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चारण : राजपूताना के “योद्धा कवि”

राजपूतों का इतिहास इनके बिना अधूरा है....

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
7 April 2023
in इतिहास
चारण : राजपूताना के “योद्धा कवि”
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Charan caste history in Hindi: भारत में भांति भांति के योद्धा उत्पन्न हुए हैं। कुछ के लिए बल अधिक महत्वपूर्ण है, तो कुछ ने बुद्धि से युद्ध जीते हैं, परंतु राजस्थान वो भूमि है, जहां के कण कण में वीर रस बसता है। यहाँ के कवि भी किसी योद्धा से कम नहीं, और कइयों ने सक्रिय रूप से राजपूताना के गौरव को अक्षुण्ण रखा।

इस लेख में जानिये कथा चारण समुदाय (Charan caste history in Hindi) की, और कैसे इन्होंने राजपूताना इतिहास पर एक अद्वितीय प्रभाव डाला।

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“वीर भोग्य वसुंधरा”

Charan caste history in Hindi

राजपूतों का आप समर्थन करो या विरोध, पर इन्हे अनदेखा करने की भूल आप कदापि नहीं कर सकते। यहीं पर चारण समुदाय का महत्व बहुत बढ़ जाता है। ऐतिहासिक रूप से, चारण कवि और इतिहासकार होने के साथ-साथ योद्धा और जागीरदार भी रहे हैं। चारण सैन्य क्षत्रपों , इतिहासकारों, कृषि विशेषज्ञों, व व्यापारियों के रूप में प्रतिष्ठित थे। मध्ययुगीन राजपूत राज्यों में चारण मंत्रियों, मध्यस्थों, प्रशासकों, सलाहकारों और योद्धाओं के रूप में स्थापित थे। शाही दरबारों में कविराजा (राज कवि और इतिहासकार) का पद मुख्यतया चारणों के लिए नियोजित था।

ऐतिहासिक रूप से दैवीय माने जाने के कारण, एक चारण का अलंघ्य व अवध्य होना उनके प्रति पवित्र मान्यता का प्रमाण था;इन्हे हानि पहुँचाना गौहत्या व ब्रह्महत्या के समान एक अपराध माना जाता था। संस्थागत और धार्मिक रूप से स्वीकृत सुरक्षा के साथ-साथ, वे व्यवहारस्वरूप निडर होकर शासकों और उनके दुष्कृत्यों की आलोचना करते थे, शासकों के बीच राजनीतिक विवादों में मध्यस्थता करते थे, और पश्चिमी भारत के संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में व्यापारिक गतिविधियों के संरक्षक के रूप में कार्य करते थे।

और पढ़ें: “इस बैठक के बाद स्वतंत्रता आंदोलन की तस्वीर बदल गई”, वीर सावरकर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने क्या बातचीत की थी?

राणा हम्मीर का गौरव बढ़ाया

चारण (Charan caste) अपने प्रशासनिक और अनुष्ठान पदों के अनुसार, राजपूताना, सिंध, सौराष्ट्र सहित कई क्षेत्र के दरबारों के अभिन्न अंग थे। वे विभिन्न प्रशासनिक और राजनयिक पदों के अलावा, प्रायः प्रमुख राज्य गणमान्य व्यक्तियों के रूप में स्थापित थे। इनका पारंपरिक रूप से उच्च साक्षर समुदाय से होना, राजकीय पदों पर चयन और प्रगति के लिए योग्यता मानदंडों में से एक था। साक्षरता और सेवा की परंपराओं के साथ एक स्वदेशी समुदाय के रूप में चारण समुदाय ने वरिष्ठ राजकीय नियुक्तियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह बात राणा हम्मीर द्वारा मेवाड़ की पुनर्स्थापना से भी स्पष्ट होती है।

वो कैसे? जब हम्मीर सिंह ने चित्तौड़ को पुनः प्राप्त करने की मंशा से अपना अभियान प्रारंभ किया, तो चारण समुदाय ने अपना सर्वस्व अर्पण किया। ये सात्विक प्रवृत्ति के नहीं थे, परंतु वे अपने निष्ठपूर्ण आचरण के लिए जाने जाते थे और युद्ध के मैदान में वीरता और बलिदान में अपने कौशल के लिए शासकों द्वारा उनका सम्मान किया जाता था।

मेवाड़ और मारवाड़ जैसे प्रांत इन्ही के कारण अपना गौरव प्राप्त करने में सफल हुआ। राणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे विभिन्न शासकों के शासनकाल के दौरान सम्मान सूची में प्रमुख चारणों के नाम शामिल हैं। करमसी आशिया बनवीर के विरुद्ध उदय सिंह द्वितीय के पक्ष में महोली के युद्ध में लड़े। हल्दीघाटी के युद्ध में, मेवाड़ की ओर से लड़ने वाले चारण सरदारों में, जयसाजी और केशवजी सौदा के नेतृत्व में सोन्याणा के चारण, साथ ही रामाजी और कान्हाजी सांदू, गोवर्धन और अभयचंद बोक्षा, रामदास धर्मावत आदि शामिल थे।

सन 1658 में जब औरंगज़ेब के विरुद्ध विद्रोह प्रारंभ हुआ, तो पश्चिमी मोर्चे से राजपूतों का प्रतिनिधित्व करते हुए चारण समुदाय ने पुनः अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। चार विख्यात योद्धा – खिड़िया जगमाल धर्मावत, बारहठ जसराज वेणीदासोत, भीमाजल मिश्रण, और धर्माजी चारण – महाराजा जसवंत सिंह और रतन सिंह राठौड़ के पक्ष में औरंगज़ेब के विरुद्ध बहादुरी से लड़ते हुए रणखेत रहे। 18वी शताब्दी में, दुर्गादास के नेतृत्व में अजीत सिंह को बचाने के लिए दिल्ली के युद्ध में चारण सामदान और मिश्रण रतनजी मुगलों के खिलाफ लड़कर अपनी मातृभूमि के लिए शहीद हुए। चारण जोगीदास, मिश्रण भारमल, सरौजी, आसल धानो और वीठु कानौजी वो चुने हुए योद्धा थे जो औरंगज़ेब के बागी पुत्र शहजादे अकबर को दक्षिण में सांभाजी के दरबार में अपने सरंक्षण में ले गए थे।

इतना ही नहीं, गुजरात में कई स्थानों पर, चारणों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। कानदास मेहड़ू, पंचमहल के प्रमुख चारण सरदार, बड़ौदा के अंग्रेज़ रेसिडेंट के एक नज़दीकि मित्र थे। 1857 के विद्रोह के दौरान, ब्रिटिश रेसिडेंट ने कानदास से अंग्रेजों के लिए चारणों का समर्थन हासिल करने के लिए मदद मांगी। मगर, कानदास ने  कोली सरदारों और पंचमहल से सेवानिवृत्त कंपनी के सिपाहियों को एकत्र कर क्रांतिकारियों की सहायता के लिए लूनावाड़ा पर आक्रमण किया। बदले में, कानदास के निवासीय शहर पाला को अंग्रेजों द्वारा जमींदस्त कर दिया गया।

और पढ़ें: ‘वीर सावरकर को पूजती थीं इंदिरा गांधी’, विक्रम संपत ने कांग्रेसियों का धागा खोल दिया!

भारतीय साहित्य में इनके योगदान

परंतु चारणों (Charan caste) का योगदान इतने तक सीमित नहीं था। इन्होंने भारतीय साहित्य में भी अतुलनीय योगदान दिया है। चारणी साहित्य का एक अन्य वर्गीकरण यह है-

  • ख्यात : राजस्थानी साहित्य के इतिहासपरक ग्रन्थ जिनको रचना तत्कालीन शासकों ने अपनी मान-मर्यादा एवं वंशावली के चित्रण हेतु करवाई।
  • वंशावली : इस श्रेणी की रचनाओं में राजवंशों की वंशावलियाँ विस्तृत विवरण सहित लिखी गई हैं
  • दवावैत – यह उर्दू-फारसी की शब्दावली से युक्त राजस्थानी कलात्मक लेखन शैली है, किसी की प्रशंसा दोहों के रूप में की जाती है।
  • वार्ता या वात : वात का अर्थ कथा या कहानी से है । राजस्थान मे ऐतिहासिक, पौराणिक, प्रेमपरक एवं काल्पनिक कथानकों पर अपार वात साहित्य है।
  • रासो (सैन्य महाकाव्य) — राजाओं की प्रशंसों में लिखे गए काव्य ग्रन्थ जिनमें उनके युद्ध अभियानों व वीरतापूर्ण कृत्यों के विवरण के साथ उनके राजवंश का विवरण भी मिलता है। बीसलदेव रासी, पृथ्वीराज रासो आदि मुख्य रासो ग्रन्थ हैं।
  • वेलि — राजस्थानी वेलि साहित्य में यहाँ के शासकों एवं सामन्तों की वीरता, इतिहास, विद्वता, उदरता, प्रेम-भावना, स्वामिभक्ति, वंशावली आदि घटनाओं का उल्लेख होता है। पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित ‘वेलि किसन रुकमणी री’ प्रसिद्ध वेलि ग्रन्थ है।
  • विगत : यह भी इतिहासपरक ग्रन्थ लेखन की शैली है। ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ इस शैली की प्रमुख रचना है।

इसमें भी कुछ ऐसी रचनाएँ हैं, जिनके बारे में आज भी अधिकांश भारतीय अपरिचित है, क्योंकि इनके महत्व को जानबूझकर आगे नहीं आने दिया गया। उदाहरण के लिए मुहणोत नैणसी द्वारा रचित “नैन्सी री ख्यात” ने राजपूताना के बारे में काफी विस्तृत विवरण दिया है, और ये भी बताया है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी राजपूत झुके नहीं, अपितु बड़े से बड़े आक्रान्ताओं से लोहा लिया। लोग माने या न माने, पर इसी रचना में ये भी बताया गया कि कैसे राणा हम्मीर के नेतृत्व में राजपूताना ने तुगलक वंश के घमंड को मिट्टी में मिलाया, और ऐसे में चारणों की जितनी प्रशंसा की जाए, वो कम है।

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Why Hindus Should Reclaim The Forgotten Truth of Onam | Sanatan Roots vs Secular Lies

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