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Pan INDIA फिल्में इस वर्ष रही फुस्स, और कारण भी स्पष्ट है!

वर्ष का दूसरा हाफ किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
1 June 2023
in चलचित्र
Pan INDIA फिल्में इस वर्ष रही फुस्स, और कारण भी स्पष्ट है!
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जैसे ही हम 2023 के मध्य बिंदु पर पहुँचते हैं, भारतीय सिनेमा पर संकट के बादल मंडराते हुए दिखाई देते हैं। बॉलीवुड से लेकर क्षेत्रीय सिनेमा तक, देश भर के फिल्म उद्योगों को कई चुनौतियों और असफलताओं का सामना करना पड़ा है, और Pan INDIA फिल्में भी इसके प्रकोप से बच नहीं पाई है।

कैसे लगभग आधा 2023 बीत चुका है, लेकिन न बॉलीवुड भारतीय सिनेमा की साख बचा पा रही है, और न ही पैन इंडिया उद्योग ने इस बार कोई बड़ा धमाका किया है!

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बॉलीवुड के लिए अच्छे संकेत नहीं!

इसमें कोई दो राय नहीं कि परंपरागत रूप से, भारतीय सिनेमा रंग, जीवंतता और रॉ इमोशन्स का अद्भुत संगत रहा है। एक संपन्न उद्योग, इसने रिकॉर्ड-ब्रेकिंग बॉक्स-ऑफिस हिट का दावा किया है, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा अर्जित की है। हालांकि, इस वर्ष, भारतीय फिल्म उद्योग अपने भव्य अतीत से बहुत दूर है। सिनेमाई परिदृश्य एक अंधेरे कमरे की तरह नीरस रहा है, और नुकसान की रील घूमती जा रही है।

“पठान” की बहुप्रतीक्षित रिलीज के बाद भी, उद्योग, विशेष रूप से बॉलीवुड में लाभप्रदता की कमी स्पष्ट रूप से दिख रही है। “तू झूठा मैं मक्कार” और “द केरल स्टोरी” जैसे अपवादों को छोड़कर, उद्योग ने इस साल बड़े पैमाने पर एक खेदजनक आंकड़ा पेश किया है, जो दर्शकों को आकर्षित करने के लिए संघर्ष कर रहा है और निराशाजनक बॉक्स-ऑफिस आंकड़े बदल रहा है।

और पढ़ें: गर्दा उड़ा दिया है रणदीप हुड्डा ने “स्वातंत्र्यवीर सावरकर” के टीज़र में!

Pan INDIA फिल्में भी इस बार हुई फुस्स

यहां तक कि पैन इंडिया सेक्टर, जो दर्शकों तक व्यापक रूप से पहुंचने के लिए कई भाषाओं में डब की गई फिल्मों पर ध्यान केंद्रित करता है, असफलता के प्रकोप से नहीं बच पाया है। डब हिंदी में रिलीज़ के साथ, इस वर्ष अब तक लगभग चौदह Pan INDIA फिल्में पर्दे पर आ चुकी हैं। चिंताजनक रूप से, उनमें से लगभग कोई भी अकेले हिंदी में बॉक्स ऑफिस पर 10 करोड़ का मामूली आंकड़ा पार करने में कामयाब नहीं हुई है।

इस दुर्भाग्यपूर्ण परिदृश्य में कई कारक योगदान दे रहे हैं, जिनमें नवीनता और एक चिंगारी यानि एक्स्ट्रा स्पार्क का अभाव सबसे महत्वपूर्ण है। कुछ साल पहले, “केजीएफ” और “पुष्पा” जैसी फिल्मों ने 90 के दशक की अविस्मरणीय मिथुन चक्रवर्ती फिल्मों की याद दिलाते हुए मसाला मनोरंजन पर अपने नए रूप के साथ दक्षिणी क्षेत्र को मज़बूत करने में कामयाबी हासिल की।

परंतु आवश्यकता से अधिक खींचने पर तो रबड़ बैंड भी टूट जावे, ये तो फिर भी फिल्में है। “दसरा,” “माइकल,” और “कब्ज़ा” जैसी फिल्मों के साथ इन टेम्प्लेट का अत्यधिक उपयोग महंगा साबित हुआ है, और बॉक्स ऑफिस पर इन फिल्मों का हाल जितना कम पूछें, उतना ही अच्छा। जितना स्वयं प्रशांत नील नहीं सोचे होंगे, उससे अधिक नौटंकी “कब्ज़ा” के निर्देशक ने ठूँसी है, और इसी कारणवश वह बॉक्स ऑफिस पर डिजास्टर सिद्ध हुई।

“Old wine in a new bottle” सदैव नहीं काम आएगी

यह स्पष्ट है कि उक्त फिल्म निर्माता केवल “बाहुबली” और “आरआरआर” जैसे महाकाव्य हिट की भव्यता और कहानी की नकल नहीं कर सकते। इसी भांति हर किसी के पास हनु राघवपुडी और शशि किरण टिक्का जैसे निर्देशकों की भांति रचनात्मक एवं मनमोहक भावना नहीं होती, जिन्होंने दर्शकों को “मेजर” और “सीता रामम” जैसी अविस्मरणीय फिल्में दीं।

और पढ़ें: “Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai”: आपको अंदर तक झकझोरती एक कोर्टरूम ड्रामा

परंतु ये कोई बहाना नहीं हो सकता कि हालांकि, पैन इंडिया फिल्मों के नाम पर कुछ भी जनता को ठूंस दो। छप्पन भोग के नाम पर कोई कूड़ा खाना बिल्कुल नहीं चाहेगा। ऐसे ही “शाकुंतलम” जैसी फिल्मों के बारे में जितना कम कहा जाए उतना अच्छा है। इसके अलावा, यह धारणा कि बारीक फिल्में जटिल आख्यानों का पर्याय हैं, एक और समस्या है, जिसका रिफलेक्शन “पोन्नियिन सेलवन” जैसी फ़िल्मों में दिखता है। इसने अपने ट्रीटमेंट से कई दर्शकों को अपना सिर खुजलाने पर विवश कर दिया है, कि आखिर उन्होंने देखा तो देखा क्या।

2023 की अगली छमाही बॉलीवुड और फिल्म उद्योग के पैन इंडिया सेगमेंट दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण लिटमस टेस्ट होने वाली है। पैन इंडिया सेगमेंट में हाल की सफलताओं को यह साबित करने की जरूरत है कि यह सफलता सांकेतिक नहीं, अपितु एक स्थाई इन्स्टीट्यूशन बन सकता है। वहीं बॉलीवुड को भी अपना खोया हुआ गौरव वापस पाने के लिए जोर लगाना होगा।

अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अन्यथा, दोनों उद्योगों के लिए आगे की राह बड़ी कठिन लगती है, जो इन दोनों उद्योगों के भविष्य पर भी प्रश्न लगाने हेतु पर्याप्त है । भारतीय सिनेमा की वर्तमान स्थिति एक स्पष्ट अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि फिल्म उद्योगों को निरंतर नवाचार करना चाहिए और गुणवत्ता के लिए प्रयास करना चाहिए, न कि केवल सिद्ध सूत्रों पर निर्भर रहना चाहिए या स्टार शक्ति।

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जमीयत ने अदालत का रुख किया, दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक लगाई: क्या 'उदयपुर फाइलें' इतनी वास्तविक हैं कि उन्हें संभालना मुश्किल है?
चलचित्र

‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जमीयत; ‘सिर तन से जुदा’ हो पर खामोश रहे हिंदू?

8 July 2025

राजस्थान के उदयपुर जिले के बहुचर्चित कन्हैयालाल मर्डर केस पर बनी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ (Udaipur Files) को लेकर शुरू हुआ विवाद अब थमने का नाम...

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