न जी, न तो हमारा नामकरण हुआ है, और न ही हम नीतिसवा की पार्टी जॉइन करें है। विगत कुछ दिनों में मैंने आपसे कई विचार साझा किये, जिसमें आदिपुरुष पर मेरे कुछ विचार और फिल्म की वास्तविकता को ध्यान में रखते कुछ प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों ने कमेन्ट सेक्शन में हमें ई उपाधि दी है। पर देखिए, असल राजा तो तब भी जनता थी, और अब भी जनता है, जिन्होंने आदिपुरुष के नाम पर हमारे संस्कृति पर उछाले गए कालिख को न केवल धोया है, अपितु इसके रचनाकारों को दर्पण भी दिखाया है।
गजब की गिरावट
अभी सोमवार की बात है। ओम राऊत की आदिपुरुष के जनता देखने को मिली, वो भी 10 20 नहीं, पूरे 77 प्रतिशत की। इतनी तेजी से तो हिंडनबर्ग समर्थक संस्थाओं के शेयर के भाव नहीं गिरे, जितना ॐ राऊत की आदिपुरुष। पहले दिन हिन्दी संस्करण से 37 करोड़ कमाने वाली फिल्म ने सोमवार को 10 करोड़ का भी कलेक्शन नहीं किया। अब ऊ का है न, जनता से पंगा मोल ले लिया, तो फिर स्वयं नारायण भी आपकी सहायता नहीं कर सकते, और ओम राऊत के पीछे कोई YRF भी नहीं!
सच कहें तो आदिपुरुष की गिरावट ही अपने आप में शोध का विषय है। इतनी बुरी तो ठग्स ऑफ हिंदोस्तान की भी गिरावट नहीं हुई थी। ये अपने आप में इस बात का सूचक है कि यदि कॉन्टेन्ट निम्नतम हुआ, तो बड़े बड़े आँकड़े भी एक समय के बाद फुस्स पड़ जाएंगे, और अब तो फिल्म द्वारा अपनी लागत वसूलने के आसार भी कम ही लग रहे हैं।
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“जनता की लात”
कहते हैं कि भगवान की लाठी में कोई आवाज़ न होती। कहीं न कहीं जनता का प्रतिरोध भी उतना ही प्रभावी है, जो आदिपुरुष के वित्तीय परफ़ोर्मेंस से स्पष्ट देखने को मिल रहा है। फिल्म ने रामायण की श्रद्धेय कहानी को चित्रित करने का प्रयास किया, लेकिन दर्शकों के साथ तालमेल बिठाने में स्पष्ट रूप से विफल रही। जनता की अस्वीकृति उनके विवेकपूर्ण स्वाद और एक अच्छी तरह से तैयार की गई कथा को वितरित करने के महत्व को दर्शाती है जो उनकी उम्मीदों से मेल खाती है।
ये वही जनता है, जिसने द कश्मीर फाइल्स से लेकर द केरल स्टोरी जैसी फिल्मों को सर आँखों पे बिठाया, जो उसके कलेक्शन में भी परिलक्षित होता है। गंभीर विषयों पर बनी यह फिल्में, सीमित स्क्रीन रिलीज़ के बाद भी ब्लॉकबस्टर का टैग बटोरने में सफल रही। सबसे विशिष्ट बात तो यह रही कि सोमवार का कलेक्शन रिलीज़ के प्रथम दिन यानि शुक्रवार से कहीं अधिक रहा।
विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित “द कश्मीर फाइल्स” को ही देख लीजिए। कश्मीर के स्याह पक्ष को चित्रित करती इस फिल्म ने महज 400 स्क्रीन्स पर एक छोटी रिलीज के बावजूद, फिल्म ने कुल 3.5 करोड़ की शुरुआत की और स्क्रीन की संख्या बढ़ने के साथ फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
सोमवार तक इसने 15 करोड़ से ज्यादा की चौंका देने वाली कमाई कर ली थी। इसी तरह, “द केरल स्टोरी” ने धार्मिक रूपांतरण और महिलाओं को आईएसआईएस में भेजने के बारे में असहज सच्चाई को संबोधित किया। फिल्म ने 8 करोड़ कमाए और अपनी लोकप्रियता के कारण, अपने पहले दिन के आंकड़ों को पार करते हुए 10 करोड़ का आश्चर्यजनक कुल संग्रह देखा। ये उदाहरण इस तथ्य के लिए एक वसीयतनामा के रूप में काम करते हैं कि यदि कोई फिल्म सम्मोहक सामग्री प्रस्तुत करती है, तो यह दर्शकों के साथ प्रतिध्वनित होगी और सफलता हासिल करेगी। अभी तो हमने कान्तारा, RRR जैसी फिल्मों पर चर्चा भी नहीं की है।
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प्रामाणिकता का महत्व
सच बताएँ तो आदिपुरुष के पतन के लिए सम्मोहक सामग्री बनाने के मूल सिद्धांत का पालन करने में इसकी विफलता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। फिल्म इतनी खराब थी, कि किसी भी प्रकार का पीआर काम न आया। मनोज मुंतशिर द्वारा स्पष्टीकरण के साथ अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के प्रयासों के बावजूद, ये प्रयास विफल रहे। आदिपुरुष की कथा में सार की कमी और दर्शकों से जुड़ने की अक्षमता ने बॉक्स ऑफिस पर इसके पतन में योगदान दिया।
ऐसे में उस युग में जहां दर्शक अधिक समझदार और आलोचनात्मक हो गए हैं, प्रामाणिकता एक फिल्म की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दर्शक वास्तविक चित्रण, संबंधित पात्रों और कथाओं की तलाश करते हैं जो उनके अनुभवों और भावनाओं से मेल खाते हों। आदिपुरुष की विफलता का सर्वप्रमुख कारण जनता के साथ इस फिल्म के जुड़ाव में कमी और मूल कथा से दूर दूर तक नाता न होने में है, जिसका कारण है कि ये फिल्म शीघ्र ही भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े डिजास्टरों में से एक के रूप में जानी जाएगी।
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