भारत में लगभग हर घटना की कवरेज स्वाभाविक है। जब हर विषय में केवल पास होने योग्य नंबर लाने वाले बालक भी चर्चा का विषय बने, तो बड़े बड़े परीक्षाओं में रैंक लाने वालों की चर्चा होना स्वाभाविक है। परंतु विभु उपाध्याय के साथ ऐसा नहीं है। इनका दोष : गंगा आरती करते हुए NEET परीक्षा क्रैक करना!
इस लेख में आइये विभु उपाध्याय के प्रति मीडिया के विरोधाभास पर प्रकाश डालें।
कैसे गंगा आरती ने डाला विभु पर प्रभाव
उत्तर प्रदेश के बदायूं से नाता रखने वाले विभु उपाध्याय ने NEET उनकी उपलब्धि सराहनीय से कम नहीं है; उसने अपने पहले ही प्रयास में नीट की परीक्षा पास कर ली, कुल 720 में से 622 का प्रभावशाली स्कोर हासिल किया। इस उल्लेखनीय उपलब्धि के बावजूद, मुख्यधारा के मीडिया ने आश्चर्यजनक रूप से उसकी उपलब्धि को कवर करने से परहेज किया। कवरेज की यह विशिष्ट अनुपस्थिति उन मापदंडों पर विचार करती है जो मीडिया संस्थाएं यह तय करने के लिए उपयोग करती हैं कि कौन सी अकादमिक उपलब्धि स्पॉटलाइट के लायक है।
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कारण यह है कि विभु सनातन संस्कृति के परम अनुयायी हैं और उन्हें अपनी धार्मिक प्रथाओं के बारे में कोई पछतावा नहीं है। गंगा नदी की पवित्रता में दृढ़ विश्वास रखने वाले [जिन्हें गंगा मैया कहा जाता है] विभु 2019 से कछला घाट पर गंगा आरती कर रहे हैं। वह अपनी शैक्षणिक सफलता का श्रेय न केवल अपनी कड़ी मेहनत और परिश्रम को देते हैं, बल्कि ईश्वरीय आशीर्वाद की प्रतीक गंगा मैया को भी देते हैं। इसके अतिरिक्त माता-पिता, शिक्षकों और अपने जिले के पूर्व जिलाधिकारी डीके सिंह के निरंतर समर्थन को भी स्वीकार करते हैं, जिन्होंने 2019 में गंगा आरती कार्यक्रम की शुरुआत की थी।
विभु का दृढ़ विश्वास है कि इस तरह की पहल में युवाओं और भारत के स्वदेशी धर्म और संस्कृति सनातन धर्म के बीच की खाई को पाटने की अपार क्षमता है। युवा अचीवर ने स्पष्ट रूप से साझा किया है कि कैसे गंगा आरती करने से उनके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इस साधना में प्रत्येक दिन एक घंटा लगाकर, विभु ने अपना ध्यान और शांति बनाए रखी, जो उनकी शैक्षणिक सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
मीडिया की अजब गजब प्राथमिकताएँ
अब सोचिए, अगर विभु ने अपनी सफलता के पीछे नमाज़ पढ़ने को श्रेय दिया होता, तो? यही मीडिया वाले लार टपकाए इनके द्वार पर प्रकट हो गए होते, और इन्हे धर्मनिरपेक्षता के नए प्रतिमूर्ति के रूप में स्थापित कर दिए होते।
चयनात्मक मान्यता की इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में विभु उपाध्याय अकेले नहीं हैं। प्रभंजन, एक अन्य मेधावी छात्र जिसने भारत में नीट परीक्षा में टॉप किया, को जाने किन कारणों से तमिलनाडु सरकार ने अनदेखा किया। सरकार को अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती के अन्नामलाई ने बधाई दी। परंतु जो अपनी कुंठा में नीरज चोपड़ा तक को जद्द बद्द सुनाने लगे, उनसे और क्या ही आशा करें?
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यही सही समय है जब हम अकादमिक और अन्य उपलब्धियों को पहचानने और उनकी सराहना करने में सामूहिक रूप से निष्पक्षता के लिए प्रयास करे। हमें किसी भी व्यक्तिगत विचारधाराओं या पूर्वाग्रहों से अलग होकर उपलब्धियों को अपने अधिकार में संजोने और मनाने की जरूरत है। इस दिशा में एक कदम यह सुनिश्चित करेगा कि विभु उपाध्याय और प्रभंजन जैसे योग्य व्यक्तियों को विधिवत मान्यता मिले, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक निष्पक्ष और सम्मानजनक मिसाल कायम करे।
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