भारत, विविधता से भरपूर एक भूमि है, जो अपने जीवन्त इतिहास से लेकर आशावादी भविष्य को संवारते हुए विश्व पटल पर आज एक विशाल युग पुरुष की भांति हमारे समक्ष खड़ा है। आज हमारे देश के 76 स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, हम उन महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानेंगे जिनका सामना करके हमारा देश आज यहाँ तक पहुंचा है.
सरस्वती-सिंधु सभ्यता से लेकर महान चोल राजवंश के काल तक, भारत ने एक सुरुचिपूर्ण युग की रचना की और एक सशक्त विचार के रूप में उभरा, जिसने हमारे देश को विश्व में कई सभ्यताओं में अग्रणी बनाया. अनंत इस्लामिक आक्रमणों के बाद भी, हमने कभी पराजय स्वीकार नहीं की. निस्संदेह इस्लामिक संस्कृति का हमारे ऊपर व्यापक प्रभाव पड़ा, परन्तु प्रतिरोध जारी रहा.
फिर आया ईसाई युग साम्राज्यवाद का, जिसकी नींव गोवा में पुर्तगालियों ने डाली थी, और आगे बढ़ाया अंग्रेज़ों ने. इस साम्राज्यवाद ने भारत के जनमानस पर गहरा प्रभाव डाला, और फलस्वरूप ब्रिटिश एवं पुर्तगाली शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता की विगुल बजाई गई, जिसके लिए एक लम्बा संघर्ष चला. अंततः हमें १९४७ में स्वतंत्रता भी मिली, परन्तु हम पूर्णतया स्वतंत्र नहीं हुए थे. ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्थान अब फैबियन समाजवाद के कांग्रेसी ध्वजवाहकों ने ले लिया था और इसी कारणवश हम १९९० के दशक तक लगभग दिवालिया होने के मुहाने पर आ चुके थे.
परन्तु २०१४ में एक व्यापक परिवर्तन हुआ, जब श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई. सत्ता परिवर्तन का बयार तो पूर्व में भी आया था, परन्तु ये अलग था. इस बार प्राथमिकता थी सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना, और भारत को पुनः विश्वगुरु की पदवी दिलाना, जैसा कि नरेंद्र मोदी कहते आये है.
भारत का एक रक्षा स्नैपशॉट
भारत का रणनीतिक दृष्टिकोण देश की उन्नत क्षमताओं को प्राथमिकता देते हुए हमारे स्थानीय सोर्सिंग को अधिकतम करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारतीय सशस्त्र बल स्वतंत्र विवेक का उपयोग करते हुए, सोर्स देशों की एक विस्तृत श्रृंखला से उन उपकरणों का चयन करते हैं जो उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं.
इसका प्रत्यक्ष उदहारण हमें दुर्जेय अग्नि V मिसाइल के रूप में देखने को मिलता है, जो सीमाओं के पार प्रभाव डालने में सक्षम है. इसी के साथ हमारी रक्षा प्रणालियाँ रूस की सुप्रसिद्ध एस 400 वायु रक्षा प्रणालियों से सुसज्जित है. परन्तु भारत की वैश्विक पहुंच किसी एक बाजार तक सीमित नहीं है।
भारत द्वारा खरीदे गए रक्षा उपकरणों की पहुँच फ्रांस से खरीदे गए राफेल जेट, यूएसए से अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर, इज़राइल से स्पाइक एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल और हारोप अटैक ड्रोन और अमेरिका से एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन और एसआईजी716 असॉल्ट राइफलों तक फैली हुई है।
यद्यपि, भारत की वर्तमान यात्रा इसके ऐतिहासिक संदर्भ से कहीं आगे तक फैली हुई है। एक समय पेनिसिलिन जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए भी आयात पर निर्भर रहने वाले भारत में “मेक इन इंडिया” पहल के तहत देश की प्रगति उल्लेखनीय से कम नहीं रही है। फरवरी 2023 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो वर्षों के भीतर रक्षा निर्यात को 5 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का साहसिक दृष्टिकोण निर्धारित किया, जो मौजूदा स्तर से तीन गुना अधिक है।
बेंगलुरु में आयोजित द्विवार्षिक एयरो इंडिया शो इस प्रतिबद्धता को वैश्विक मंच पर रेखांकित करता है, जिसमें 9 अरब डॉलर (750 अरब रुपये) के प्रभावशाली रक्षा सौदों की संभावना व्यक्त की गई है.
यह महज बयानबाजी नहीं हैं. घटते आयात से उत्पन्न कमी को स्वदेशी प्रतिभा ने कुशलता से भर दिया है, जिससे रक्षा निर्यात में नाटकीय उछाल आया है। 2017-18 में 4,682 करोड़ का आंकड़ा, 2021-22 तक अगले पांच वर्षों में प्रभावशाली 174 प्रतिशत के दर से बढ़कर रु. 12,815 करोड़ होने की संभावना है ।
अगर बात रक्षा उपकरणों की करें तॊ, रक्षा उपकरण के परिदृश्य में आश्चर्यजनक रूप से 300 प्रतिशत का विस्तार हुआ है, जो भारत के रक्षा क्षेत्र को नए आयामों तक ले जाएगा। रिपोर्टों से पता चलता है कि यह आंकड़ा वित्तीय वर्ष 2022-23 तक 17,000 करोड़ का जादुई आंकड़ा छूने हेतु तैयार रहेगा.
सफलता की कहानी भारत के रक्षा निर्यात के पोस्टर बॉय तेजस और ब्रह्मोस में परिलक्षित होती है। विशेष रूप से, अर्जेंटीना और मलेशिया जैसे देश स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस के लिए प्रतिस्पर्धा रख रहे हैं, जबकि दक्षिण पूर्व एशिया में प्रतिष्ठित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के लिए एक अलग ही प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। जैसे-जैसे रक्षा निर्माण में भारत की शक्ति को वैश्विक मान्यता मिल रही है, देश स्वत: वैश्विक मंच पर आत्मनिर्भरता और रणनीतिक के युग की ओर अग्रसर होता दिख रहा है ।
परन्तु प्रश्न तो अभी भी व्याप्त है: क्या भारत दो मोर्चों पर युद्ध के लिए पूर्णतः तैयार है? इस समय पर वर्षों पूर्व हमारे पूर्व CDS, जनरल बिपिन रावत ने प्रकाश डाला था, जब भारत ने हमारे शत्रुओं को उन्ही की भाषा में उत्तर देना प्रारम्भ किया था। इस बात से हम और आप दोनों परिचित हैं कि आगे का मार्ग कठिन है, और शायद नीरस भी, परन्तु एक बात निश्चित है: जहाँ चाह, वहां राह, और शीघ्र ही भारत चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चों पर युद्ध लड़ने हेतु पूरी तरह सक्षम होगा.
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भारत के विदेशी सम्बन्ध
एक समय था जब एक भारतीय नागरिक का जीवन का मूल्य एक कैंडी से भी सस्ता था, और यह धारणा न केवल पश्चिमी उदासीनता से बनी थी, अपितु हमारे नेताओं की अदूरदर्शिता का भी परिणाम थी. ये भूमि तो ऐसे दान करते थे, जैसे पुराने कपड़े। परंतु 2023 में फ़ास्ट फॉरवर्ड करें, और भारत में परिवर्तन की एक अलग बयार चलने लगी है. अब सन्देश स्पष्ट है: भारत संसार का पंचिंग बैग नहीं।
इसका स्पष्ट उदाहरण यूक्रेन संकट के दौरान देखने को मिलता था, जहां भारतीय झंडे का दिखना ही सुरक्षित निकासी की गारंटी समान थी, और इसका लाभ अवसरवादी पाकिस्तानियों ने भी खूब उठाया.
आज के परिप्रेक्ष्य में, भारत वैश्विक मंच पर एक अगम्य शक्ति के रूप में परिवर्तित हो चुका है, और चाहे मुंह फुलाके ही सही, कई राष्ट्रों ने इस बार को स्वीकारा भी है. इसकी उत्पत्ति असल में रूस – यूक्रेन संघर्ष के दौरान हुई, जब भारत ने अपनी शर्तों पर अपनी आर्थिक एवं विदेश नीति का अनुपालन किया. न हमें सम्मान का मोह था, न अपमान का भय, विशेषकर उस अमेरिका से तो बिलकुल नहीं, जो शक्ति प्रदर्शन के नाम पर खाली सैंक्शन की खोखली धमकियाँ देता है। ये बदलाव एक ऐसे राष्ट्र का परिचायक है जो एक निष्क्रिय खिलाड़ी से एक सक्रिय इन्फ्लुएंसर के रूप में विकसित हुआ है, जो व्यावहारिकता और आत्मविश्वास के साथ वैश्विक क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। अब भारत हर विषय पर अपना पक्ष रखने में सक्षम है, बिना अपने आत्म्सम्मान से समझौता किये हुए.
परन्तु इस परिवर्तनकारी यात्रा का प्रारम्भिक मार्ग सुगम नहीं था. ये परिवर्तन धीरे धीरे हुआ, जिसकी नींव दिवंगत नेत्री एवं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने रखी. इसे गति मिली सुब्रह्मण्यम जयशंकर के उद्भव से, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की छवि का कायाकल्प कर दिया।
सुब्रमण्यम जयशंकर ने भारत की “शांतिपूर्ण नीति” को ध्वस्त कर एक ऐसी रुपरेखा रची, जहाँ भारत की समस्याओं को प्राथमिकता मिले, और साथ ही वे अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के दबे कुचले देशों के निष्पक्ष प्रतिनिधि के रूप में भी सामने आये. कूटनीतिक मामलों में श्री कृष्ण और पवनपुत्र हनुमान जैसे सांस्कृतिक प्रतीकों के महत्त्व को रेखांकित करना, उनके अद्भुत दृष्टिकोण और भारत के हितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का परिचायक है।
आज, भारत का प्रभाव हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भूराजनीति में काफी बढ़ चुका है। मालदीव और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने से लेकर चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति के प्रभाव को बेअसर करने और चीनी प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने तक, जयशंकर की कुशलता ज़ोर शोर से चमकती है।
एक वह भी समय था जब नेपाल भी मुंह उठाकर भारत को चार बातें सुनाने लगता, और आज अमेरिका भी भारत को आँखें दिखाने से पूर्व सोचने पर विवश होता है. परिवर्तन इसी का नाम है. वर्तमान विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के बदलाव की योजना के,भारत की कूटनीतिक दृढ़ता को उजागर करता है। उनके नेतृत्व में भारत की विदेश नीति का विकास केवल इतिहास का एक अध्याय नहीं है, अपितु यह एक निरंतर बदलते परिप्रेक्ष्य की गाथा है जो वैश्विक मंच पर सदैव गूंजती रहेगी।
भारत : एक आर्थिक महाशक्ति
एक समय ऐसा था, जब भारत नीतिगत पंगुता के पीछे अपने स्वर्ण भण्डार को गिरवी रखने पर विवश था. आज भारत जगत की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर सामने आया है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद $ 3 ट्रिलियन से अधिक है।
यदि हम वर्तमान गति को बनाए रखते हैं, तो 2028 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत अपना स्थान सुरक्षित करेगी, और संभवतः केवल चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका ही हमसे आगे रहेंगे।
परन्तु ये तो मात्र प्रारम्भ है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार प्रधान मंत्री मोदी के कार्यकाल के दौरान भारत की प्रति व्यक्ति आय में दोगुनी वृद्धि का खुलासा किया है। 2014-15 में 87,748 रुपये से बढ़कर ये 2019-20 में 1,85,534, रुपये तक पहुँच गया, ९९ प्रतिशत से भी अधिक के दर से वृद्धि हुई. ये अप्रत्याशित वृद्धि ही मोदी सरकार के आर्थिक प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है.
इसके अतिरिक्त भारत का जॉब मार्केट सतत प्रगति की आभा प्रदर्शित करता है। उन्नति के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के साथ, मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के अपने नौ वर्ष के कार्यकाल के दौरान 6 लाख नौकरियों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए 9 लाख सरकारी नौकरियों का सृजन किया हैं। ये आंकड़े केवल एक भाग का परिचय देते हैं, और आप स्वयं सोच सकते हैं कि निजी सेक्टर एवं अन्य क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या और उनमें वृद्धि कैसे हुई होगी.
इसके अलावा, एक समय ऐसा भी था जब भारत की अर्थव्यवस्था को अपनी अंतर्निहित क्षमता के बावजूद, वैश्विक आर्थिक शक्तियों के संदेह का सामना करना पड़ा था। परन्तु यहाँ भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिला है। एक प्रमुख उदाहरण न्यूयॉर्क स्थित रेटिंग एजेंसी मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस में देखा जा सकता है, जिसने वर्ष 2021 में भारत के आर्थिक दृष्टिकोण को लेकर संतोष व्यक्त किया। हालाँकि भारत की रेटिंग Baa3 पर बनी रही, लेकिन जो बदलाव आया वह था – निगेटिव से स्टेबल रेटिंग की ओर परिवर्तन।
यह बदलाव दर्शाता है कि एजेंसी तत्काल भविष्य में भारत की रेटिंग को बिना किसी बदलाव के बनाए रखने का इरादा रखती है। वहीँ नकारात्मक दृष्टिकोण किसी भी समय हमारे देश को निवेश के प्रतिकूल बनाने के लिए पर्याप्त है। फिच और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स जैसे अन्य प्रतिष्ठित निकायों ने इसी तरह भारत के विकास संकेतकों को “स्थिर” करार दिया है। आश्चर्यजनक रूप से, मॉर्गन स्टेनली, जिन्होंने एक बार 2013 में भारत को “फ्रैजाइल फाइव” अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में लेबल किया था, अब भारत को “Overweight” के रूप में वर्णित करते हैं। समय समय की बात है!
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वर्तमान में, भारत 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल करने के लिए तैयार है। हालाँकि, यह कहानी का केवल एक भाग है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड जैसे संस्थानों का अनुमान है कि भारत की प्रति व्यक्ति आय 2030 तक आश्चर्यजनक रूप से 4,000 डॉलर तक बढ़ जाएगी। इसके अलावा भारत में मंदी की शून्य प्रतिशत संभावना है, जो इस समय दुर्लभ है. जिस तरह इसने 2008 की वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल से निपटने में अग्रणी भूमिका निभाई, उसी तरह भारत एक बार फिर दुनिया को वित्तीय अनिश्चितता से बाहर निकालने का मार्गदर्शन करने के कगार पर खड़ा है। इस बार इसकी राह में नीतिगत पंगुता एवं तुष्टिकरण जैसी बाधाएं भी नहीं है.
भारत की आर्थिक यात्रा हमारी जीवटता एवं अथक परिश्रम का परिचायक है. जिस प्रकार से भारत आर्थिक प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है, यह न केवल अपने भाग्य अपितु वैश्विक अर्थव्यवस्था की रुपरेखा बदलने की भी शक्ति रखता है.
निष्कर्ष
ऐसे में ये स्पष्ट है कि हमारा इतिहास हमारी भावना का प्रतिबिंब है। विनाश से पुनरुत्थान तक का हमारा मार्ग प्रगति के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। दिवालियेपन से जूझ रहे राष्ट्र से लेकर आर्थिक महारथी बनने तक की हमारी यात्रा विकास, दृढ़ता और आकांक्षा के समागम के रूप में गुंजायमान है। दृढ नेतृत्व और सशक्त जनसँख्या सहित, भारत की एक नई परिभाषा लिखी जा रही है, जहाँ हर अध्याय वैश्विक मंच पर केवल इसकी महिमा बढ़ाता है.
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