समूह की स्थापना हुई?
तो वाडिया समूह की स्थापना कैसे हुई? इसके पीछे की एक रोचक कथा है, जिसका संबंध मध्यकालीन इतिहास, विशेषकर औरंगज़ेब के आगमन से संबंधित है। कहने को ब्रिटिश इतिहासकारों ने सदैव भारतीयों को “असभ्य, दानव रूपी” जैसा चित्रित करने का प्रयास किया है।
परंतु अपने खुद के कुकर्मों को इन्होंने बड़ी ही सफाई से छुपाया है। जब ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति ने पाँव भी नहीं जमाए, तभी से ब्रिटेन से निकले समुद्री दस्यु यानि पायरेट्स ने संसार के लगभग समस्त सागरों में उत्पात मचाया हुआ था, और भारत भी इससे अछूता नहीं था।
सितंबर 1695 को एक भारतीय समूह पर ब्रिटिश दस्युओं ने धावा बोला, जो मक्का के लिए प्रस्थान कर रही थी। उसके बाद जो त्राहिमाम मचा, उसका उल्लेख करना भी कठिन है। पर इतना स्पष्ट था कि लूटपाट, दुष्कर्म और हत्या के इस तांडव के बाद उन डकैतों के हाथ 600000 पाउन्ड का खज़ाना हाथ लगा, जिसमें औरंगज़ेब की पुत्रियों के आभूषण भी सम्मिलित थे।
परंतु ये घटना अनदेखी नहीं गई। एक तो पहले ही मराठा योद्धाओं ने मुगल साम्राज्य की नाक में दम कर दिया था, ऊपर से इस डकैती ने औरंगज़ेब को अंदर तक झकझोर दिया था और उसने सूरत की घेराबंदी कर दी, जो उस समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का बेस हुआ करता था। भयभीत होकर अंग्रेजों ने हेनरी ऐवरी के विरुद्ध एक तलाशी अभियान प्रारंभ किया। परंतु इसमें उन्हे आंशिक सफलता ही हाथ लगी, क्योंकि हेनरी को छोड़ बाकी अन्य पकड़े गए, और हेनरी 1696 के बाद कहाँ चला गया, किसी को पता नहीं लगा।
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नौकायन से निकला समूह का नाम
जल्द ही अंग्रेज़ों को समझ में आने लगा कि उनके लिए सूरत में बने रहना श्रेयस्कर नहीं। यहाँ उन्हे न केवल मुगलों से, अपितु मराठा योद्धाओं से भी खतरा महसूस होने लगा, जो हिंदवी स्वराज्य की तत्कालीन संरक्षक, ताराबाई मोहिते के अंतर्गत रौद्र रूप धारण कर चुकी थी। ऐसे में इन्होंने एक ऐसे द्वीप समूह को चुना, जो 1534 में इन्हे एक प्रकार से दहेज में मिला था, और उस दहेज का नाम था बॉम्बे, जो आज मुंबई के नाम से विश्वप्रसिद्ध है।
परंतु जब काशी एक दिन में नहीं बनी थी, तो फिर सूरत से बॉम्बे EIC का स्थानांतरण कैसे होता? ऐसे में एक पारसी नौका निर्माता ने उनकी सहायता के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। इनका नाम था लोजी नुसेरवानजी [Lowjee Nusserwanjee], जो पहले सूरत में एक सम्पन्न जहाज निर्माता के लिए काम करते थे, और इन्ही के नेतृत्व में एशिया का प्रथम ड्राई डॉक एवं मझगाँव के डॉक का निर्माण 1774 तक सम्पन्न हुआ।
अब लोजी नुसेरवानजी जैसे नाम के साथ काम करना तो लगभग असंभव था, तो उन्होंने एक नया नाम चुना, जिससे उनका उद्योग और उनका परिवार जाना जाता। गुजराती में नौका निर्माता को वाडिया कहा जाता है, और यहीं से उत्पत्ति हुई वाडिया समूह की। वर्षों बाद, जब प्रतीक चिन्ह को चुनने की बारी आई, तो उन्होंने अपने व्यवसाय के अनुरूप जहाज़ निर्माण को अपना प्रतीक बनाया।
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जिन्ना से इनका छत्तीस का आंकड़ा था
शीघ्र ही जहाज़ निर्माण से लेकर टेक्सटाइल, व्यापार, बेकरी एवं क्रिकेट में वाडिया समूह ने अपनी धाक जमा ली। आज भी ये भारत के सबसे धनाढ्य परिवारों में से एक है। परंतु क्या आपको पता है कि वाडिया परिवार का पाकिस्तान के संस्थापक, मोहम्मद अली जिन्ना से भी एक अजीबोगरीब नाता था?
अब जिन्ना ने वर्षों पूर्व रतनबाई पेटिट नामक एक 18 वर्षीय कन्या से निकाह किया था। इससे समूचे पारसी समुदाय में कोहराम मच गया, क्योंकि रतनबाई स्वयं एक प्रभावशाली परिवार से संबंध रखती थी, और इनके समधियों में टाटा परिवार भी सम्मिलित था। परंतु समय ने ऐसा फेर लिया कि वर्षों बाद जिस जिन्ना ने “धर्म की सीमाएँ लांघकर” रतनबाई से विवाह किया था, वह अपने ही बेटी दीना के प्रेम प्रसंग में सबसे बड़े शत्रु भी बन गए। दीना ने अपनी माँ की भांति विद्रोह करते हुए नेविल वाडिया से प्रेम विवाह किया, जिन्होंने आगे चलकर वाडिया ग्रुप की कमान संभाली। अब वो अलग बात है कि दोनों का विवाह बहुत अधिक सफल नहीं रहा, परंतु जिन्ना के साथ ये नाता सदैव के लिए जुड़ गया।
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