अगर “Bengal Problem” पे नहीं ध्यान दिया, तो भाजपा 65 सीट हार जाएंगी!

बात केन्द्रीय कैबिनेट में इनके प्रतिनिधित्व में वृद्धि की!

Bengal Problem: जैसे जैसे देश 2024 के आम चुनावों के लिए तैयार हो रहा है, भारत का राजनीतिक परिदृश्य भांति भांति के अनुमानों से भरा हुआ है। इस गतिशील परिदृश्य के केंद्र में एक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) है, जो उत्तरी और पश्चिमी भारत में अपनी पैठ मजबूत कर चुकी है, और जिसका पूर्वोत्तर में भी डंका बजता है। परंतु दक्षिणी राज्यों और बंगाल में पार्टी का प्रदर्शन उतना संतोषजनक नहीं रहा है, जो कर्नाटक के वर्तमान चुनावों में भी झलकता है। 2019 में बंगाल में अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिले थे, जहां सभी को चौंकाते हुए 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर विजय प्राप्त की थी।

Bengal Problem

ये अप्रत्याशित उछाल इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इस राज्य में पहले कम्युनिस्ट पार्टी, और तब ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का वर्चस्व व्याप्त था। अब आगामी चुनावों और विशेषकर विधानसभा में यदि पार्टी को अपनी क्षमता से ऊपर प्रदर्शन करना है, तो भाजपा को अपने केन्द्रीय कैबिनेट में बंगाली प्रतिनिधित्व पर भी ध्यान देना ही होगा।
वो कैसे? बंगाल में बंगाल में अपनी चुनावी उपलब्धियों के बावजूद, भाजपा की केंद्रीय कैबिनेट प्रमुखता से बंगाली प्रतिनिधित्व में कमी रही है। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इनका चुनावी प्रभाव केवल बंगाल तक सीमित नहीं। त्रिपुरा और असम में भी बंगालियों का चुनावी प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है।

उदाहरण के लिए बंगालियों का असम में कुल वोट शेयर में लगभग 30% का योगदान है। उनकी सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव उन्हें एक प्रभावी समुदाय बनाता है। हालांकि, एक मजबूत बंगाली की अनुपस्थिति संभावित रूप से इस क्षेत्र से इनका समर्थन कम करने का जोखिम बढ़ा सकता है।
केवल इतना ही नहीं, बंगाल की 42 सीटों के अलावा, बंगाली निर्वाचन क्षेत्रों में असम, धनबाद और बंगाल की पांच सीटें भी शामिल हैं। झारखंड में जमशेदपुर, त्रिपुरा में दो और मध्य प्रदेश में जबलपुर। इसके अलावा, बंगाली मतदाता अनुमानित 10 से 15 अन्य निर्वाचन क्षेत्रों को काफी प्रभावित करते हैं, जिनमें उत्तराखंड का नैनीताल भी सम्मिलित है, और पीएम मोदी का निर्वाचन क्षेत्र, वाराणसी।

ऐसा प्रभाव होने के बाद भी बांग्ला भाषी जनता में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के प्रति काफी रोष है। भले ही पीएम मोदी सुभाष चंद्र बोस जैसे नायकों के लिए मुखर रहे हो, परंतु ये मुखरता केन्द्रीय नेतृत्व में बंगाली प्रतिनिधित्व के रूप में नहीं झलकता। शायद इसीलिए 2021 में अवसर होते हुए भी भाजपा बंगाल में सरकार बनाने से वंचित रह गई। कहने को उक्त क्षेत्रों से आराम से 60 से 65 सीट प्राप्त हो सकती है, और यदि यहाँ भाजपा को हानि हुई, तो आगामी लोकसभा चुनावों में उनके लिए स्थिति बहुत दुखदायी हो सकती है।

1947 से ऐतिहासिक तौर पर ये प्रथा रही है कि कम से कम एक या दो प्रमुख बंगाली नेताओं को केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व दिया जाए। परंतु वर्तमान प्रशासन में एक प्रमुख बंगाली चेहरे की घोर कमी है, जिसके कारण शीघ्र ही बंगालियों के बीच मोहभंग की भावना पैदा हो सकती है, विशेषकर वह जो बंगाल, असम, त्रिपुरा और झारखंड से भाजपा की सीटों की संख्या में महत्वपूर्ण रूप से योगदान करते आए हैं।

पश्चिम बंगाल का बंगाली मतदाता, जिसने पिछले लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी के कोप (Bengal Problem) के बावजूद भाजपा का समर्थन किया था, अब काफी निराश लगता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हे लगता है कि सरकार में बंगालियों का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है। ऐसा नहीं कि भाजपा के बंगाली प्रतिनिधि नहीं, परंतु वर्तमान में कोई भी प्रमुख पदों पर नहीं है।
भाजपा के पास कई निपुण बंगाली सांसद है, जिन्हें केंद्रीय प्रतिनिधित्व के लिए योग्य माना जा सकता है। इनमें सबसे अग्रणी है श्री दिलीप घोष, जो भाजपा के दिग्गज नेता हैं एवं पश्चिम बंगाल में पार्टी की पैठ स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके चतुर नेतृत्व, जमीनी सक्रियता और राजनीतिक कौशल ने पारंपरिक रूप से भाजपा विरोधी क्षेत्र में भाजपा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

ऐसे ही दार्जिलिंग का प्रतिनिधित्व करने वाले राजू बिस्टा को क्षेत्रीय समस्याओं के प्रति सक्रिय दृष्टिकोण और उनकी गतिशील नेतृत्व शैली के लिए माना जाता है।
जलपाईगुड़ी के जयंत कुमार रॉय ने लोकसेवा के लिए काफी चर्चा बटोरी है, तो वहीं रानाघाट से जगन्नाथ सरकार, हुगली से लॉकेट चटर्जी और बांकुरा से सुभाष सरकार ने अपने अपने क्षेत्रों में अपने जनकल्याण योजनाओं एवं अपने नेतृत्व से काफी प्रशंसा बटोरी है।

इसके अलावा, तारकेश्वर से स्वपन दास गुप्ता और बर्धमान पुरबा से अनिर्बन गांगुली हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक कौशल और प्रभाव का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। त्रिपुरा से प्रतिमा भौमिक और रेबती त्रिपुरा ने भी अपना प्रभाव जमाया है। परंतु इस परिदृश्य में केन्द्रीय नेतृत्व में जो सबसे प्रभावी योगदान दे सकता है, वह है त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब, जिन्होंने माकपा का 25 साल का अविजित शासन तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इनके सम्मिलित किये जाए से न केवल बंगाली जनसंख्या को सम्पूर्ण आश्वासन मिला है, अपितु राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक परिवर्तन भी देखने को मिलेगा।

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बंगाली प्रतिनिधित्व के लिए भाजपा की प्रतिबद्धता भारत के विविध लोकतंत्र के लिए भी बहुत हितकारी होगी। भारत का सबसे बड़ा गुण है उसकी विविधता, और पार्टी कोई भी हो, उसे अपने नेतृत्व को ऐसा ढालना होगा कि वह जन जन में लोकप्रिय हो सके। ऐसे में अपने केन्द्रीय कैबिनेट में अधिक बंगाली जोड़कर भाजपा न केवल एक विविध और सशक्त पार्टी की छवि प्रस्तुत करेगी, अपितु भारत की नींव स्थापित करने वाले लोकतान्त्रिक आदर्शों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी अधिक दृढ़ बनाएगी।

ऐतिहासिक रूप से भाजपा क्षेत्रीय समीकरणों के अनुसार अपने अनोखे रणनीति के लिए बहुचर्चित है। पूर्वोत्तर को ही देख लीजिए। जहां पर एक सीट जीतना भी भाजपा के लिए असंभव माना जाता था, वहाँ क्षेत्रीय पार्टियों और स्थानीय राजनीति एवं संस्कृति के अद्भुत समावेश से भाजपा ने इसे एक मजबूत गढ़ के रूप में विकसित करने में सफलता पाई है। ऐसे ही बंगाल के लिए एक विशिष्ट राजनीति से भाजपा आने वाले चुनावों में असंभव (Bengal Problem) को भी संभव कर सकती है।

बंगाली समुदाय के सांस्कृतिक गौरव एवं राजनीतिक महत्व को यदि भाजपा उचित सम्मान देती है, तो भाजपा उस खाई को भर सकती है, जो इस समय भांति भांति के भ्रमों के कारण बढ़ गई है। ये तभी संभव होगा, जब केन्द्रीय कैबिनेट में बंगालियों का उचित प्रतिनिधित्व होगा, और साथ ही साथ उनकी समस्त नीतियाँ, और आगामी अभियानों के केंद्र में बंगाली संस्कृति, इतिहास एवं अन्य इच्छाओं के लिए पूर्ण सम्मान होगा।

इसके अतिरिक्त केन्द्रीय कैबिनेट में बंगाली नेताओं को सम्मिलित कराने से क्षेत्रीय स्तर पर भी व्यापक परिवर्तन होगा। स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं को संबल मिलेगा, पार्टी का क्षेत्रीय स्तर पर मनोबल बढ़ेगा एवं पार्टी के बांग्ला कैडर को अपनापन की अनुभूति होगी। जब 2019 में विपरीत परिस्थितियों में भी भाजपा ने 18 सीटें प्राप्त की, तो फिर ऐसी रणनीति से भाजपा केवल बंगाल में नहीं, अपितु त्रिपुरा और असम में भी अप्रत्याशित परिवर्तन का साक्षी बन सकता है। जितना उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में नहीं प्राप्त किया, उससे कहीं अधिक समृद्धि और सफलता इन्हे मिलेगी, और स्वाभाविक तौर पर विधान सभा में भी इन्हे जबरदस्त सफलता मिलेगी। भारत के विविध लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व का अपना महत्व है, और इसी बात को बंगाल के परिप्रेक्ष्य में भाजपा Bengal Problem जितनी शीघ्र समझ ले, उतना ही उनके लिए हितकारी होगा।

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