बड़े भले आदमी थे परकाश भाई… अगर आपको लग रहा है कि किसकी बात चल रही है, तो ये हैं शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख राजनीतिज्ञों में से एक, एवं पूर्व मुख्यमंत्री परकाश सिंह बादल, जिनका हाल ही में देहांत हुआ है। परकाश सिंह बादल कैसे राजनीतिज्ञ, इसका उत्तर तो इतिहास ही बेहतर दे पाएगा।
आजकल आपने वो मीम तो देखा ही होगा, “मैं इस दुनिया का राजा हूँ, मैं तो पापा हूँ, पापा इस दुनिया का पापा”…. ये बात हमारे “सुशासन बाबू” नीतीश कुमार पर लागू होती है, जो कई मामलों में, विशेष अकर्मण्यता की दृष्टि से तो ममता बनर्जी, KCR और अरविन्द केजरीवाल को भी कॉम्पिटिशन दे दे।
परंतु किया का उन्होंने, जिसके पीछे आज परकाश सिंह बादल को स्मरण करने का समय आ गया। अरे भूल गए ओ दिन, जब नीतीस चचा सेक्युलरिज़्म के अघोषित दद्दा थे, और मोदीजी नवे नवे पीएम कैंडीडेट बने थे?
और पढ़ें- अकाली दल को बस भाजपा ही तार सकती है, कहीं इस दल का अस्तित्व ही न खो जाए
तो उसी समय परकाश दारजी दोनों को एक मंच पर एक साथ ले आए। दोनों का हाथ मिलवाया, और एनडीए का शक्ति प्रदर्शन भी करवाया। ये वो समय था, जब गुजरात दंगों पर प्रोपगैंडा अपने चरमोत्कर्ष पर था। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष SIT बिठाई थी, जिसके समक्ष तत्कालीन गुजराती मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बयान भी दिए थे, और लंबी पूछताछ के बाद ये सिद्ध हुआ कि नरेंद्र मोदी के प्रयास जैसे भी रहे हों, परंतु उन्होंने न तो गुजरात 2002 के दंगे भड़काए थे, और न ही उन्होंने इन दंगों की योजना बनाई थी।
ऐसे में नीतीश कुमार की सिट्टी पिट्टी गुल हो गई। भले ही यह सब हो रहा था मोदी जी के इशारों पर परन्तु करने वालेतो प्रकाश बदल जी ही थे.
स्वयं TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा इसका विश्लेषण करते हुए ट्वीट करते हैं,
I will always remember #ParkashSinghBadal for the masterful act of grabbing Nitish Kumar’s hand, putting it into PM Modi’s hand and making them do a great show of camaraderie in front of a huge crowd in Chandigarh.
Nitish the secular clown was clueless af. It took him years to… pic.twitter.com/IKICRh702H
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) April 25, 2023
“मैं सदैव स्मरण करूंगा परकाश सिंह बादल को उनके सूझबूझ के लिए, जब उन्होंने अचानक से नीतीश कुमार का हाथ पकड़, उन्हे नरेंद्र मोदी से मिलवाया, और चंडीगढ़ में एक विशिष्ट शक्ति प्रदर्शन भी किया। नीतीश की सेक्युलर छवि को जबरदस्त झटका लगा था, और उसे रिकवर करने में वर्षों लगे थे। दुख की बात है कि अब अकाली दल पहले जैसा नहीं रहा”।
और पढ़ें- “पंजाब में नशा कोई मुद्दा नहीं”, उड़ते सुखबीर की उड़ता पंजाब वाली टिप्पणी
बात गलत भी नहीं है, क्योंकि जब तक परकाश सिंह बादल थे, एनडीए में अकाली दल की ओर से कभी कोई समस्या नहीं उत्पन्न हुई। परंतु जैसे ही सुखबीर सिंह बादल ने मोर्चा संभाला, अकाली दल का बर्ताव तो ऐसे हो गया मानो भाजपा और उसके बीच वर्षों से कोई नाता नहीं था।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।