देखिए, आलोचना का सामना करने के लिए साहसी होना एक बात है, लेकिन उसी के बारे में अहंकारी होना दूसरी। इस समय भारतीय टेस्ट क्रिकेट उथल-पुथल की स्थिति में है। टीम के हाल के प्रदर्शन, ऑफ-फील्ड व्यवहार के साथ मिलकर, न केवल विवादों का बखेड़ा खड़ा कर रहा है, अपितु देश में क्रिकेट के महत्व के बारे में भी सवाल उठा रहा हैं।
इस लेख में, आइए विचार करें कि भारतीय टेस्ट क्रिकेट क्यों गुमनामी की राह पर है, और इस पतन के पीछे के महत्वपूर्ण कारण क्या हैं।
“भाड़ में जाए आलोचना”
कभी वैश्विक महाशक्ति और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक भारतीय टेस्ट क्रिकेट का भविष्य डावांडोल दिख रहा है। टूर्नामेंट हारना अब शर्म का विषय तो रहा ही नहीं, ये तो मानो एक प्रवृत्ति ही बन चुकी है। कभी टेकनीक और आक्रामकता पर ज़ोर देने वाले क्रिकेटर अब “सिक्सर कल्चर” की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। ये न केवल चिंताजनक है, अपितु खेल भावना के लिए हानिकारक नहीं। मैच या टूर्नामेंट से अधिक महत्वपूर्ण अब नोट छापना हो गया है।
स्वाभाविक रूप से खेल आलोचना के लिए मार्ग खुले रखता है। खिलाड़ी, सार्वजनिक हस्तियों के रूप में, समालोचना और विश्लेषण के अधीन हैं। परंतु जो भारतीय क्रिकेटर इस समय कर रहे हैं, वह किसी भी स्थिति में उचित नहीं है। विराट कोहली जैसे हाई-प्रोफाइल खिलाड़ियों ने विभिन्न प्लेटफार्मों पर आलोचकों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया प्रदर्शित किया है, जबकि रोहित शर्मा की हाल ही में “बेस्ट ऑफ़ 3” प्रदर्शनी मैच की मांग ने क्रोधाग्नि को भड़काया है।
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर पैट कमिंस के मुंहतोड़ जवाब से भारतीय क्रिकेटरों का रवैया तीखी वैश्विक जांच के दायरे में आया। कमिंस ने सूक्ष्मता से भारतीय क्रिकेट टीम के लोकाचार पर प्रहार किया, और उन्हें याद दिलाया कि कई खेलों में, “अपनी योग्यता साबित करने” के लिए केवल एक ओलंपिक फाइनल पर्याप्त होता है। उनकी टिप्पणी भारतीय क्रिकेट के मूल्यों में कथित बदलाव के बारे में वैश्विक क्रिकेट समुदाय की चिंता का प्रतीक है।
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बहुत हो गया!
यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय क्रिकेटरों द्वारा प्रदर्शित यह ‘holier than thou’ रवैया शून्य में मौजूद नहीं है। यह एक बड़े मुद्दे का हिस्सा है जिसने तेजी से प्रशंसकों को अलग-थलग कर दिया है और यहां तक कि पूर्व खिलाड़ियों की कड़ी आलोचना भी हुई है। यह अहंकार न केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को धूमिल करता है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट समुदाय में देश की छवि को भी प्रभावित करता है।
भारतीय टीम के हाल के निराशाजनक प्रदर्शन ने मुख्य कोच राहुल द्रविड़ की भूमिका को भी संदेह के घेरे में रखा है, जिसमें उनके कोचिंग दृष्टिकोण पर कई उंगलियां उठाई गई हैं। विशेष रूप से, पूर्व टीम के साथी सौरव गांगुली और हरभजन सिंह ने चिंता जताई है, और गांगुली ने पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बल्लेबाजों के लगातार संघर्ष और उनके गिरते औसत पर प्रकाश डाला है।
“सुनने की क्षमता रखिए!”
भारतीय क्रिकेट पर इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के प्रभाव की भी कड़ी आलोचना हुई है। कभी घरेलू क्रिकेट को धार देने के उद्देश्य से लॉन्च किये गए आईपीएल ने भारतीय क्रिकेटरों का ध्यान अंतरराष्ट्रीय गौरव से वित्तीय लाभ पर केंद्रित कर दिया है। ऐसे में गांगुली का आईपीएल का हालिया बचाव न केवल हास्यास्पद है, अपितु चिंताजनक भी।
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इस मुद्दे को और जटिल करते हुए प्रतीत होता है BCCI की त्रुटिपूर्ण चयन नीतियां । महत्वपूर्ण मौकों पर खराब प्रदर्शन करने वाले विराट कोहली जैसे खिलाड़ियों को लगातार शामिल करना और रविचंद्रन अश्विन जैसे अनुभवी खिलाड़ियों को दरकिनार करना बहुत ही अशोभनीय है। केएल राहुल और केएस भरत जैसे खिलाड़ियों को वरीयता देने के आरोपों के साथ टीम प्रबंधन पर पक्षपात का आरोप लगाया गया है, जबकि संभावित रूप से अधिक योग्य खिलाड़ी बेंच गरमाते हुए दिखते हैं।
संक्षेप में सिक्सर संस्कृति के उदय और खिलाड़ियों के बीच एक स्पष्ट संभ्रांतवादी रवैये ने इस गिरावट में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अपने अतीत के गौरव और अपने उत्साही प्रशंसकों के सम्मान को पुनः प्राप्त करने के लिए, भारतीय क्रिकेट को इन मुद्दों को सीधे संबोधित करने की आवश्यकता है। यह सही समय है जब हम खेल भावना को पुनर्जीवित करें, व्यावसायिक लाभ के बजाय प्रदर्शन पर जोर दें और यह सुनिश्चित करें कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी और योग्यता आधारित हो। भारतीय टेस्ट क्रिकेट का भविष्य इस पर निर्भर करता है।
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