एसीसी एशिया कप 2023 क्रिकेट इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। इसके प्रबंधन, क्षमा करें, ‘mismanagement’ में एशियाई क्रिकेट परिषद्, पाकिस्तान एवं श्रीलंका की संयुक्त भूमिका थी। परन्तु एक फाइनल परफॉर्मेंस ने मानो सारे प्रश्नों पर पूर्णविराम लगा दिया!
सोचिये, भारत इस टूर्नामेंट के टॉप फेवरिट्स में नहीं थी। माना जा रहा था कि श्रीलंका आसानी से जीत जाएगा। पर यहीं पे आता है एक अद्भुत ट्विस्ट, और मात्र 37 गेंदों में भारत ने 5 वर्ष का सूखा स्टाइल में खत्म किया।
परन्तु क्या आपको पता है कि इस ऐतिहासिक विजय से भारत ने एक 23 वर्ष पुराना बकाया ब्याज सहित चुकता किया है? आज हमारी चर्चा होगी उसी 23 वर्ष पुरानी घटना, और कैसे उसका हिसाब रोहित शर्मा एन्ड को ने अपने अनोखे अंदाज़ में चुकाया!
जब शारजाह के “श्रीलंकाई तूफ़ान” में दब गया भारत!
29 अक्टूबर 2000.
रविवार की एक सुहावनी दोपहर को शारजाह में कोका कोला चैम्पियंस ट्रॉफी शारजाह के सुप्रसिद्ध क्रिकेट स्टेडियम में खेला जाना था। इस त्रिकोणीय श्रृंखला में भारत, श्रीलंका और ज़िम्बाब्वे ने भाग लिया, जिसमें भारत और श्रीलंका फाइनल में पहुंचे। भारत के लिए स्थिति पहले ही बहुत अच्छी नहीं थी, क्योंकि 3 माह पूर्व ही सौरव गांगुली ने बतौर कप्तान कार्यभार सम्भाला था।
परन्तु किसी को आभास भी नहीं था कि 29 अक्टूबर को टीम इंडिया / भारत के साथ क्या होने वाला था। श्रीलंकाई बल्लेबाज़ी की ओर से मोर्चा संभालते हुए सनथ जयसूर्या ने हमारे गेंदबाज़ों की वो कुटाई की, जिसके बारे में आज भी लोग कम ही चर्चा करते हैं। स्थिति तो ये थी कि 7 ओवर में वेंकटेश प्रसाद ने 73 रन लुटा दिए थे। जब सनथ जयसूर्या आउट हुए, और इनिंग्स समाप्त हुई, तो श्रीलंका का स्कोर 299 पे 5 था, जिसमें स्वयं जयसूर्या के 189 रन सम्मिलित थे, जो उस समय वनडे क्रिकेट के इतिहास का दूसरा सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर था।
जवाब में भारत की हालत उसी समय खस्ता हो गई, जब सौरव गांगुली बोर्ड पर सिर्फ 3 रन दर्ज कर आउट हो गए। उनके बाद सचिन तेंदुलकर और फिर युवा युवराज सिंह [जो अपनी क्रिकेट यात्रा प्रारम्भ किये थे], सस्ते में निपट हुए। शीघ्र ही भारत का स्कोर 15 रन पे 3 हो गया।
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परन्तु कुछ ही क्षणों में सब के सब हतप्रभ रह गए। भारतीय टीम ताश के पत्तों की भांति बिखरने लगी। यदि रॉबिन सिंह के 11 रन और कुछ हद तक हेमांग बदानी ने 9 रन का योगदान नहीं दिया होता, तो भारत शायद 34 रन पर सिमट जाता, जो एकदिवसीय क्रिकेट इतिहास में सबसे कम स्कोर होता।
फिर भी, 54 रन पे ऑल आउट होना कोई बहुत गर्व करने वाली बात तो थी नहीं, विशेषकर उस व्यक्ति के लिए, जिसने कुछ ही माह पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी संभाली थी। यह एक ऐसा दिन था जिसे भारत और उसके क्रिकेट प्रशंसक भूलना चाहेंगे। लेकिन खेल की दुनिया भी अजब गजब है, यहाँ कब क्या हो जाए, किसे पता? । 23 साल बाद जो होने वाला था, उस समय तो उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी!
23 वर्ष का बकाया ब्याज सहित चुकता!
23 साल वर्ष बाद भी, ऐसा लगा कि शायद ही कुछ बदला होगा। इस बार भी भारत फाइनल में श्रीलंका से भिड़ रहा था, और 2000 की भांति उनके सामने बाधाएं अनंत थी। उनकी यात्रा उतार-चढ़ाव से भरी रही, जिससे ज्यादातर लोग उनकी संभावनाओं को लेकर संशय में थे।
दूसरी ओर, श्रीलंका की संभावनाओं पर किसी को संदेह नहीं था । उनका प्रदर्शन काफी प्रभावशाली रहा था, और पिछली बार उन्होंने पराजय के जबड़े से विजय छीनते हुए एशिया कप में अप्रत्याशित विजय दर्ज की थी। ऐसा लग रहा था कि 2000 के प्रारंभिक दशक वाली श्रीलंका वापिस आ गई थी।
परन्तु वो क्या है, लाख उलाहने सुनकर तो ढीठ से ढीठ प्राणी भी उठकर कुछ नहीं तो पत्थर तोड़ने लगेगा, और ये तो भारतीय क्रिकेट टीम ठहरी। विगत कुछ माह से अपने दोयम दर्जे के परफॉर्मेंस के लिए तानों का शिकार भारतीय टीम इस बार अलग ही स्याही से अपना भाग्य रचने को तत्पर थी। टॉस हारने के बाद भी उन्होंने परिस्थिति का हरसंभव लाभ उठाने का निर्णय लिया । वो क्या कहते हैं, ‘विनिंग इज द बेस्ट वेन एवेरीवनइज डाइंग टू सी यू लूज़!’
मौसम पूरी तरह से अनुकूल नहीं था, बादल छाए हुए थे और पिच सीम गेंदबाजों के लिए अनुकूल नहीं थी। कई विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि श्रीलंकाई स्पिनरों के लिए, जिन्होंने पहले भारतीय बल्लेबाजों को परेशान किया था, अच्छा दिन होगा। लेकिन वे एक महत्वपूर्ण तत्व भूल गए: रॉ करेज!
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अब प्रवेश हुआ हैदराबादी तेज गेंदबाज़ मोहम्मद सिराज का । इनपर कई माह से कई मीम बन रहे थे, क्योंकि ये मैदान पर कम, और मैदान के बाहर अधिक चर्चा का केंद्र बने रहते थे। परन्तु इस बार उन्होंने सिद्ध किया कि क्यों उनपर कुछ लोगों को अटूट विश्वास था।
महज 21 रन देकर सिराज ने 6 विकेट झटके! उससे भी महत्वपूर्ण ये था कि प्रथम 5 विकेट तो मात्र 4 रन लुटाकर आये, जिसके पीछे श्रीलंका ने आधे से अधिक बल्लेबाज़ तो केवल 12 रन पे गंवा दिए । यदि कुसल मेंडिस और दुसान हेमंथा नहीं होते, तो श्रीलंका को 2000 में भारत की पराजय से भी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ता। दिलचस्प बात यह है कि भारत ने श्रीलंका को केवल 15.2 ओवर में ही ढेर कर दिया, जो 2000 में सौरव गांगुली की टीम की तुलना में पूरे 11.1 ओवर जल्दी हुआ।
लेकिन ये तो केवल कहानी का एक भाग था । असल तड़का तो शुभमन गिल ने लगाया, जिन्होंने ईशान किशन के साथ मात्र 37 गेंदों, यानी 6.1 ओवरों में श्रीलंका का बोरिया बिस्तर निपटा दिया!
तो, इस कहानी का मूल उद्देश्य क्या है? क्रिकेट की दुनिया में यह एक शाश्वत सीख है: आखिरी गेंद फेंके जाने तक खेल वास्तव में कभी खत्म नहीं होता। 2023 के एशिया कप फाइनल में भारत की ये विजय दृढ़ संकल्प, साहस और उम्मीदों से ऊपर उठने की क्षमता का प्रमाण है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों। और हाँ, 23 वर्ष पुराने ज़ख्मों का ब्याज समेत बकाया चुकाया सो अलग।
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