कभी ये लोग भारत की आँखों के तारे थे. इनकी सफलता के लिए कई भारतवासी प्रार्थना करते थे। परन्तु अब इन्होने अपना मान सम्मान सब खो दिया है, और इनकी पहचान अब उन विवादों से हैं, जो इनके कभी समृद्ध करियर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
इस लेख में जानिये आन्दोलनजीवी पहलवानों के वास्तविक प्रदर्शन के बारे में, और क्यों इतना बवाल करने के बाद भी इनके हाथ कुछ न लगा!
उतर गया नैतिकता का चोगा!
जब बबीता फोगाट ने आन्दोलनजीवी पहलवानों की पोल खोलते हुए उन्हें “कांग्रेस की कठपुतली” बताया, तो कई लोगों ने इनका उपहास उड़ाते हुए कांग्रेस का चापलूस बताया था। अब वास्तविकता ऐसे नादाँ परिंदों पर ठहाके मारके हंस रही होगी।
उदाहरण के लिए विनेश फोगाट से प्रारम्भ करते हैं। काम के न काज के, दुश्मन अनाज के इन्ही जैसों चरितार्थ होता है। केवल अगर पहलवान आंदोलन के हिसाब से भी इनका आंकलन किया जायें, तो इन्होने कोई बहुत बड़े झंडे नहीं गाड़े हैं। पर नखरे ऐसे कि ये न हों, तो भारत के कुश्ती की विरासत नष्ट हो जाए। परन्तु इन सबका परिणाम क्या निकला? निल बट्टे सन्नाटा!
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विनेश फोगाट का आगामी विश्व रैंकिंग सीरीज़ अकारण हटना यही बताता है कि इनके इरादे पहले नेक नहीं थे। अंतिम क्षण में, एशियाई खेलों के लिए ट्रायल से बचते हुए, वह आसानी से बाहर हो गई। ऐसा प्रतीत होता है कि वह अधिक सुर्खियाँ बटोरने और असाधारण उपलब्धि का भ्रम पैदा करने के लिए कार्यक्रम में बदलाव करना चाहती थी। इतना ही नहीं, NADA यानी राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी के कई नोटिस का इन्होने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है. किस बात का भय है विनेश को?
बिना काम के करते मौज?
इसी बीच ‘पहलवान अधिकार आंदोलन’ की एक अन्य प्रणेता साक्षी मलिक, जिन्होंने अपने पदकों को गंगा नदी में फेंकने की धमकी देने में एक पल भी संकोच नहीं किया था, र संयुक्त राज्य अमेरिका में स्कूली बच्चों के साथ समुद्र तट पर कुश्ती का प्रशिक्षण ले रही हैं। इस असामान्य प्रयास का खर्च व्यावसायिक इकाई जेएसडब्ल्यू द्वारा वहन किया जा रहा है। यह काफी चकित करने वाली बात है कि ऐसे पहलवानों को विदेश में प्रशिक्षण के लिए धन दिया जा रहा है, जिनका करियर अब ढलान पर है।
वहीँ प्रतिष्ठित फोगाट कुश्ती परिवार की सदस्य संगीता फोगाट ने हाल ही में एक टूर्नामेंट में गैर-ओलंपिक भार वर्ग में भाग लिया। हालाँकि, उनका प्रदर्शन फीका रहा, क्योंकि उन्होंने दो मुकाबले जीते और दो हारे, जिसमें 0-10 की विनाशकारी हार भी शामिल थी। अपने अप्रभावी रिकॉर्ड के बावजूद, वह कांस्य पदक हासिल करने में सफल रहीं। आइए प्रतियोगिता में पांच अनारक्षितों के बीच तीसरे स्थान पर रहने के लिए उसकी सराहना करें। करिये करिये, क्योंकि मैडल लाने पहलवानों कहा है।
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बबीता ने अपने ट्वीट में प्रदर्शनकारी पहलवानों द्वारा अपनाई गई अराजकता की आलोचना करते हुए जनता के प्रति प्रदर्शनकारियों की जवाबदेही पर जोर दिया। बिना किसी रोक-टोक के, उन्होंने प्रदर्शनकारियों से आग्रह किया कि वे अपने इरादे स्पष्ट करें और अदालत में जनता की राय का सामना करें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अंततः जनता ही है जिसके प्रति वे जवाबदेह हैं।
देखो बंधु, हमारी क्रिकेट टीम के जैसे हालात हैं, उसपे अगर ये लोग ऐसे ही बहानेबाज़ी कर प्रशासन को और जनता को धमकाए, उन्हें नैतिकता पर ज्ञान दे, तो क्या आप स्वीकार करेंगे? इतनी सी बात इन पहलवानों को नहीं समझ में आ रही है। यदि अब भी नहीं सुधरे, तो इनका भी हाल सुशील कुमार और मोहम्मद अज़हरुद्दीन जैसा हो जायेगा। न घर के रहेंगे, न ही घाट के!
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