लगता है “सोरोस प्रोजेक्ट” एक्टिवेट हो चुका है। एक ओर अराजकतावादी फर्जी प्रदर्शन के बहाने फिर से दिल्ली को घेरने की धमकी दे रहे हैं। दूसरी ओर एक बार से फिर से पूर्वोत्तर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विश्वास नहीं होता, तो मणिपुर में हो रही अराजकता पर दृष्टि डालिए।
इस लेख में जानिये मणिपुर में हो रही हिंसा की वास्तविकता ,और क्यों दो जनजातियों में संघर्ष ने इतना हिंसक रूप धारण कर लिया।
मणिपुर और मेईटेई जनजाति का नाता
हाल ही में मणिपुर में मेईटेई जनजाति को अनुसूचित जनजाति यानि ST स्टेटस देने दिए जाने पर राज्य में बवाल हो गया है, जिसके पीछे स्थिति काफी चिंताजनक है। जब तक पूर्व बॉक्सर एम सी मेरीकॉम ने बिगड़ती हुई अवस्था पर चिंता जताते हुए ट्वीट नहीं किया, मीडिया इधर फोकस करने को भी तैयार नहीं थी। फिलहाल के लिए स्थिति कुछ हद तक कंट्रोल में है, और मणिपुर सरकार ने कुछ क्षेत्रों से कर्फ्यू भी हटा लिया है।
परंतु समस्या किस बारे में है? इसके लिए मणिपुर के सम्पूर्ण इतिहास की पड़ताल करनी पड़ेगी। 1949 तक मणिपुर एक संप्रभु राज्य था, जिसका शाब्दिक अर्थ है मणि रत्नों की भूमि। सितंबर 1949 में राजा बोधचन्द्र सिंह की स्वीकृति के बाद इसका भारतवर्ष में विलय हुआ। 1972 में इसे सम्पूर्ण राज्य का स्टेटस मिला।
और पढ़ें: Indian wrestlers’ protest: आपने साक्षी मलिक के आँसू देखे, पीटी ऊषा की बेइज्जती नहीं!
तो फिर समस्या किसे है, और क्यों? असल में यहाँ के मूल निवासी है Meitei समुदाय, जिनके पास 65% से अधिक भूमि है, परंतु इनके पास 10 प्रतिशत भी भूमि अधिकार नहीं है। स्वयं एमसी मेरी कॉम भी इस जनजाति से नाता रखती है, भले ही वह ईसाई हो।
कुकी जनजाति और मिशनरी कनेक्शन
दूसरी ओर 35% मणिपुरी जनसंख्या कुकी नागा जनजाति से बनी हुई है, और पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियाँ कुछ ऐसी है कि इनके पास 90% से भी भूमि अधिकार है। परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है।
कुकी-नागा समुदाय ने अपनी आजीविका के मुख्य स्रोत के रूप में अफीम की खेती और व्यापार को अपनाया है। यह अवैध खपत की ओर ले जाता है जो मणिपुर से म्यांमार, लाओस और कंबोडिया तक एक सुनियोजित सिंडीकेट के रूप में अपनी जड़ें जमा चुका है। परंतु इस समय बिरेन सिंह के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने अफीम और अन्य समान पदार्थों की खेती के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई है। तो नुकसान किसका? कुकी ट्राइब का, और उनके संरक्षक मिशनरियों का।
एक और कारण से जो समस्या पैदा हो रही है, वह भारतीय संविधान का खंड 371 (C) है, जिसके अंतर्गत मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों को संरक्षित किया गया है। इन संरक्षित वन क्षेत्रों में निजी संपत्ति सख्त वर्जित है। लेकिन कालांतर में ईसाई कुकी-नागा लोगों ने इन संरक्षित क्षेत्रों में एक-एक करके अपनी झोपड़ियाँ स्थापित कीं और गाँवों का विकास किया।
उन्होंने धर्म परिवर्तन करना शुरू कर दिया, अफीम उत्पादन के लिए जमीन पर कब्जा कर लिया और अचानक करोड़पति बन गए। वर्तमान सरकार ने ऐसे कई निर्मित गांवों को उजाड़ दिया है। संक्षेप में, बहुसंख्यक मेइती को अल्पसंख्यक कुकी द्वारा दबा दिया गया है, जिनके कार्टेल और मिशनरियों दोनों से संबंध हैं।
Meitei को अनुसूचित जनजाति का स्टेटस और राज्य में हिंसा
हाल ही में, Meitei जनजाति संघ की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम. मुरलीधरन ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की 10 वर्षों से लंबित अनुशंसा के रूप में पेश करने का निर्देश दिया। बता दें कि ये अनुरोध Meitei समुदाय के लिए आधिकारिक रूप से यह जनजाति का स्टेटस प्रदान करती है। मई 2013 में, माननीय उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय के एक पत्र का संदर्भ दिया।
और पढ़ें: Bajrang dal: बजरंगबली जलाएंगे Karnataka में कांग्रेस की लंका!
परंतु जाने क्या कारण थे कि मौजूदा कांग्रेस सरकार ने इस पर आंखें मूंद लीं। इससे पहले याचिकाकर्ताओं ने अदालत को सूचित किया था कि 1949 में मणिपुर के भारतीय संघ में विलय से पहले समुदाय को एक आदिवासी का दर्जा प्राप्त था।
अब जब मेइती को उनका बकाया दे दिया गया था, इसने मिशनरी गठजोड़ को भड़का दिया, जो मणिपुर के लोगों के अधिकारों का अतिक्रमण करना चाहता था। इस संबंध में मैतेई हिंदू लोगों के घरों को जला दिया गया था। धर्मांतरण, विदेशी मुद्रा और नशीले पदार्थों के अपराधों में लिप्त चर्चों के इस संयोजन ने उत्तर-पूर्व भारत में पिछले 100 वर्षों के दौरान बहुत अराजकता फैलाई हैं। 1901 में मणिपुरी आबादी में 96% हिंदू थे जबकि 2021 में यह घटकर 49% रह गई है। ऐसे में इस संकट को इग्नोर करना किसी के लिए अच्छा नहीं।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।