क्या कहेंगे आप उस फिल्म को, जिसके पास सत्यमेव जयते २ जितनी बुद्धि हो, Money Heist जैसा स्टाइल हो, Vikram वाली तकनीक हो, और रेस ३ जैसा Execution? आप भी सोचेंगे न, “क्या बकवास है?” पर इसी को हमारे देश में “Mass” का नाम कुछ लोग देते हैं, और इसी सोच की उपज है “जवान”! इसे देखकर अरविन्द केजरीवाल और उदयनिधि स्टालिन का ह्रदय बाग़ बाग़ न हो तो कहियेगा, या सच में हो चुका है!
इस फिल्म को “Jawan” क्यों कहते हैं? इसे सीधा “Money Heist Audition: Atlee Cut” क्यों नहीं कहते? इसमें महिला सशक्तिकरण का तड़का लगाइये, और लो, एक तड़कती भड़कती मास एंटरटेनर तैयार! जॉर्ज सोरोस जो अरबों फूँक के न कर पाया, वो जवान ने कर दिखाया! तो पकड़िए कोल्ड ड्रिंक और पॉपकॉर्न और चलते हैं “जवान” की अद्भुत यात्रा पे, या यूँ कहे कि “Money Heist India Screen Test: Atlee Cut” की यात्रा पे, जहाँ पर सब कुछ है, व्यवहारिकता और रचनात्मकता को छोड़कर. और हाँ, देसी “Bella Ciao!” की भी घनघोर कमी थी!
ऐसी कथा तो आपने सोची भी न होगी!
तो कथा एक घायल व्यक्ति के साथ शुरू होती है जो एक आदिवासी गांव में शरण लेता है। एक सेकंड रुकें, क्या यह स्टीफन चाउ की याद नहीं दिलाता ? परन्तु हम तो यहाँ मनोरंजन के लिए है न?
फिर अचानक से गाँव पर हमला होता है. अन्याय का तांडव होता है, और जब लगता है सब कुछ ख़त्म हो जायेगा, तो बांग्लादेशी इम्होटेप की भांति अपने SRK उठ खड़े होते हैं. ये धोते हैं, कि पूरा हॉल सीटियों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज जाए. इतना ही नहीं, अपने बांग्लादेशी Imhotep समय आने पर Thor की भांति हथौड़ा भी चला सकते हैं.
अब कुछ वर्ष आगे चलते हैं, और पता चलता है कि एक मेट्रो को कुछ लोगों ने हाईजैक कर लिया है, जो शायद स्क्विड गेम्स को घोलके आये हैं. इनका नेतृत्व कोई और नहीं, अपना देसी प्रोफ़ेसर, यानी कि SRK मोशाय कर रहे हैं!
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परन्तु ठहरिये, ये तो मात्र प्रारम्भ है. अपने देसी प्रोफ़ेसर की डिमाँडें बहुत कम है. बस इतना कि आलिया भट्ट का उल्लेख हो जाए, “आपको हमारी कसम लौट आइये” पर थिरक लें, और ४०००० करोड़ की फिरौती, क्षमा करें, बकाया वसूल लें, और इनके होस्टेज इन्हे इम्होटेप सैल्यूट दे कर अगले स्टेशन से भग लें! इसे मास नहीं तो क्या कहें?
पर नहीं, इसमें हमारी देसी रेकेल यानी नयनतारा जी नहीं मानेंगी. परन्तु फिर आते हैं देसी प्रोफ़ेसर के सामाजिक रूप आज़ाद, जो पेशे से जेलर हैं! बताओ, एटली ने हमें कभी ये महसूस ही नहीं होने दिया कि ये सत्यमेव जयते २ नहीं है! अगर इससे भी आप प्रसन्न न हो, तो आपकी सोच ख़राब है!
क्या है “जवान”?
तो क्या है “जवान”?
ए, ये एक मास एंटरटेनर है,
बी, इसमें सामाजिक सन्देश दबाके डाले गए हैं
सी, ये “Money Heist” के भारतीय संस्करण का ३ घंटा लंबा ऑडिशन है,
डी, ये इन सबकी मसालेदार खिचड़ी है!
अगर आपका उत्तर डी है, तो बधाई हो, आपको मिलता है “श्री रामाधीर सिंह सिनेमा प्रेमी पारितोषिक”! आगे आप समझदार हैं!
जिन्हे विशुद्ध एंटरटेनमेंट चाहिए, या जॉन विक शैली का एक्शन चाहिए, तो वे कृपया सिनेमा हॉल की ओर न भगें! OTT पे “विक्रम” या “जेलर” देख लें! “पठान” जितनी कबाड़ तो नहीं है, परन्तु “जवान” एक अलग ही लोक में आपको ले जाएगी!
कल्पना कीजिये, अगर लीड में जॉन एब्राहम, या फिर आयुष्मान खुराना जैसे हस्ती होते, तो कैसी होती ये फिल्म? पर SRK है, तो सब चंगा सी!
अब इसे नोट करें। प्रमुख भूमिका में फीमेल लीड है नयनतारा, जो ३८ वर्ष की हैं. इन्ही की आयु की है रिद्धि डोगरा, और इन दोनों से एक वर्ष कम आयु की है दीपिका पादुकोण! परन्तु, और मैंने कहा परन्तु, दीपिका शाहरुख़ के युवा रोल की माँ बनी है, और रिद्धि डोगरा उसी युवा शाहरुख़ की मुंहबोली माँ बनी है. क्रिस्टोफर नोलन तो इस लॉजिक पे कोमा में चला जायेगा, लिख के देता हूँ!
कास्टिंग की बात करते हुए, हमें विजय सेतुपति को नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने मैट्रिक्स प्रभाव के साथ “विक्रम” के संथानम की भूमिका निभाई है – वे लाल और नीली गोलियां। “फर्जी” में एक भौकाल अधिकारी से लेकर “जवान” में अद्वितीय प्राथमिकताओं वाले खलनायक तक, हम ये सोचने पर विवश हो जाते हैं कि कौन अधिक बेवक़ूफ़ हैं हिंदी प्रोजेक्ट चुनने में: प्रभास या विजय?
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ओह, क्या मैंने दीपिका पादुकोण को नजरअंदाज कर दिया? मैं तहे दिल से माफी चाहता हूं, लेकिन ऐसा लगता है कि फिल्म ने भी ऐसा ही किया होगा। उनकी उपस्थिति “83” में उनकी भूमिका जितनी ही यादगार थी। बाकी आप समझदार हैं.
संक्षेप में, “जवान” एक प्रकार का मनोरंजन है जो विनम्रतापूर्वक आपको अपनी विचारधारा, सामान्य ज्ञान और लगभग पूरे मस्तिष्क को सभागार के बाहर छोड़ने के लिए कहता है। यदि आप कुछ नासमझ मनोरंजन के लिए तैयार हैं, जिस तरह का तर्क गौण हो जाता है और शुद्ध सिनेमाई तबाही दिन पर राज करती है, तो “जवान” आपके लिए उपयुक्त होना चाहिए।
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