अब ट्रूडो के दावों को कैनेडियाई मीडिया ही कर रहा “फैक्ट चेक!”

सबूत कहाँ है ट्रूडो?

जस्टिन ट्रूडो – एक ऐसा नाम जिसे पीढ़ियों तक याद किया जाएगा। परन्तु इसलिए नहीं कि उनके पास अद्भुत राजनीतिक कौशल या उल्लेखनीय नेतृत्व था। इन्हे एक प्रमुख उदाहरण के रूप में स्मरण किया जायेगा, कि सरकार कैसे नहीं चलानी चाहिए।

हाल ही में भारत के विरुद्ध जस्टिन ट्रूडो कुछ ज़्यादा ही आक्रामक दिखाई दे रहे हैं। इनके अनुसार, हरदीप सिंह निज्जर की ‘हत्या’ में स्पष्ट रूप से भारत का हाथ रहा है, और उनके प्रशासन के ‘पर्याप्त साक्ष्य’ है! परन्तु ट्रूडो महोदय की शर्त ये है कि वे इसे भारत को नहीं दिखाएंगे, और चाहते हैं कि उनकी बातों को आँख मूंदकर लोग माने, जिसके पीछे वैश्विक महाशक्ति छोड़िये, स्वयं इनके सहयोगी अपने आप से पूछ रहे हैं, “आखिर चाहता क्या है ये?”

परन्तु बात यहीं तक सीमित नहीं है! कनाडाई मीडिया, जो आम तौर पर अपने प्रशासन का समर्थक रहा है, अब जस्टिन के आरोपों पर प्रश्नचिन्ह लगाने से नहीं हिचक रहा है। वे कुछ ऐसा चाहते हैं जिस पर हम सभी सहमत हो सकें – विश्वसनीय प्रमाण, जिसे कोई न नाकार सके।

आइये जानते हैं कि ट्रूडो की नौटंकियों के पीछे क्यों अब उसकी चाहती मीडिया का भी भरोसा धीरे धीरे उसपर से उठ रहा है!

“सबूत कहाँ है?”

खालिस्तान आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का मुद्दा कनाडा और भारत के बीच विवाद का केंद्र बन गया है। इस गरमागरम बहस के केंद्र में कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो हैं, जिन्होंने दावा किया  कि निज्जर की ‘हत्या’  भारत सरकार के एजेंटों का काम था। फिर भी, ट्रूडो की उद्घोषणा से एक महत्वपूर्ण तत्व स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है: ठोस साक्ष्य, यानी क्रेडिबल एविडेंस!

अब कैनेडियाई मीडिया को भी संदेह है कि ट्रूडो के दावे वास्तव में सत्य भी है कि नहीं। उनका मानना है कि लोकप्रियता में तेजी से गिरावट से जूझ रहे ट्रूडो ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए इस मामले को जल्दबाजी में उठाया है। उनके दावे की गंभीरता को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा सकता, और पर्याप्त साक्ष्यों का अभाव उनके राजनीतिक उद्देश्यों पर छाया डालता है।

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विश्वास नहीं होता तो नेशनल पोस्ट के विचारों पर ध्यान दीजिये। इनके संपादकीय में अस्पष्ट भाषा और विशिष्ट बुद्धिमत्ता की अनुपस्थिति पर प्रकाश डालते हुए चेतावनी दी गई है, “यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ट्रूडो का आरोप अभी तक साबित नहीं हुआ है। वह अब तक कनाडाई लोगों को कोई सबूत देने में विफल रहे हैं।”

हालाँकि, यह केवल शुरुआत थी। टोरंटो सन के एक लेख में चेतावनी दी गई है कि भारत इस तरह के गंभीर आरोपों के बावजूद चुप बैठने को तैयार नहीं है। यह भविष्यवाणी की गई है कि मोदी प्रशासन कठोर प्रतिक्रिया देगा, और ऐसे में कनाडाई लोगों को संभावित परिणामों के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए। इसलिए, पूरी तरह से ट्रूडो की सरकार पर यह जिम्मेदारी आती है कि वह अपने पास मौजूद ऐसे किसी भी सबूत का खुलासा करे जो उनके दावों को सत्य सिद्ध करे, अन्यथा आगे चलकर कनाडा की छवि को बहुत नुक्सान होगा।

इतना ही नहीं, टोरंटो सन ये भी बताता है कि निज्जर कोई संत नहीं था। पंजाब के जालंधर में एक हिंदू पुजारी की हत्या की साजिश में संलिप्त पाए जाने के बाद भारत सरकार ने उन्हें आतंकवादी करार दिया था और पकड़ने के लिए उचित इनाम की पेशकश की थी। इसके अलावा, माना जाता है कि उसने पंजाब में हिंसा की साजिश रची थी और वैंकूवर के दक्षिण-पूर्व में एक छोटे शहर में आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया था। अब ट्रूडो कब तक इस बात से इनकार करते रहेंगे?

अकेले पड़ रहे ट्रूडो?

जब आपकी अपनी मीडिया भी आपके कार्यों पर संदेह करना प्रारम्भ करे, तो यह एक स्पष्ट संकेत है कि कुछ तो गड़बड़ है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो वर्तमान में स्वयं को ऐसी ही दुविधा में पाते हैं। जोश जोश में उन्होंने भारत पर ऊँगली तो उठा दी, परन्तु उन आरोपों को सिद्ध करने में इनकी झिझक स्पष्ट दिखाई देती है, जिससे न केवल राजनीतिक विरोधियों, अपितु वैश्विक स्तर पर वे उपहास का पात्र बने हुए हैं, और अब उनके अपने समर्थक भी उनके दावों से बहुत अधिक विश्वस्त नहीं है ।

ये संदेह की गूँज राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के कक्षों तक ही सीमित नहीं है। यहां तक कि जो लोग ट्रूडो के साथ राजनीतिक मंच साझा करते हैं, जैसे कि ब्रिटिश कोलंबिया न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के डेविड एबी ने, ट्रूडो के प्रशासन द्वारा प्रदान किए गए स्रोतों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह उठाया है। जब आपके सहयोगी आपके कथन पर सवाल उठाने लगते हैं, तो यह एक चेतावनी है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

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ट्रूडो के प्रशासन पर अब भारत सरकार द्वारा आतंकवादी समझे जाने वाले व्यक्ति के साथ खुद को जोड़ने का आरोप है। इस रुख ने चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि यह कनाडा की धरती पर बढ़ते अलगाववादी समर्थक सिख आंदोलन की उपेक्षा करता प्रतीत होता है। यह आंदोलन न केवल हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बल्कि कनाडा में तैनात भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा के लिए भी खतरा है।

ये तो कुछ भी नहीं है, ट्रूडो ने हत्या के मद्देनजर भारत की निंदा करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अपने सहयोगियों से आग्रह किया। परन्तु कोई भी इनके दावों को फेस वैल्यू पर लेने को तैयार न था। उन्होंने भारत के साथ कूटनीतिक दलदल से दूर रहने का विकल्प चुना। संक्षेप में, वैश्विक महाशक्तियों ने यह स्पष्ट कर दिया है: तुमने गंदगी फैलाई, तुम ही समेटो!

इसी के परिणामस्वरूप भारत ने अगली सूचना तक कनाडाई नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाएं निलंबित कर दी हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने 20 सितंबर को कनाडा में अपने निवासियों को एक चेतावनी जारी की, जिसमें उनसे देश में भारत विरोधी गतिविधियों और राजनीतिक रूप से स्वीकृत हेट क्राइम्स में वृद्धि के कारण सावधानी बरतने का आग्रह किया गया। यहां तक कि कनाडाई मीडिया ने भी ट्रूडो की कहानी पर संदेह व्यक्त किया है, यह स्पष्ट है कि स्थिति आगे और विकट होने वाली है, और निश्चित रूप से प्रधान मंत्री ट्रूडो के लिए अनुकूल नहीं है।

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