आदिपुरुष : इससे घटिया फिल्म न देखी!

फिल्म ऐसी बनाओ, कि हर कोई कूटे!

अक्सर, किसी आपदा या भयानक घटना से किसी के बचने का संकेत देने के लिए वाक्यांश “मार्क्ड सेफ फर्म का उपयोग सोशल मीडिया” पर किया जाता है। हालांकि इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वाक्यांश कुछ ज्यादा ही चर्चित है, “मार्कड सेफ फर्म आदिपुरुष”! इसके लिए इस फिल्म का लगभग हर सदस्य उत्तरदायी, विशेषकर इसके निर्देशक ओम राऊत और लेखक मनोज मुंतशिर।

इस लेख में आइये जनता के कुछ प्रश्न और आपत्तियों को प्रकट करें, जो उन्हे आदिपुरुष देखकर प्राप्त हुई, और साथ ही ये भी पूछें: ये थी आपकी व्यवस्था?

रामायण का अक्षम्य अपमान

16 जून, 2023 को रिलीज़, “आदिपुरुष” को श्रद्धेय भारतीय महाकाव्य, रामायण के रूपांतरण के रूप में प्रचारित किया गया था। फिल्म निर्माताओं ने वाल्मीकि की रामायण को अपनी प्रेरणा का प्राथमिक स्रोत बताया। हालांकि, फिल्म देखने के बाद, दर्शकों को इस दावे के साथ कोई संबंध खोजने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती परंतु फिल्म देखकर दर्शक छोड़िए, स्वयं वाल्मीकि सोचेंगे, “कौन है ये निर्लज्ज?”

अगर किसी को लगता है कि फिल्म “पठान” इस साल एक सिनेमाई आपदा थी, तो “आदिपुरुष” उन्हें पुनर्विचार करने की संभावना है। यहाँ फिल्म में कमी नहीं, कमियों में एक फिल्म के थोड़े बहुत अंश है। वीएफएक्स हो डायलॉग, हर स्थान पर इस चलचित्र ने दर्शकों के धैर्य की परीक्षा ली है। उक्त छंद में जितनी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी आप सुन रहे हैं, उसका अंशमात्र भी इस चलचित्र में उपस्थित न था। परंतु जिस चलचित्र के रचनाकार को ‘तेरी बुआ का बगीचा’ और ‘जलेगी भी तेरे बाप की’ जैसे संवाद क्रांतिकारी लगे, तो उससे क्या ही आशा करें?

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मनोज मुंतशिर ने अपनी विवादास्पद पंक्तियों का रक्षण तो ऐसे किया, कि जिसे फिल्म देखकर भी क्रोध न आया हो, वो इन पंक्तियों को सुन चार पाँच अपशब्द निकाल दे। मुंतशिर ने दावा किया कि उन्होंने दर्शकों से जुड़ने के लिए इन ‘रिलेटेड डायलॉग्स’ को तैयार किया। यह दावा करने के बावजूद कि उन्होंने मूल रामायण में कोई बदलाव नहीं किया था, निर्माता बढ़ते विवाद के बीच पीछे हट गए और कहा कि “आदिपुरुष” सीधे अनुकूलन के बजाय रामायण से ‘प्रेरित’ थे। इस हिपोक्रेसी को क्या नाम दूँ?

निर्लज्जता का नया पर्याय : मनोज मुंतशिर!

परंतु ये तो मात्र प्रारंभ है। अपने असभ्य संवादों को सही ठहराने के लिए मुंतशिर यहाँ तक कह गए कि यह संवाद उन्होंने जानते हुए रचे थे। रिपब्लिक के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने समझाया कि यह देश में आम जनता की ‘आधुनिक, समकालीन’ बोलने की शैली को प्रतिबिंबित करने का उनका एक प्रयास थे, क्योंकि आज के समय में कोई पिताश्री, भ्राताश्री का उपयोग क्यों करेगा? कंट्रोल पांडे, कंट्रोल!

लल्लनटॉप पर एक उपस्थिति के दौरान, मुंतशिर ने कवि तुलसीदास द्वारा संस्कृत के बजाय अवधी भाषा में रामचरितमानस लिखने के विरोध के साथ विवाद की तुलना की। निर्देशक ओम राउत ने इन भावनाओं को प्रतिध्वनित करते हुए दोहराया कि “आदिपुरुष” केवल रामायण से प्रेरित था, आधिकारिक व्याख्या या अनुकूलन नहीं।

इसमें भी इन्होंने विक्टिम कार्ड खेलने का अवसर खोज निकाला। मियां फरमाते हैं कि कई पंक्तियों में श्री राम की महिमा और मां सीता की पवित्रता का वर्णन करने के उनके प्रयासों को मान्यता नहीं मिली। इसके बजाय, उन्होंने खुद को अपने प्रशंसकों और ट्विटर समर्थकों से तीखे आलोचना का शिकार पाया।

मायूस लहजे में मुंतशिर ने कहा, “जिन लोगों को मैं अपना मानता था, जिनके लिए मैं टेलीविजन पर उनकी सम्मानित माताओं के सम्मान में कविताएं पढ़ता था, उन्हीं लोगों ने मेरी ही मां के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया।” अरे कुछ तो लज्जा दिखाओ, कुछ तो लिहाज करो हमारी संस्कृति का!

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अब क्या होगा “आदिपुरुष” का!

व्यापक विवाद और प्रशंसकों के विरोध के बावजूद, “आदिपुरुष” ने बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया है। हालांकि, शुरुआती प्रचार के लुप्त होने और इसके खिलाफ जनता की भावना के साथ, क्या फिल्म ओपनिंग वीकेंड के बाद अपनी लागत वसूल कर पाएगी, इस पर संदेह बना हुआ है।

अंत में, “आदिपुरुष” एक महाकाव्य के सम्मानजनक सिनेमाई रूपांतरण की उम्मीद करने वाले प्रशंसकों के लिए एक बड़ी निराशा साबित हुई है। इसके आस-पास का विवाद फिल्म निर्माताओं को रचनात्मक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के बीच महत्वपूर्ण संतुलन के बारे में याद दिलाता है, एक सबक जो भारतीय सिनेमा के भविष्य को प्रभावित करेगा।

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