अतीक अहमद दरवेश था, सूफी था, फकीर था, ऐसा “इसलामो वामी गैंग” का कहना है

ऐसी दीवानगी, देखी कहीं नहीं!

अतीक अहमद

किसी व्यक्ति के गुणगान में आप क्या से क्या कर सकते हैं? कुछ शब्द लिख सकते हैं, उनकी स्मृति में मूर्ति से लेकर भवन बना सकते हैं, अन्यथा लोक कल्याण के कार्य कर सकते हैं। परंतु हमारी “टुकड़े टुकड़े गैंग” की प्राथमिकताएँ अलग है। “गधे को बाप बनाना” इन्होंने इतनी गंभीरता से ले लिया है कि अब अतीक अहमद एवं उनका परिवार इनके लिए दैवतुल्य हो गया है।

नमस्कार मित्रों, TFI पर आपका हार्दिक स्वागत है, और मैं अनिमेष पाण्डेय आपको इसलामो वामी गैंग द्वारा अतीक को लीजेंड बनाने की तत्परता से, और कैसे इसके लिए ये अपने इज्जत के साथ व्यवहारिकता का भी कीमा बनाने को तैयार है। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

“Lawmaker की हत्या हुई”

इसमें कोई दो राय नहीं है कि अतीक अहमद के लिए कुछ भी सामान्य नहीं था। परंतु उसकी मृत्यु के पश्चात एक ऐसा “फैन क्लब” उभर कर आया है, जिनके लिए अतीक साई बाबा से कम नहीं थे। विश्वास नहीं होता तो राणा अयूब के वर्तमान व्याख्यान पर दृष्टि डालिए।

एजेंडावाद ही राणा अयूब का ऑक्सीजन है, और इसी आधार पर उस यूनेस्को में आयोजित प्रेस फ़्रीडम पर एक सम्मेलन में इन्होंने भारत की ओर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया। इनका वही पुराना राग था : मोदी सरकार निरंकुश है, और मीडिया एवं अल्पसंख्यकों का दमन किया जा रहा है।

तो नया क्या है? नया ये है कि इसी सम्बोधन में राणा अयूब ने अनेकों बार अतीक का सम्बोधन एक भारतीय सांसद यानि lawmaker के रूप में किया, न कि एक अपराधी के रूप में, जो वास्तव में वह था। जो काम BBC, द वायर जैसे पोर्टल न कर पाए, उसे राणा अयूब अपने शैली में सफल बनाना चाहती थी।

https://twitter.com/SmokingLiberals/status/1653693613577240576

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होनहार असद निकला फिसड्डी

परंतु ये तो कुछ भी नहीं है। अतीक अहमद के गुणगान में ये वामपंथी इतना आगे बढ़ गए कि जब असद अहमद का एनकाउन्टर हुआ, तो बुरहान वानी के तर्ज पर इन्हे भी शिक्षा से जोड़ा जाने लगा, और ये बताया जाने लगा कि कैसे ये अमेरिका जाकर लॉ की पढ़ाई करने लगे।

परंतु इन दिनों असद अहमद की मार्कशीट सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसने कहीं न कहीं इस परिवार, और साथ साथ में इनके मीडिया में स्थित चमचों की भी बुरी तरह पोल खोल दी है।

वो कैसे?

माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद के एनकाउंटर के बाद पुलिस को छानबीन में उसकी 10वीं की मार्कशीट हाथ लगी है। इसे देख पता चल रहा है कि प्रयागराज के सेंट जोसेफ स्कूल से दसवीं करने वाला असद पढ़ाई में बिलकुल अच्छा नहीं था। उसके 700 में से कुल 125 नंबर (कुल 25%) आए थे और वह हर पेपर में फेल था। उसके एक पेपर में भी 33 से ऊपर नंबर नहीं थे।

मार्कशीट में देख सकते हैं कि असद को अंग्रेजी में 100 में से 28 नंबर मिले थे। हिंदी में उसके 100 में से 21.5 नंबर आए थे। इसी तरह साइंस-मैथ्स में 19-19 और सोशल साइंड में 19.8 नंबर आए थे। मार्कशीट दिखा रही है कि अच्छे नंबर लेकर पास होना असद की प्राथमिकता थी ही नहीं। उसका मकसद माफिया बनना था। वह अपने अब्बा से प्रेरित था। उसने स्कूल प्रशासन को और टीचरों को डराया-धमकाया हुआ था।

इस चमचागीरी पर शोध कीजिए

पर बात यहीं तक सीमित नहीं है। इतना ही नहीं खबरों के अनुसार, उसने एक स्कूल प्रतियोगिता में अपने ही शिक्षक को बुरी तरह प्रताड़ित किया था। इसी तरह एक खेल के दौरान उसने एक रेफ्री को झापड़ मार दिया था। उसकी मार्कशीट में साफ लिखा दिख रहा है कि स्कूल ने उसे हर सब्जेक्ट अच्छे से पढ़ने की सलाह दी थी।

बता दें कि असद अहमद की मार्कशीट ऐसे समय में सामने आई है जब कुछ दिन पहले ही मीडिया रिपोर्ट्स ने दावा किया था कि असद अहमद पढ़ने में बहुत होनहार था और लॉ पढ़ने विदेश जाना चाहता था। लेकिन अतीक के आपराधिक बैकग्राउंड के कारण उसे वीजा नहीं मिला। रिपोर्ट ने यह भी कहा था कि असद के 12 वीं 85 परसेंट आए थे।

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ऐसे में हमें ये समझ नहीं आता कि ये कौन लोग है, जिन्हे एक धूर्त, बर्बर अपराधी और उसके बिगड़ैल, अयोग्य संतानों में ऐसे मनुष्य दिखते हैं, जिनका कोई हिसाब नहीं। परंतु जब हिटलर का गुणगान हो सकता है,  तो फिर अहमद परिवार की क्या हस्ती? परंतु ऐसे महान विभूतियों पर एक विशेष शोध तो होना ही चाहिए।

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