मोदी और ऑपोजीशन: एक जटिल प्रेम कथा

विपक्ष का पीएम मोदी के प्रति विरोध, एक अनोखी टॉक्सिक प्रेम कथा में बदल रही है।

बहुत समय पूर्व, एक अद्भुत प्रेम कथा की रचना हुई। न न, ये हीर राँझा, रोमियो जूलियट जैसा प्रेम नहीं, अपितु इसमें तत्परता है, अधीरता है और जुनून भी। इसके प्रमुख पात्रों में एक ओर है हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तो दूसरी ओर है एक ऐसा विपक्ष, जो न खुलके अपनी कुंठा दिखा पाता है, और न ही खुलकर अपना प्रेम प्रकट करेंगे।

इस लेख में पढिये जानिये विपक्ष के पागलपन के बरे में, और क्यों पीएम मोदी के प्रति विरोध एक अनोखी, टॉक्सिक प्रेम कथा में बदल रही है।

ये घातक सनक

इस सनक की प्रकृति ऐसी है कि यह परिपक्व निर्णय की क्षमता को धूमिल कर देता है और अक्सर आत्म-विनाश की ओर ले जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष ने जुनून की अवधारणा को कुछ ज्यादा ही शाब्दिक रूप से ले लिया है, जैसे कोई बच्चा जिसने अभी-अभी एक नया खिलौना खोजा हो और उसे जाने न दे। मोदी जी की किसी भी यात्रा, विशेषकर इस अमेरिकी यात्रा पर विपक्ष उनके आचरण या उनकी यात्रा के संभावित लाभों पर कम और उनकी अंग्रेजी का विश्लेषण करने के ‘आकर्षक’ कार्य पर अधिक ध्यान केंद्रित करता था।

अरे भाई, अंग्रेज़ी है, कोई ओलंपिक पदक नहीं कि नहीं मिला तो किसी योग्य नहीं! यह एक ऐसे व्यक्ति की अंग्रेजी है जिसे हिंदी और गुजराती में जनता का सम्मान प्राप्त है, एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपने जीवनकाल में औसत व्यक्ति की तुलना में कई गुना अधिक हासिल किया है। फिर भी, ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष के पास उनकी अंग्रेजी में खामियाँ निकालने का समय और ऊर्जा है। क्या वे ‘इंग्लिश विंग्लिश आइडल’ के भविष्य के सीज़न के लिए अपना प्रतिभागी खोज रहे थे? लक्षणों से तो ऐसा ही प्रतीत होता है!

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कांग्रेसी जैसा कोई नहीं!

सत्य बताएँ तो ऐसे कृत्य किसी व्यक्ति की अंग्रेजी को नीचा दिखाने का कृत्य न केवल उस व्यक्ति पर सीधा हमला है, बल्कि उन लाखों भारतीयों के प्रति अपमानजनक इशारा है, जो कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के माध्यम से सरकारी सहायता प्राप्त या समुदाय-संचालित संस्थानों में अध्ययन करने के बावजूद सफल हुए हैं। लेकिन फिर, कांग्रेस इसी में उत्कृष्ट दिखती है: दूसरों को पछाड़ने का प्रयास करते हुए स्वयं-गोल करना। यहां तक कि थॉमस उर्फ टॉम कैट के पास भी इन मिनियन से ज्यादा समझ है, उसका आईक्यू कमरे के तापमान से भी कम है!

विपक्ष की प्रतिक्रियाएँ “यू आंटी!” से लेकर “वह बूढ़ा आदमी” से लेकर “टेलीप्रॉम्प्टर” और “गोबर संघी” जैसी विचित्र टिप्पणियों तक जाती थी। आम भारतीयों के प्रति संवेदना और अपने नेता के प्रति इनकी घृणा स्पष्ट थी। हालाँकि, सबसे बुरी बात यह गलत धारणा थी कि यह सब दो देशों में 50 से अधिक कार्यक्रमों वाली छह दिवसीय यात्रा के दौरान मोदी द्वारा दो अंग्रेजी शब्दों का गलत उच्चारण करने के प्रतिशोध में था। पर वर्तमान विपक्ष यूं ही थोड़े ही उपहास का पात्र बना है!

कुछ अति उत्साही लोगों ने अपने आराध्य के बचाव में यहाँ तक कह डाला कि “राहुल गांधी ने सही फैसला किया जब उन्होंने हेमंत बिस्वा सरमा की तुलना में अपने कुत्ते पर अधिक ध्यान दिया!” वह टिप्पणी ही उनके राजनीतिक कौशल के बारे में बहुत कुछ कहती है।

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“अंग्रेजी ही सफलता की कुंजी नहीं!”

सच कहें तो मोदी, योगी आदित्यनाथ, हिमंत बिस्वा सरमा और अन्नामलाई जैसे नेताओं की सफलता, जो धाराप्रवाह अंग्रेजी नहीं बोल सकते, आशा की किरण के रूप में काम करती है। वे एक आत्मविश्वासी भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, एक ऐसा भारत जो औपनिवेशिक युग के अंग्रेजी अभिजात्यवाद की जंजीरों से अछूता है। इन नेताओं ने हमारी मातृभाषाओं के प्रति हमारे गौरव को फिर से जगाया है, एक ऐसी वास्तविकता जो कांग्रेस को परेशान करती है। ऐसा लगता है कि भगत सिंह की ‘गोरे साहिबों’ की जगह ‘भूरे साहिब’ आने की भविष्यवाणी गलत नहीं थी।

मित्रों, यह कॉम्प्लेक्स प्रेम कहानी त्रुटियों की एक कॉमेडी है, गलत प्राथमिकताओं का प्रदर्शन है, और ‘अगर मैं तुम्हें नहीं पा सकता, तो कोई भी नहीं कर सकता’ का एक क्लासिक मामला है। जैसे ही हम हाथ में पॉपकॉर्न लिए इस गाथा को सामने आते हुए देखते हैं, हम केवल यह आशा कर सकते हैं कि विपक्ष को यह एहसास हो कि मोदी के प्रति उनका एकतरफा प्यार रचनात्मक आलोचना और वास्तविक विकास पर बेहतर खर्च किया जा सकता है। तब तक, पॉपकॉर्न चबाइए और इनकी नौटंकियों का आनंद लीजिए।

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